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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, चतुर्दशी, शनिवार,
वि० स० २०७०
ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है -३-
गत ब्लॉग से आगे...दुःख की बात है की पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति
के मोह में पढ़ कर आज हिन्दू-जाति के अधिकांश पढ़े-लिखे लोग दुसरे के आचार-व्यवहार
का अनुकरण कर बोलचाल, रहन-सहन और खान-पान में धर्म विरुद्ध आचरण करने लगे है और
इसके परिणाम स्वरुप वर्णाश्रम-धर्म को न मानने वाली विधर्मी जातियो में विवाह आदि
सम्बंध स्थापित करके वर्ण में संकरता उत्पन्न कर रहे है ।
वर्ण में संकरता आने से
जब वर्ण-धर्म,जाति-धर्म नष्ट हो जायेगा तब आश्रम-धर्म तो बचेगा ही कैसे? अतएव सब
लोगो को बहुत चेष्टा करके पाश्चात्य आचार-व्यवहारो के अनुकरण से स्वयं बचना और
भ्रमवश अनुकरण करने वाले लोगो को बचाना चाहिए ।
हिंदी सनातन धर्म में अत्यंत छोटे से लेकर बहुत बड़े तक सभी
कार्यो का धर्म से सम्बंध है । हिन्दू का जीवन धर्ममय है । उसका जन्मना-मरना,
खाना-पीना, सोना-जागना, देना-लेना, उपार्जन करना और त्याग करना- सभी कुछ धर्म सगत
होना चाहिए ।
धर्म से बाहर उसकी कोई क्रिया नहीं होती । इस धर्म का तत्व ही
वर्णाश्रम-धर्म में भरा है । वर्णाश्रम-धर्म हमे बतलाता है की किसके लिए किस समय,
कौन- सा कर्म किस प्रकार करना उचित है । और इसी कर्म-कौशल से हिन्दू अपने इहलौकिक
जीवन को सुखमय बिता कर अपने सब कर्म भगवान् के अर्पण करता हुआ अंत में मनुष्य-जीवन
के परम ध्येय परमात्मा को प्राप्त कर सकता है ।.....शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्व चिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!