※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 29 सितंबर 2013

कल्याण प्राप्ति की कई युक्तियां -3-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन कृष्ण, दशमी  श्राद्ध, रविवार, वि० स० २०७०

वृक्ष, पत्थर, मनुष्य, पशु, पक्षी इत्यादि संसार की जो भी वस्तुएँ दिखलाई दे उन सबमे यह भाव करे की भगवान ने ही ये सब रूप धारण कर रखे है | मन से कहे जहाँ तुम्हारी इच्छा हो वहाँ जाओ,सब रूप तो भगवान ने ही  धारण कर रखे है | जो भी वस्तुये दिखलाई देती है वे सब परमात्मा नारायण के ही रूप है | सारे संसार में सबको भगवान का ही रूप समझकर मन-ही-मन भगवदबुद्धि से सबको प्रणाम करे | एक परमात्मा ने ही अनन्त रूप धारण कर लिए है, इस प्रकार के अभ्यास से भी कल्याण हो जाता है | इस प्रकार शास्त्रों में बहुत उपाय बतलाये गये है | जिसको जो मालूम हो पड़े उसको उसी का साधन करना चाहिये | क्योकि उनमे से किसी भी एक का साधन करने से कल्याण हो सकता है |
वृतिया दो है  अनुकूल और प्रतिकूल | जो मन को अच्छी लगे वः अनुकूल एवं जो मन के विरुद्ध हो वह प्रतिकूल कही जाती है | कोई भी काम जो मन के अनुकूल होता है उसमे स्वाभाविक ही प्रसन्नता होती है और जो मन के प्रतिकूल होता है उसमे दुःख होता है | उस दुःख को भगवान का भेजा हुआ पुरूस्कार समझकर उसमे से प्रतिकूलता को निकाल दे और यह विचार करे की जो कुछ भी होता है भगवान की इच्छा से होता है | भगवान की इच्छा के बिना पेड़ का एक पत्ता तक नहीं हिल सकता |
हम लोग अनुकूल में तो प्रसन्न होते है और प्रतिकूल में द्वेष करते है | भला इस प्रकार कही भगवान मिल सकते है ? भगवान की प्रसन्नता में ही प्रसन्नता का निश्चय करना चाहिये | जो बात मन के अनुकूल होती है उसमे तो ऐसा निश्चय करने में कोई कठिनाई है ही नहीं, लेकिन जो मन के प्रतिकूल हो उसको अनुकूल बना लेना चाहिये | स्मरण रखना चाहिये की भगवान के प्रतिकूल तो वह है नहीं, उनके प्रतिकूल होता तो होता ही कैसे ? इस साधना से भी उद्धार हो सकता है |
वाणी से सत्य बोले,व्यवहार सत्य करे, सत्य का आचरण करे | इससे कल्याण हो सकता है |
साँच बरोबर तप नही झूठ बरोबर पाप |
जाके हिरदै साँच है ताके हिरदै आप ||
सारे संसार में जितने पदार्थ रूप में दिखलाई देते है वे सब सचमुच नाशवान है | वे जैसे है हमारी आँखों के सामने है | उन सब पदार्थो में समबुद्धि कर ले | उनमे से भेदभाव उठा ले | किसी भी वस्तु में भेद न रखे | जैसे शरीर में अपनापन है, भेद नहीं, अंगो में अंतर नहीं; इसी तरह एक-दुसरे में भेद न रखे | सबमे समता कर ले, भेदबुद्धि उठा दे| इस भेदबुद्धि के उठाने से भी कल्याण हो जायेगा |....शेष अगले ब्लॉग में
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!