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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन कृष्ण , तृतीया, मंगलवार,
वि० स० २०७०
वर्तमान दोषों के निवारण
की आवश्यकता -१-
दोषों के निवारण के लिए लिखने का मेरा अधिकार और
सामर्थ्य नही है, क्योकि इस विषय में वही पुरुष लिख सकता है जो सर्वथा निर्दोष एवं
प्रभावशाली हो एवं उसी का असर पड़ता है । मैं तो एक साधारण आदमी हूँ, किन्तु सबके सुझाव के लिए लिखा जाता है ।
वर्तमान समय में हम लोगों में बहुत दोष आ गए है और
बढ़ते ही जा रहे है । उन पर गम्भीरतापूर्वक विचार करके
उसके निवारण के लिए प्रयत्न करना विशेष आवश्यक है ।
बहुत से मनुष्य तो अर्थलोलुप होकर संसार के पतनोन्मुख
प्रवाह में बह रहे है, कितने ही मनुष्य पद के अभिमान और मान-बड़ाई-प्रतिष्ठा के लोभ
से मोहित हुए पतन की और जा रहे है । बहुत
से मनुष्यों को श्रद्धा की कमी के कारण ईश्वर, धर्म, सत्संग और शास्त्र की बातें
अच्छी नही लगती और कोई-कोई तो इन सबको व्यर्थ समझकर उपेक्षा कर देते है । व्यक्तिगत स्वार्थ को त्याग कर अपना और संसार का हित
और परमार्थ साधन की और दृष्टि बहुत ही कम लोगों की है, यह बहुत ही विचारणीय विषय
है । ....शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!