※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 30 सितंबर 2013

कल्याण प्राप्ति की कई युक्तियां -4-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन कृष्ण, एकादशी  श्राद्ध, सोमवार, वि० स० २०७०
                          

गंगाजी के प्रवाह का, हवा, पशु, पक्षीआदि का जो शब्द सुनाई दे उसमे ऐसी भावना करे की शब्द ही भगवान है | किसी प्रकार का भी शब्द सुनाई क्यों न दे ‘नादं ब्रह्म’ शब्द को ही ब्रह्म समझे |जो कुछ भी सुनाई दे वह भगवान है | चाहे कोई गाली दे, चाहे आशीर्वाद दे, दोनों को ही भगवान समझे | यदि गाली सुनकर हमे दुःख होता है तो फिर हमने शब्द को भगवान कहा समझा ? भगवान समझने पर तो आनन्द-ही-आनन्द होगा | भगवान के दर्शनों से जो आनन्द है, गाली को सुनने से भी उसी आन्नद का अनुभव करे, इस बात से भी कल्याण हो जाता है |

संकल्पमात्र (स्फुरणामात्र) को भगवान का स्वरुप समझकर एकान्त में आँखे मीचकर बैठ जावे | मन जहाँ जाता है और जो कुछ देखता है सब भगवान है ऐसी भावना करे | यह निश्चय कर ले की मेरा मन भगवान के सिवा और किसी वस्तु का चिन्तन नहीं करता है | मन घट, पट आदि जिस किसी भी पदार्थ का चिन्तन करे उसकी को भगवान समझ ले, उसमे भगवद बुद्धि करले | यह विश्वास कर ले की जो कुछ मन चिन्तन करता है वह भगवान है | भगवान का स्वरुप वही है जो मन चिन्तन करता है | चाहे वह स्त्री, पुत्र, धन आदि का ही चिन्तन करे; उनको स्त्री,पुत्र एवं धन न समझे,किन्तु भगवान समझे |पत्थर तथा वृक्ष जिस किसी का भी चिन्तन करे सब भगवान है | जैसा दीखे वैसा ही भगवान का स्वरुप मान ले | यह भी कल्याण प्राप्ति का सीधा रास्ता है | ऊपर जितनी बाते बतलाई गयी है, उनमे से एक-एक के पालन से कल्याण हो सकता है | हाँ, यह बात जरुर है की श्रधा और रूचि के तारतम्य के कारण किसी साधन में समय अधिक लगता है और किसी में कम | लेकिन कल्याण सभी से होता है |....शेष अगले ब्लॉग में

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!