|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन कृष्ण,
अष्टमी श्राद्ध, शुक्रवार , वि० स० २०७०
सभी कार्यो में स्वार्थत्याग
प्रधान है | किसी भी वैध-कार्य में स्वार्थ का त्याग होने से नीच-से-नीच प्राणी का
भी कल्याण हो जाता है | उतनेही भोगोका अनासक्त भावसे ग्रहण किया जाये जितना
शरीर निर्वाह के लिये आवश्यक है | तथा
केवल आसक्ति का त्याग कर देने से भी कल्याण हो जाता है | जो कुछ भी करे उसमे अहंकार
का त्याग कर दे | किसी भी उत्तम कार्यं में अहंकार को पास न आने दें |
घर में भगवान की मूर्ती रखकर
भक्ति-भाव से उसकी पूजा, आरती, स्तुति एवं प्रार्थना करने से भी कल्याण हो जाता है
|
प्रतिदिन नियमपूर्वक एकान्त में
बैठकर मन से सम्पूर्ण संसार को भूल जावे | इस प्रकार संसार को भुला देने से केवल
एक चैतन्य आत्मा शेष रह जाता है | तब उस चैतन्य स्वरुप का ध्यान करें | ध्यान करने
से समाधी हो जाती है और मुक्ति हो जाती है |
यह नियम ले-ले की शरीर से वही कार्य निष्काम भाव के
साथ किया जायेगा की जिससे दुसरे का उपकार हो | इसके समान कोई भी धर्म नहीं है |
भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने कहा है
पर हित सरिस धर्म नहीं भाई | पर पीड़ा सम नहीं अधमाई |
इस नियम को धारण कर लेने से भी
संसार की मुक्ति हो जाती है |
यदि इन्द्रियाँ और मन वश में हो तो
भगवान का ध्यान ही सबसे बढकर कल्याण का साधन है | यदि मन, इन्द्रियाँ वश में न हो
तो ऐसी अवस्था में बिना किसी कामना के केवल आत्मा के कल्याण केलिए व्रत एवं उपवास आदि
का साधन करना चाहिये | परमात्मा की प्राप्ति के अतिरिक्त उनसे कुछ भी कामना नहीं
करनी चाहिये | इस प्रकार साधन करने से भगवान की प्राप्ति होती है | सारंश यह है की
यदि मन एवं इन्द्रियाँ वश में हो तो ध्यानयोग का साधन करे | नहीं तो बिना किसी
कामना के केवल भगवान की प्राप्ति के लिये ही तप एवं उपवास आदि का साधन करे | लेकिन
इन सबमे भी सुगम उपाय तो भजन ही है |......शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!