※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

शीघ्र कल्याण कैसे हो ? -2-


|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन कृष्ण, त्रयोदशी  श्राद्ध, गुरुवार, वि० स० २०७०
 
 
भगवान ने हमे बुद्धि प्रदान की है | उसे सद्विचार और सत्कार्य में लगाने की  आवश्यकता है | जो अविवेकी इस मनुष्य-शरीर को विषय-भोगादी निंदनीय कार्यो में खो देता है, उसमे और पशुओ में कोई अन्तर नहीं | सच पुछा जाये तो कहना पड़ेगा की कई अंशो में वे उनसे भी गये-बीते है | हमे स्वप्न में भी कभी इस विचार को आश्रय नहीं देना चाहिये की हम भोग भी भोगे और भगवान को भी प्राप्त कर ले | दिन और रात को एक साथ देखना निसन्देह आकाश-कुसुमो को तोडना है | जहाँ भोग है वह भगवान रह नहीं सकते |
 
संतो की यह वाणी ध्रुव-सत्य है |
जहाँ योग तहँ भोग नही, जहाँ भोग नहीं योग |
जहाँ भोग तहँ रोग है, जहाँ रोग तहँ सोग ||
 
भोगी से कभी योग का साधन हो नहीं सकता | भोग का फल रोग और रोग का फल शोक है | अत: पाप-ताप  और रोग-शोक की आत्यंतिक निवृति के लिये विषयो से मुहँ मोड़ कर साधन-पथ पर उत्तरोतर अग्रसर  होते रहना चाहिये | संसार में सार वस्तु परमात्मा है | उससे भिन्न सब कुछ सर्वथा निस्सार, क्षणिक और अनित्य है | अत: मायिक पदार्थो के संग्रह और भोगो में आसक्त होने के कारण यदि इसी जन्म में हम परमात्मा की प्राप्ति न कर सके तो निर्विवाद रूप से मानना होगा की हमारा जीवन भार रूप है |
 
बन्धुओ ! आप जीवन-कर्तव्य पर विचार तो कीजिये ? भगवान आपको उन्नति के लिए आवाहन करते है | अवनत होना तो कर्तव्य-विमुखता है | भगवान कृष्ण की उद्बोधनमयी वाणी पर ध्यान दीजिये –
उदरेदात्मनात्मानं नात्मानंव्साद्येत (गीता ६|५)
उद्धार का अर्थ क्या है? उन्नति | रुपये कमाना उन्नति नही है | संतान-वृधि भी उन्नति नहीं है |यह सब् तो धरे रहेन्गे | इनका मोह त्याग कर अत्मोद्धार के अति-विलक्षण मार्ग  पर आगे बढ़िये | समय को व्यर्थ न खोईये | जो लोग प्रमाद, आलस्य, निन्द्रा और भोग में समय को बिताते है वे अपने को जान बूझ  कर अग्नि में झोकते है | प्रमाद ही  मृत्यु है | समय को व्यर्थ खोना ही प्रमाद है | बहुत से भाई साधन के लिये समय निकालते है सही, परन्तु उन्हे लाभ नहि के बराबर हो रहा है | इसका कारण यह्  है की वे समय क सदुपयोग और सुधार नही करते | वे कभी एकान्त में बैठकर यह नहि सोचते की ऋषि सेवित तपोभूमि में, द्विज-जाति में उत्पत्ति और भगवत-सम्बन्धि चर्चा करने -सुनने का अवसर, इन सारी अनुकूल समग्रिओ के जुट जानेपर भी यदि सुधार न हुआ तो कब होगा ? अब तो सावधानतया ऐसा प्रयत्न होना चाहिये की जिससे थोडे समय में ही बहुत अधिक लाभ किया जा सके |…. शेष अगले ब्लॉग में.       
 
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!