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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र कृष्ण, प्रतिपदा, सोमवार, वि० स० २०७०
ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है -५-
(१) पाश्चात्य शिक्षा और सभ्यता के प्रभाव से धर्म के
प्रति अनास्था ।
(२) धर्म,अर्थ,काम, मोक्ष के लिए किये जाने वाले
हमारे प्रत्येक कर्म का सम्बंध धर्म से है और धार्मिक कार्य में ब्राह्मण का संयोग
सर्वथा आवश्यक है, इस सिद्धांत को भूल जाना ।
(३) ज्ञानमार्गी और भक्तिमार्गी पुरुषो के द्वारा जो
वस्तुत: ज्ञान और भक्ति के तत्व को नहीं जानते, ज्ञान और भक्ति के नाम पर कर्मकांड
की उपेक्षा होना, और इसी प्रकार निष्काम कर्म के तत्व की बात को कहने वाले लोगो
द्वारा सकाम कर्म की उपेक्षा करने के भाव से प्रकारान्तर से कर्म कांड का विरोधी
हो जाना ।
(४) संस्कृतग्य ब्राहमण का सम्मान न होना । शास्त्रीय
कर्मकांड की अनावास्यकता मान लेने से ब्राह्मण का अनावश्यक समज्हा जाना ।
(५) कर्मकाण्ड के त्याग और राज्याश्रय न होने से ब्राहमण
की अजीविका में कष्ट होना और उसके परिवार-पालन में बाधा पहुचना ।
(६) त्याग का आदर्श भूल जाने से ब्राह्मणों की भी भोग
में प्रवर्ती होना और भोगो के लिए अधिक धन
की अवश्यकता का अनुभव होना ।
(७)
शास्त्रों में श्रद्धा का घट जाना ।
इस प्रकार के अनेको कारणों से आज ब्राह्मण जाति ब्राह्मणत्व
से विमुख होती जा रही है,जो वर्णाश्रम-धर्म के लिए बहुत ही चिंता की बात है ।.....शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्व चिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!