※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

सत्संग और महात्माओं का प्रभाव -१० –


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ शुक्ल, पूर्णिमा, शुक्रवार, वि० स० २०७०

 सत्संग और महात्माओं का प्रभाव  -१० –
                  
                                              
गत ब्लॉग से आगे…..  महात्मा पुरुष हमे याद करते है तो उसके ध्यान में हमारा चित आ जाता है इससे भी बहुत लाभ होता है और हम महात्मा को याद करे तो भी हमे लाभ हो जाता है वीतराग पुरुष को याद करने से जो लाभ होता है, उससे अधिक महात्मा को याद करने से होता है और उससे भी अधिक विशेष लाभ श्रीभगवान् को याद करने से होता है स्मरण करने योग्य तो श्रीभगवान् ही है उनकी स्मृति मात्र से मनुष्य का कल्याण हो जाता है भगवान् में शरीर-शरीरी भेद नही है अत: उनका शरीर दिव्य-अलौकिक चिन्मय है परन्तु महात्मा का शरीर ऐसा नही है महात्मा का शरीर तो पंचभौतिक है इसलिए भगवान् को दिव्य-चिन्मय माधुर्य-मूर्ति कहते है उनके दर्शन, भाषण, स्पर्श सभी आनन्दप्रद  और कल्याणकर होते है इसलिए भगवान् के समान तो भगवान् ही है परतु महात्मा पुरुष का स्मरण-सँग भी अत्यंत लाभदायक है महापुरुष के सँग की महिमा बताते हुए कहा गया है-  

एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आध
तुलसी संगत साधू की, कटे कोटि अपराध ।।

एक घड़ी, आधी घड़ी या आधी में भी आधी घड़ी का जो महात्मा पुरुषों का सँग है, उसका इतना महात्म्य है की उससे करोड़ो अपराध कट जाते है यह समझे की एक घड़ी चौबीस मिनट की होती है, आधी बारह मिनट की और आधी से भी आधी यानी चौथाई छ: मिनट की .... शेष अगले ब्लॉग में.

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!