|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन शुक्ल, तृतीया, सोमवार, वि० स० २०७०
यों तो गीता के पाठ से लाभ
है, क्योकि भगवान कहते है की –
अध्येष्यते च य इमं
धर्म्यं संवादमावयो: |
ज्ञानयज्ञैन तेनाह्मिषट: स्यामिति मे मति: || (गीत १८ |७०)
‘हे अर्जुन ! जो पुरुष इस
धर्ममय हम दोनों के संवादरूप गीताशास्त्र को पढ़ेगा अर्थात नित्य पाठ करेगा, उसके
द्वारा मैं ज्ञानयज्ञ से पूजित होऊंगा, ऐसा मेरा मत है |’
इस प्रकार मुक्तिरूप
प्रसादी तो उसे मिल ही जायेगी, पर धारण करने पर तो एक ही श्लोक मुक्ति का दाता हो
सकता है | पूरी गीता का नहीं तो, कम-से-कम एक अध्याय का पाठ तो कर ही लेना चाहिये
| इस प्रकार जिसने चौबीस आवृति कर ली, उसने एक वर्ष में चौबीस ज्ञानीयज्ञ कर डाले
| जो पढना नहीं जानता, वह सुनकर भी यदि आचरण करे तो मुक्तिका अधिकारी हो सकता है|
भगवान कहते है –
अन्ये त्वेवंमजानन्तं:
श्रुत्वान्येभ्य उपासते |
तेअपि चाति तरत्येव
मृत्युं श्रुति परायणा: || (गीता १३ |२५)
‘दुसरे अर्थात जो
मन्दबुद्धि वाले पुरुष है वे स्वय्म इस प्रकार न जानते हुए, दूसरो से अर्थात तत्व
के जाने वाले पुरुषो से सुनकर ही उपासना करते है अर्थात उन पुरुषो के कहने के
अनुसार ही श्रधारहित तत्पर हुए साधन करते
है और वे सुनने के परायण हुए पुरुष भी मृत्यु रूप संसार-सागर को निस्सन्देहः तर
जाते है |’
कितने आदमी नित्य ही गीत
सुनते है पर सुनने से ही काम न चलेगा | आज से ही यह संकल्प कर लेना चाहिये की
प्रत्येक प्रकार से व्यवहार में लाकर हम अपना जीवन गीता के कथनानुसार बनाने की
चेष्टा करेंगे | उत्तम लोगो का अधिकारी तो श्रधा से सुनने वाला भी हो सकता है |
क्योकि भगवान कहते है –
‘जो पुरुष श्रधायुक्त और
दोष दृष्टी से रहित हुआ इस गीताशास्त्र का श्रवण मात्र भी करेगा वह भी पापो से
मुक्त होकर उत्तम करने वालो के श्रेष्ठ लोकोको प्राप्त होवेगा अत एव कम-से-कम गीता
के श्रवण के द्वारा यमराज का द्वार तो बंद कर ही देना चाहिये |…. शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!