|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन कृष्ण,
द्वादशी श्राद्ध, मंगलवार, वि० स० २०७०
स्वप्न में जो संसार दीखता है, आँखे खोलने से जागने पर
वह नहीं दीखता | इसी तरह यह विश्वास कर ले की मैं स्वप्न में हूँ, मुझे जो कुछ भी
प्रतीत हो रहा है वह सब स्वप्न है | जब स्वप्न समाप्त हो जायेगा तब अपने-आप ही
असली सत्य वस्तु दीखने लगेगी | यह विश्वास कर ले की जो दीखती है वह सच्ची वस्तु
नहीं है, यह स्वप्नवत है | जो भासती है वह है नहीं | स्वप्न मिटने वाला जरुर है |
आँख खुलते ही मिट जायेगा | इस पर यदि यह कहा जाये की आजतक आँख क्यों नहीं खुली ?
तो इसका उत्तर यह है की आज तक संसार के
स्वप्नवत होने का निश्चय ही कब किया था ? आत्मा का संकल्प सत्य है | इसलिए
यह निश्चय करो की संसार स्वप्न है | चाहे वह सत्य ही क्यों न दिखाई दे, उसे
स्वप्नवत मानते रहो | मानते-मानते एक दिन स्वप्न का नाश हो जायेगा और सत्य वस्तु
प्राप्त हो जाएगी |
सबको प्राण ही सबसे बढ्कर प्यारे
है | प्राण के समान प्यारा कुछ भी नहीं है, प्रिय-से-प्रिय वस्तु तो याद रहेगी ही
| इसलिए प्राणों में ब्रह्म की भावना करे | आने-जाने वाले श्वास की तरफ लक्ष्य रखे
| श्वास तो अन्ततक आता ही है | इसी तरह यह अभ्यास किया जायेगा तो अंत समय में
उद्धार हो जायेगा | प्राण को ब्रह्म मान ले ! उसमे होनेवाले शब्द को ब्रह्म का नाम
मान ले; क्योकि प्राणों से ‘सोअहं सोअहं’ शब्द का उच्चारण होता रहता हैं | यह भी
परमात्मा का नाम है | इसलिए प्राण ही ब्रह्म है ऐसा निश्चय करने से परमात्मा की
प्राप्ति हो जाती है | अब जिसको जो उपाय सुगम एवं प्यारा मालूम हो उसी का साधन करे
|
इस प्रकार कल्याण की प्राप्ति के
और भी सैकड़ो उपाय है, परन्तु कुछ-न-कुछ तो करना ही होगा | साधन किये बिना कल्याण
नहीं हो सकता | वे सब साधन गीता, वेद तथा श्रुति में बतलाये गए है | श्रेयार्थियो
को इनमेसे कोई-सा भी एक साधन, जो उन्हें पसन्द हो करना चाहिये |
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!