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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन कृष्ण, प्रतिपदा, शनिवार,
वि० स० २०७०
सत्संग और महात्माओं का
प्रभाव -११ –
गत ब्लॉग से आगे….. ‘महात्मा’ शब्द से यहाँ किसी आश्रम
से सम्बन्ध नही है । कोई गृहस्थ हो, सन्यासी हो,
वानप्रस्थी हो या ब्रह्मचारी हो-जिनमे महात्माओं के लक्षण, जो गीता में बताये है,
मिलते है, वे महात्मा है । महात्माओं की महिमा जितनी जितनी गाई जाय, थोड़ी है; जैसे गंगा जी की महिमा जितनी
गाई जाये थोड़ी है । गंगा सारे संसार का उद्धार कर
सकती है, किन्तु यदि कोई गंगा में स्नान करने ही न जाय, गंगा-जलपान करे ही नहीं,
तो इसमें गंगाजी का क्या दोष है । इसी प्रकार कोई महापुरुषों से लाभ नही उठावे तो उसमे महापुरुष का कोई दोष
नहीं ।
एक गंगा से ही सबका कल्याण हो सकता है; क्योकि
शास्त्र में कहा गया है की गंगा में स्नान करने से, उसका जलपान करने से मनुष्यों
के सारे पापों का नाश हो जाता है और आत्मा का उद्धार हो जाता है । गंगाजी की भांति ही महात्मा पुरुष लाखों-करोड़ों
पुरुषों का उद्धार कर सकते है । और सारे संसार के मनुष्यों का उद्धार होना भी कोई असम्भव तो है ही नहीं, हाँ,
कठिन अवश्य है । क्योकि उनमे श्रद्धा हुए बिना तो
कल्याण हो ही नही सकता और श्रद्धा होना कठिन है । प्रथम तो महापुरुष संसार में मिलते ही कठिनता से है;
क्योकि संसार के करोड़ों मनुष्यों में कोई एक महापुरुष होता है-जैसे गीताजी में श्रीभगवान्
ने कहा है-
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वत: ॥ (गीता ७/३)
‘हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए
प्रयत्न करता है । और उन यत्न करने वाले योगियों में
भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से अर्थात यथार्थ रूप से जानता है ।’
भगवान् को जो तत्व से जानता है, वही महात्मा है । प्रथम तो लाखों-करोड़ों में कोई एक महात्मा होता है,
फिर उसका मिलना भी बहुत दुर्लभ है, मिलने पर भी उसे पहचानना उससे भी कठिन है ।.... शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!