|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन कृष्ण,
एकादशी श्राद्ध, सोमवार, वि० स० २०७०
गंगाजी के प्रवाह का, हवा, पशु,
पक्षीआदि का जो शब्द सुनाई दे उसमे ऐसी भावना करे की शब्द ही भगवान है | किसी
प्रकार का भी शब्द सुनाई क्यों न दे ‘नादं ब्रह्म’ शब्द को ही ब्रह्म समझे |जो कुछ
भी सुनाई दे वह भगवान है | चाहे कोई गाली दे, चाहे आशीर्वाद दे, दोनों को ही भगवान
समझे | यदि गाली सुनकर हमे दुःख होता है तो फिर हमने शब्द को भगवान कहा समझा ?
भगवान समझने पर तो आनन्द-ही-आनन्द होगा | भगवान के दर्शनों से जो आनन्द है, गाली
को सुनने से भी उसी आन्नद का अनुभव करे, इस बात से भी कल्याण हो जाता है |
संकल्पमात्र (स्फुरणामात्र) को
भगवान का स्वरुप समझकर एकान्त में आँखे मीचकर बैठ जावे | मन जहाँ जाता है और जो
कुछ देखता है सब भगवान है ऐसी भावना करे | यह निश्चय कर ले की मेरा मन भगवान के
सिवा और किसी वस्तु का चिन्तन नहीं करता है | मन घट, पट आदि जिस किसी भी पदार्थ का
चिन्तन करे उसकी को भगवान समझ ले, उसमे भगवद बुद्धि करले | यह विश्वास कर ले की
जो कुछ मन चिन्तन करता है वह भगवान है | भगवान का स्वरुप वही है जो मन चिन्तन करता
है | चाहे वह स्त्री, पुत्र, धन आदि का ही चिन्तन करे; उनको स्त्री,पुत्र एवं धन न
समझे,किन्तु भगवान समझे |पत्थर तथा वृक्ष जिस किसी का भी चिन्तन करे सब भगवान है |
जैसा दीखे वैसा ही भगवान का स्वरुप मान ले | यह भी कल्याण प्राप्ति का सीधा रास्ता
है | ऊपर जितनी बाते बतलाई गयी है, उनमे से एक-एक के पालन से कल्याण हो सकता है |
हाँ, यह बात जरुर है की श्रधा और रूचि के तारतम्य के कारण किसी साधन में समय अधिक
लगता है और किसी में कम | लेकिन कल्याण सभी से होता है |....शेष अगले ब्लॉग में
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!