|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन शुक्ल, षष्ठी, गुरूवार, वि० स० २०७०
सूर्य भगवान के दर्शन,
ध्यान और अर्ध्य के समय ऐसा समझना चाहिये की हम भगवान का साक्षात् दर्शन और
स्वगातादी कर रहे है | इस प्रकार प्रत्येक बात को खूब समझकर पद-पद पर प्रेम में
मुग्ध होना चाहिये एवं मन में इस बात का दृढ विश्वास रखना की प्रेम और आदरपूर्वक
समय पर सूर्य भगवान की उपासना करते-करते हम उनकी कृपा से अवश्य ही परमधाम को
प्राप्त कर सकेंगे | क्योकि प्रेमी और श्रद्धालु उपासक द्वारा की हुई उपासना की
सुनवायी अवश्य ही होगी | इशोपनिषद में बजी लिखा है की उपासक मरणकाल में परम धाम
में जाने के लिए सूर्य भगवान से प्रार्थना करता है |
हिरण्मयेन
पात्रैणसत्यस्यापिहितं मुखम् |
तत्वं पूषत्रपावृणु सत्यधर्माय
द्रष्ट्यये || (मन्त्र १५)
‘हे सुर्य ! सत्यरूप आपका मुख सुवर्ण-सद्र्श पात्र द्वारा
ढका हुआ है उसको आप हटाईये, जिससे की मुझे आप सत्य धर्म वाले ब्रह्म के दर्शन हो
|’
श्रधा,प्रेम और आदरपूर्वक
उपासना करने वाले उपासक की उपयुक्त प्रार्थना स्वीकृत होती है | यह बात भी
युक्तियुक्त भी है की कोई भी सेवक जब अपने स्वामी की श्रधा और प्रेम से सेवा करता
है तो उतम पुरुष उसके प्रत्युपकारार्थ
अपनी शक्ति के अनुसार उसका हित साधन करता ही है | फिर सूर्य भगवान की श्रधा-भक्ति
से उपासना करने वाले उपासक के कल्याण में तो सन्देह ही क्या है ?
महाभारत में प्रसिद्ध है
की महाराज युधिस्टर ने तो अपने भक्त
कुत्ते को अपने साथ स्वर्ग में ले जाना चाहा था | फिर सूर्य भगवान हमारा कल्याण
करे इसमें तो कहना ही क्या है?
अत: जिन्हें शीघ्र-शीघ्र
परम शान्ति प्राप्त करने की इच्छा हो, उन्हें उचित है की वे अपे समय का सदुपयोग
करते हुए उपर्युक्त शैली से साधन में द्रढ़ता पूर्वक तत्पर हो जाये |
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!