※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

कल्याण प्राप्ति की कई युक्तियां -1-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन कृष्ण, अष्टमी  श्राद्ध, शुक्रवार , वि० स० २०७०


सभी कार्यो में स्वार्थत्याग प्रधान है | किसी भी वैध-कार्य में स्वार्थ का त्याग होने से नीच-से-नीच प्राणी का भी कल्याण हो जाता है | उतनेही भोगोका अनासक्त भावसे ग्रहण किया जाये जितना शरीर निर्वाह के लिये आवश्यक है | तथा केवल आसक्ति का त्याग कर देने से भी कल्याण हो जाता है | जो कुछ भी करे उसमे अहंकार का त्याग कर दे | किसी भी उत्तम कार्यं में अहंकार को पास न आने दें |

घर में भगवान की मूर्ती रखकर भक्ति-भाव से उसकी पूजा, आरती, स्तुति एवं प्रार्थना करने से भी कल्याण हो जाता है |

प्रतिदिन नियमपूर्वक एकान्त में बैठकर मन से सम्पूर्ण संसार को भूल जावे | इस प्रकार संसार को भुला देने से केवल एक चैतन्य आत्मा शेष रह जाता है | तब उस चैतन्य स्वरुप का ध्यान करें | ध्यान करने से समाधी हो जाती है और मुक्ति हो जाती है |

यह नियम ले-ले की शरीर से वही कार्य निष्काम भाव के साथ किया जायेगा की जिससे दुसरे का उपकार हो | इसके समान कोई भी धर्म नहीं है | भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने कहा है

पर हित सरिस धर्म नहीं भाई | पर पीड़ा सम नहीं अधमाई |

इस नियम को धारण कर लेने से भी संसार की मुक्ति हो जाती है |

यदि इन्द्रियाँ और मन वश में हो तो भगवान का ध्यान ही सबसे बढकर कल्याण का साधन है | यदि मन, इन्द्रियाँ वश में न हो तो ऐसी अवस्था में बिना किसी कामना के केवल आत्मा के कल्याण केलिए व्रत एवं उपवास आदि का साधन करना चाहिये | परमात्मा की प्राप्ति के अतिरिक्त उनसे कुछ भी कामना नहीं करनी चाहिये | इस प्रकार साधन करने से भगवान की प्राप्ति होती है | सारंश यह है की यदि मन एवं इन्द्रियाँ वश में हो तो ध्यानयोग का साधन करे | नहीं तो बिना किसी कामना के केवल भगवान की प्राप्ति के लिये ही तप एवं उपवास आदि का साधन करे | लेकिन इन सबमे भी सुगम उपाय तो भजन ही है |......शेष अगले ब्लॉग में.

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!