※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 28 सितंबर 2013

कल्याण प्राप्ति की कई युक्तियां -2-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन कृष्ण, नवमी  श्राद्ध, शनिवार , वि० स० २०७०

 

उठते, बैठते, चलते हर समय नामही का जप किया जाये | नाम को कभी भी न भूले, यह भगवतप्राप्ति का बहुत सुगम उपाय है | कहा भी है

कलिजुग केवल नाम आधारा | सुमिरि सुमिरि भव उतराहू पारा ||

सुमिरि पवनसुत पवन नामु | अपने बस कर राखे रामु ||

अपितु अजामिलु गजू गनिकाऊ | भये मुकुत हरी नाम प्रभाउ ||

एक ऐसा साधन भी है जिससे हर समय आनन्द रहता है और जिसमे परिश्रम भी नही करना पडता | वह है आनन्दमय का अभ्यास | ‘आनन्दमयो अभ्यासात |’ (ब्र० सू० १|१|१२) ‘आनन्द परमात्मा का स्वरूप् है |’ चारो तरफ भीतर-बाहर आनंद-ही-आनन्द भरा हुआ है, सारे सन्सार में आनंद छाया हुआ है | यदि ऐसा दिखलाई न दे तो वाणी से केवल कहते रहो और मन से मानते रहो | जल में डूब जाने, गोता खा जाने के सामान निरन्तर आनंद में ही डूबे रहो और गोता लगते रहो | रात-दिन आनंद में मग्न रहे | किसी की मृत्यु हो जाये, घर में आग लग जाये अथवा और भी कोई अनिष्ट कार्य हो जाये तो आनन्द-ही-आनन्द, कुछ भी हो केवल आनन्द-ही-आनन्द | इस प्रकार का अभ्यास करने से सम्पूर्ण दुःख एवं क्लेश नस्ट हो जाते है | वाणी से उच्चारण करे तो केवल आनंद ही का, मन से मनन करे तो आनंद ही का और बुद्धि से विचार करे तो आनन्द ही का; परन्तु यदि ऐसी प्रतीति न हो तो कल्पित रूप से ही आनन्द का अनुभव करे | इसका भी फल बहुत अच्छा होता है | ऐसा करते-करते आगे चल कर नित्य आनन्द की प्राप्ति हो जाती है | इस साधन को सब कर सकते है | पुराने ज़माने में मुसलमानों के राज्य में हिन्दुओं से कहा गया की तुम मुस्लमान मत बनो, हिन्दू ही रहो एवं हिन्दू धर्म का पालन करो, केवल मुसलमानों में अपना नाम लिखा दो | कोई पूछे तो कहो की हम मुसलमान है | इससमे तुम्हारा क्या बिगड़ता है | उन्होंने यह बात स्वीकार कर ली | आगे चल कर उनकी सन्तान से कजिओ ने कहा की तुम तो मुसलमान हो इसलिये मुसलमानों के धर्म का पालन करो | अन्त में यहाँ तक हुआ के वे लोग कट्टर मुसलमान बन गए | इसी प्रकार हमलोगों को भी यही निश्चय कर लेने से आनन्द-ही-आनन्द हो जायेगा |

भगवान की मूर्ती या चित्र को सामने रखकर तथा आंखे खोल कर उनके नेत्रों से अपने नेत्र मिलावे | त्राटक की भाँती आँखे खोल कर उसमे ध्यान लगा दे | ध्यान के समय यह विश्वाश रखे की इसमें भगवान प्रगट होंगे | विश्वासपूर्वक ऐसा ध्यान करने पर इससे भी भगवान मिल जाते है | यह भी भगवत्प्राप्ति का सुगम साधन है |.........शेष अगले ब्लॉग में.

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!