※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

सत्संग और महात्माओं का प्रभाव -१३ –


।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण , द्वितीया, सोमवार, वि० स० २०७०

 सत्संग और महात्माओं का प्रभाव  -१३ –

                                       
गत ब्लॉग से आगे…..महात्माओं में अद्भुत प्रभाव होता है उनके दर्शन, भाषण, स्पर्श, वार्तालाप से पापों का नाश और दुर्गुण-दुराचारों का अभाव होकर सद्गुण-सदाचार आ जाते है अज्ञान का नाश होकर ह्रदय में ज्ञान आ जाता है, जिससे हमे सहज ही भगवतप्राप्ति हो जाती है यह उन महापुरुषों का प्रभाव है, जो भगवान् के भेजे हुए अधिकारी पुरुष है अथवा जो महापुरुष परमात्मा को प्राप्त हो चुके है ऐसे महात्मा परमात्मा ही बन जाते है इसलिए परमात्मा के गुण-प्रभाव उनके गुण-प्रभाव है, यह समझना ही महात्मा को तत्व से समझना है

वास्तव में महात्मा का आत्मा परमात्मा से अलग नहीं है, पर हम मानते नही, उसे परमात्मा से भिन्न समझते है, इसलिए हम परमात्मा की प्राप्ति से वंचित रहते है यह समझना ही अन्त:करण की शुद्धि होने पर ही होता है

भक्तिमार्ग में भगवान् से भिन्न रहने पर भी भक्तों की स्थिति विलक्षण होती है जैसे जीवन्मुक्त ज्ञानी के दर्शन, भाषण, स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है, वैसे ही भगवत्प्राप्त भगवतभक्त के दर्शन, भाषण, स्पर्श से भी हो जाता है महापुरुषों का रहस्य वास्तव में महापुरुष बनने पर ही समझ में आता है उनके उददेश्य सर्वथा अलौकिक और अदभुत होता है उनका अपना तो कोई कर्म रहता ही नहीं संसार में उनका जो जीवन है यानी शरीर की स्थिति है, तथा जो उनकी चेष्टा है, वह संसार के हित के लिए ही है जैसे भगवान् का अवतार संसार के उद्धार के लिए होता है, वैसे ही महात्मा पुरुषों का जीवन भी संसार क उद्धार के लिए ही है    
           

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!