|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद कृष्ण द्वादशी,सोमवार, वि०स० २०७०
*धर्मके
नामपर पाप*
कलियुग
अपना प्रभाव सर्वत्र दिखा रहा है | प्रायः सभी क्षेत्रों में दिखौआपन आ गया है |
मिथ्याचारी लोग प्रायः सभी क्षेत्रोंमें घुसकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं |
दम्भी मनुष्य अनेक रूप बनाकर, अनेक वेष धारणकर लोगों को ठगने में लगे हुए हैं |
धार्मिक क्षेत्रमें, जहाँ अधिकांश बातें विश्वास से सम्बन्ध रखनेवाली होती हैं,
दम्भ के लिए अधिक गुंजाइश रहती है | इसी से धर्मध्वजीलोग धर्मका बाना ग्रहणकर
भोली-भाली जनता को अनेक प्रकार के प्रलोभन देकर, सब्ज बाग़ दिखाकर ठगा करते हैं और
इस प्रकार अपना स्वार्थ सिध्द करते हैं | भक्ति के नामपर भी लोग इसी प्रकार
भोले-भाले लोगों को चंगुल में फँसाकर उनका धन अपहरण करते हैं | स्त्रियाँ इन बगुले
भक्तों के हथकंडों की अधिक शिकार होती हैं; क्योंकि वे विवेकशक्ति से कम काम लेती
हैं और विश्वास की मात्रा भी उनमें अधिक होती हैं | इसी से वे बहुत जल्दी धोखे में
आ जाती हैं और अपने धन तथा सतीत्व को भी, जो भारतीय स्त्रियोंकी सबसे बड़ी सम्पत्ति
है, खो बैठती हैं | तीर्थों में, देवालयों में, धर्मस्थानों में आये दिन इस प्रकार
की घटनाएँ हुआ करती हैं | इसी से आज धर्म और ईश्वर के
प्रति लोगों की आस्था कम होती जा रही है | जगत में बढ़ती हुई नास्तिकता तथा धर्म के
प्रति उदासीनता के लिए ऐसे ही लोग जिम्मेवार हैं, जो अपने को आस्तिक तथा
धर्मप्रेमी कहकर अपने आचरणोंद्वारा धर्म और आस्तिकता की जड़पर कुठाराघात करते हैं |
जनता को चाहिए कि ऐसे धर्मध्वजी लोगों से खूब सावधान रहे |
स्त्रियों को इस सम्बन्ध में विशेष
सावधानी रखने की आवश्यकता है | उनमें प्रायः बुद्धि की अपेक्षा श्रद्धा की मात्रा
अधिक होती है | यद्यपि अध्यात्ममार्ग में श्रद्धा की अधिक आवश्यकता है, परन्तु विवेकरहित श्रद्धा बहुधा हानिकारक होती है, इसीलिए
हमारे शास्त्रों में स्त्रियों को स्वतन्त्रता नहीं दी गयी है | स्त्रियों के लिए
पति ही परमेश्वर है, पति ही परम देवता है, पति ही तीर्थ है, पति ही गुरु है |
सौभाग्यवती स्त्री के लिए पति की सेवा से बढ़कर और कोई साधन नहीं है | पति की
अवहेलना करके व्रत-उपवास, तीर्थसेवन, देवदर्शन, गंगा-स्नान आदि करने से स्त्री को
कोई पुण्य नहीं होता | विधवा स्त्री के लिए भी यही उचित है कि वह घर से बाहर किसी
तीर्थ कीर्तन आदि में जाय तो अपने घरवालों से पूछकर घरवालों के साथ जाय, उनकी आज्ञा
लेकर भी अकेले कहीं न जाय | भगवान् मनु कहते हैं—
बालया वा युवत्या वा वृद्धया वापि योषिता |
न स्वातन्त्र्येण कर्तव्यं किन्चित्कार्यं
गृहेष्वपि ||
बाल्ये पितुर्वशे तिष्ठेत्पाणिग्राहस्य यौवने |
पुत्राणां भर्तरि प्रेते न भजेत् स्त्री स्वतन्त्रताम् ||
नास्ति स्त्रीणां पृथग् यज्ञो न व्रतं नाप्युपोषणम् |
पतिं शुश्रूषते येन तेन स्वर्गे महीयते ||
(मनुस्मृति
५ | १४७, १४८, १५५)
‘लड़की,
जवान या वृद्ध स्त्रीको भी घरों में भी कोई कार्य स्वतन्त्र होकर न करना चाहिए |
बाल्यावस्था में स्त्री पिताके अधीन रहे, जवानी में पति के अधीन और पति के मर जाने
के पर पुत्रों के अधीन होकर रहे, स्त्री स्वतन्त्र होकर कभी न रहे | स्त्रियों को
पति के बिना अलग यज्ञ, व्रत और उपवास करने का अधिकार नहीं है | स्त्री तो केवल पति
की सेवा से ही स्वर्ग में आदर पाती है |’.......शेष
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—श्रद्धेय जयदयाल
गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !!
नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!