※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

कल्याण प्राप्ति की कई युक्तियां -5-



|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन कृष्ण, द्वादशी  श्राद्ध, मंगलवार, वि० स० २०७०


स्वप्न  में जो संसार दीखता है, आँखे खोलने से जागने पर वह नहीं दीखता | इसी तरह यह विश्वास कर ले की मैं स्वप्न में हूँ, मुझे जो कुछ भी प्रतीत हो रहा है वह सब स्वप्न है | जब स्वप्न समाप्त हो जायेगा तब अपने-आप ही असली सत्य वस्तु दीखने लगेगी | यह विश्वास कर ले की जो दीखती है वह सच्ची वस्तु नहीं है, यह स्वप्नवत है | जो भासती है वह है नहीं | स्वप्न मिटने वाला जरुर है | आँख खुलते ही मिट जायेगा | इस पर यदि यह कहा जाये की आजतक आँख क्यों नहीं खुली ? तो इसका उत्तर यह है की आज तक संसार के  स्वप्नवत होने का निश्चय ही कब किया था ? आत्मा का संकल्प सत्य है | इसलिए यह निश्चय करो की संसार स्वप्न है | चाहे वह सत्य ही क्यों न दिखाई दे, उसे स्वप्नवत मानते रहो | मानते-मानते एक दिन स्वप्न का नाश हो जायेगा और सत्य वस्तु प्राप्त हो जाएगी |

सबको प्राण ही सबसे बढ्कर प्यारे है | प्राण के समान प्यारा कुछ भी नहीं है, प्रिय-से-प्रिय वस्तु तो याद रहेगी ही | इसलिए प्राणों में ब्रह्म की भावना करे | आने-जाने वाले श्वास की तरफ लक्ष्य रखे | श्वास तो अन्ततक आता ही है | इसी तरह यह अभ्यास किया जायेगा तो अंत समय में उद्धार हो जायेगा | प्राण को ब्रह्म मान ले ! उसमे होनेवाले शब्द को ब्रह्म का नाम मान ले; क्योकि प्राणों से ‘सोअहं सोअहं’ शब्द का उच्चारण होता रहता हैं | यह भी परमात्मा का नाम है | इसलिए प्राण ही ब्रह्म है ऐसा निश्चय करने से परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है | अब जिसको जो उपाय सुगम एवं प्यारा मालूम हो उसी का साधन करे |

इस प्रकार कल्याण की प्राप्ति के और भी सैकड़ो उपाय है, परन्तु कुछ-न-कुछ तो करना ही होगा | साधन किये बिना कल्याण नहीं हो सकता | वे सब साधन गीता, वेद तथा श्रुति में बतलाये गए है | श्रेयार्थियो को इनमेसे कोई-सा भी एक साधन, जो उन्हें पसन्द हो करना चाहिये |

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!