※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 16 मार्च 2014

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है -४-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, पूर्णिमा, रविवार, वि० स० २०७०

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है  -४-

 
गत ब्लॉग से आगे...इस धर्ममय जीवन में चार वर्ण और उन चार वर्णों में धर्म की सुव्यवस्था रखे के लिए सबसे प्रथम ब्राह्मण का अधिकार और कर्तव्य माना गया है । ब्राह्मण धर्म-ग्रंथो की रक्षा, प्रचार और विस्तार  करता है और उसके अनुसार तीनो वर्णों से कर्म कराने के व्यवस्था करता है । इसी से हमारे धर्मग्रंथो का  सम्बंध आज भी ब्राह्मण जाति से है और आज भी ब्राह्मण जाति धर्मग्रंथो के अध्ययन के लिए संस्कृत भाषा पढने में सबसे आगे है ।
 
यह स्मरण रखना चाहिए की संस्कृत अनादि भाषा है और सर्वांगपूर्ण है । संस्कृत के सामान वस्तुतः सुसंकृत भाषा दुनिया और कोई है ही नहीं । आज जो संस्कृत की अवहेलना है उसका कारण यही है की संस्कृत राजभाषा तो है ही नहीं, उसे राज्य की और से यथा योग्य आश्रय भी प्राप्त नहीं है और तब तक होना बहुत ही कठिन भी है जब तक हिन्दू-सभ्यता के प्रति श्रधा रखने वाले संस्कृत के प्रेमी शासक न हो ।
 
इस लिए जब तक वैसा नहीं होता, कम-से-कम तब तक प्रत्येक धर्म-प्रेमी पुरुष का कर्तव्य होता है की वह सनातन वैदिक वर्णाश्रम-धर्म की रक्षा के हेतु भूत  ब्राह्मणत्व की और परम धर्म रूप संस्कृत ग्रंथो की एवं संस्कृत भाषा की रक्षा करे ।.....शेष अगले ब्लॉग में

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्व चिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!