※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 15 मार्च 2014

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है -३-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन शुक्ल, चतुर्दशी, शनिवार, वि० स० २०७०

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है  -३-
 

गत ब्लॉग से आगे...दुःख की बात है की पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति के मोह में पढ़ कर आज हिन्दू-जाति के अधिकांश पढ़े-लिखे लोग दुसरे के आचार-व्यवहार का अनुकरण कर बोलचाल, रहन-सहन और खान-पान में धर्म विरुद्ध आचरण करने लगे है और इसके परिणाम स्वरुप वर्णाश्रम-धर्म को न मानने वाली विधर्मी जातियो में विवाह आदि सम्बंध स्थापित करके वर्ण में संकरता उत्पन्न कर रहे है ।
 
वर्ण में संकरता आने से जब वर्ण-धर्म,जाति-धर्म नष्ट हो जायेगा तब आश्रम-धर्म तो बचेगा ही कैसे? अतएव सब लोगो को बहुत चेष्टा करके पाश्चात्य आचार-व्यवहारो के अनुकरण से स्वयं बचना और भ्रमवश अनुकरण करने वाले लोगो को बचाना चाहिए ।

हिंदी सनातन धर्म में अत्यंत छोटे से लेकर बहुत बड़े तक सभी कार्यो का धर्म से सम्बंध है । हिन्दू का जीवन धर्ममय है । उसका जन्मना-मरना, खाना-पीना, सोना-जागना, देना-लेना, उपार्जन करना और त्याग करना- सभी कुछ धर्म सगत होना चाहिए ।
 
धर्म से बाहर उसकी कोई क्रिया नहीं होती । इस धर्म का तत्व ही वर्णाश्रम-धर्म में भरा है । वर्णाश्रम-धर्म हमे बतलाता है की किसके लिए किस समय, कौन- सा कर्म किस प्रकार करना उचित है । और इसी कर्म-कौशल से हिन्दू अपने इहलौकिक जीवन को सुखमय बिता कर अपने सब कर्म भगवान् के अर्पण करता हुआ अंत में मनुष्य-जीवन के परम ध्येय परमात्मा को प्राप्त कर सकता है ।.....शेष अगले ब्लॉग में

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्व चिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!