|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन शुक्ल, पन्चमी, बुधवार, वि० स० २०७०
शीघ्र
कल्याण कैसे हो ? -8-
सांयकाल की संध्या का भी
सूर्य के रहते करना उतम, अस्त हो जाने पर मध्यम और नक्षत्रो के प्रगट हो जाने पर करना
कनिष्ठ माना जाता है –
उतमा सूर्यसहिता मध्यमा
लुप्तभास्करा |
कनिष्ठ तारकोपेता सांय
संध्या स्मरता ||
मार्जन, आचमन और
प्राणायामादी की विधि को समझकर ही सारी क्रियाए प्रमाद और उपेक्षा का छोडकर
आदरपूर्वक करनी चाहिये, प्रत्येक मन्त्र के पूर्व जो विनियोग छोड़ा जाता है उसमे बतलाये हुए ऋषि, छन्द, देवता और विषय को
समझते हुए मन्त्र का प्रेमपूर्वक शुद्धता और स्पस्टता से उच्चारण करना चाहिये | उस
मन्त्र या श्लोक के प्रायोजन को भी समझ लेने की आवस्यकता है | जैसे –
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा
सर्वावस्थां गतोअपी वा |
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स
बाहान्तर: शुची: ||
इस श्लोक को पढकर हम
बाहर-भीतर की पवित्रता के लिए शरीर का मार्जन करते है | यह विचारने का विषय है की
मन्त्र के उच्चारण से शरीर की पवित्रता होती है या जल के मार्जन से | गौर करने पर यह मालूम होगा की मुख्य बात इन
दोनों से भिन्न ही है | वह यह है की ‘पुण्डरीकाक्ष’ भगवान का स्मरण करने पर मनुष्य
बाहर-भीतर से पवित्र होता है, क्योकि श्लोक का आशय यही है |यदि यह पूछा जाये की
फिर श्लोक पढने और मार्जन करने की आवस्यकता ही क्या है, तो इसका उत्तर यह है की
श्लोक-पाठ का उदेश्य तो परमात्म-स्मृति के महत्व को बतलाना है और मार्जन की
पवित्रता की और लक्ष्य करवाना है | इसी प्रकार सब मन्त्रो,श्लोको और विनियोगों के
तात्पर्य को समझ-समझ कर संध्या करनी चाहिये |…. शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!