※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

धर्मके नामपर पाप



|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी,मंगलवार, वि०स० २०७०
*धर्मके नामपर पाप*
गत ब्लॉग से आगे.......पुनश्च—
सूक्ष्मेभ्योऽपि प्रसंगेभ्यः स्त्रियो रक्ष्या विशेषतः |
द्वयोर्हि        कुलयो:   शोकमावहेयुररक्षिताः ||
(मनु० ९ | ५)
‘जहाँ थोड़े-से भी संगदोषकी संभावना जान पड़े, ऐसे प्रसंगोसे भी स्त्रियों की विशेष यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए; क्योंकि अरक्षित स्त्रियाँ पिता और पति दोनों के कुलों को संतापित करती हैं |’
           सुना गया है आजकल बंबई, कलकत्ता, लाहौर, लखनऊ, आदि बड़े-बड़े नगरों में कीर्तन-भजन के नामपर बड़ा पाप फैलाया जा रहा है | कलकत्ते में तो कुछ स्त्रियाँ गंगास्नान के अथवा देवदर्शन के बहाने टोलियाँ बनाकर कुछ निर्दिष्ट स्थानों पर एकत्र होती हैं, नाचती-गाती हैं और कीर्तन करती है | आगे चलकर उनके आचरणों में इतनी अश्लीलता आ जाती है, जिसका स्पष्ट शब्दों में उल्लेख नहीं किया जा सकता | वहाँ बहुत-सी ऐसी स्त्रियाँ हैं, जिन्होंने गीता आदि धार्मिक ग्रन्थ पढ़ाना और इसी बहाने भले घरों की स्त्रियों को अपने यहाँ एकत्रित कर उन्हें कुमार्ग में प्रवृत्त करना यही पेशा बना लिया है | हमारे भाईयों को चाहिए कि वे ऐसी स्त्रियों से सावधान हो जायँ, अपने घर की स्त्रियों को किसी दूसरे के घर किसी निमित्त से अकेले न जाने दें और न इस प्रकार की स्त्रियों को गीता आदि पढ़ाने के बहाने अपने घरों में आने दें | सुननेमें तो यहाँ तक आया है कि कुछ स्त्रियाँ इस प्रकार की पेशेवर स्त्रियों के बहकावे में आकर अपने पिता, पुत्र, पति आदि का विरोध करके भी उपर्युक्त स्थानों पर जाती हैं और वहाँ धर्म और भक्ति के नाम पर अनर्थ होता है |
        जो लोग इस प्रकार कथा-कीर्तन के बहाने परायी स्त्रियों को अपने घर पर बुलाकर पाप करते हैं, उनके सम्बन्धमें तो क्या कहा जाय ? वे मूढ़ तो अपने ही हाथों अपने लिए नरकका द्वार खोलते हैं | उन्हें यह सोचना चाहिए कि बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी स्त्रियों के संगमें रहकर अपने को नहीं बचा सके; फिर हम मनुष्य-कीटों की तो बात ही क्या है, जो काम के किंकर बने हुए हैं ? स्त्रियों के संग की बात ही क्या है, शास्त्रों ने तो स्त्रियों का संग करनेवालों के संग को भी अत्यन्त त्याज्य बतलाया है—
स्त्रीणांस्त्रीसंङ्गिनां संङ्गं त्यक्त्वा दूरत आत्मवान् |
(श्रीमद्भा० ११ | १४ | २९)
उसी भागवत में अन्यत्र स्त्रियों का संग करनेवालों के संग को नरक का द्वार बतलाया गया है | ऐसी दशा में ऐसा कौन मनुष्य है जो स्त्रियों के संग में रहकर अपने को पवित्र रख सके | ऊपर कहे हुए लोग तो वास्तव में बड़े दयनीय हैं, वे तो धर्म की आड़में पाप कमाते हैं | उनपर तो कामका भूत सवार है | जैसे रोगग्रस्त मनुष्य विषयासक्ति के वशीभूत होकर कुपथ्य कर बैठता है और पीछे रोता है, उसी प्रकार ये लोग भी बुरी नीयत से अधर्माचरणरूपी कुपथ्य का सेवन करते हैं और अन्त में जब वे इस मनुष्य शरीर से हाथ धो बैठेंगे, उस समय रोने के सिवा और कुछ भी उनके हाथ नहीं आनेका | जो पुरुष कथा-कीर्तन आदि के नाम पर, भक्ति और धर्म की आड़ में पाप करता है वह तो महान नीच है; उसके तो दर्शन करनेवाले को पाप लगता है | अतः सभी भाईयों को चाहिए कि इस प्रकार के घोर पाप से अपनी माता-बहिनों को बचाने की तत्परतापूर्वक चेष्टा करें | इस कार्य में साम, दान, दण्ड, भेद सभी प्रकार की नीति व्यवहार में लायी जा सकती है | जिस किसी प्रकार से भी हो, समाज को इस महान पतन से बचाने की पूरी चेष्टा करनी चाहिए |.......शेष अगले ब्लॉग में
श्रद्धेय जयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
 नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!