※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

सत्संग और महात्माओं का प्रभाव -१२ –


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण, प्रतिपदा, रविवार, वि० स० २०७०

 सत्संग और महात्माओं का प्रभाव  -१२ –

 

गत ब्लॉग से आगे….. महात्माओं के पहचानने की एक साधारण युक्ति यह है की जैसे अग्नि के समीप जाने से जानेवाले पर अग्नि का कुछ-न-कुछ प्रभाव जरुर पड़ता है, वैसे ही महात्मा के समीप जाने से महात्मा का प्रभाव पड़ता है जैसे सरकार के किसी सिपाही को देखने से सरकार की स्मृति होती है, वैसे ही भगवान् के भक्त के दर्शन से भगवान् की स्मृति होती है जिसका सँग करने से अपने में दैवी सम्पदा के लक्षण आवे, जिसके सँग से, जिसके साथ वार्तालाप करने से, दर्शन से, स्पर्श से आत्मा का सुधार हो, अपने में भक्तों के लक्षण प्रगट होने लगे, गुणातीत पुरुषों के लक्षण आने लगे तो समझना चाहिये की यह महापुरुष है

जब हम महापुरुषों का सँग करने के लिए जाय तो हम यह समझे की हम ज्ञान के पुन्ज् के सम्मुख जा रहे है जैसे सूर्य के सम्मुख जाने से अन्धकार तो दूर भाग ही जाता है, किन्तु अधिक-से-अधिक प्रकाश होता चला जाता है हम देखते है की जब प्रात:काल सूर्य उदय होता है, तब ज्यों-ज्यों सूर्य नजदीक आता है त्यों-ही-त्यों सूर्य के प्रकाश का अधिक असर पड़ता है वैसे ही हम जितने ही महात्माओं के समीप होते है, उतना ही हमको अधिक लाभ मिलता है वे एक ज्ञान के पुंज है, उस ज्ञानपुंज से हमारे अज्ञानान्धकार का नाश होकर हमारे ह्रदय में भी ज्ञान-सूर्य का प्रागटय होता है .... शेष अगले ब्लॉग में.

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!