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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र कृष्ण, द्वितीया, मंगलवार,
वि० स० २०७०
ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है -६-
मनु महाराज ने कहा है -
अधियिरनस्त्र्यो
वर्णाः स्वकर्मस्था दिविजातय: ।
प्रब्रुयाद
ब्राह्मणस्त्वेसाम् नेतराविति निश्चयः ।। (मनु १० । १)
“अपने-अपने
कर्मो में लगे हुए (ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य-तीनो) द्विजाति वेद पढ़े परन्तु इनमे से वेद पढावे ब्राह्मण
ही, क्षत्रिय वैश्य नहीं यह निश्चय है ।”
शास्त्रो
में ब्राह्मण को सबसे श्रेस्ठ बतलाया है । ब्राह्मण की बतलाई हुई विधि से ही धर्म,
अर्थ, कम, मोक्ष चारों की सिद्धी मानी गयी है । ब्राह्मण का महत्व बतलाते हुए
शास्त्र कहते है –
ब्राह्मणोस्य
मुखमासीद बाहु राजन्य: क्रतः ।
ऊरु
तदस्य यद्वैश्य पदाभ्यां शूद्रो अजायत ।। (यजुर्वेद ३१ । ११)
‘श्री भगवान के मुख से ब्राह्मण की,
बाहू से क्षत्रिय की, उरु से वैश्य की और चरणों से शुद्र की उत्पति हुई है ।’
‘जाति की श्रेष्ठता से, उत्पत्ति स्थान की श्रेष्ठता से,
वेद के पढ़ने-पढ़ाने आदि नियमो को धारण करने से तथा संस्कार की विशेषता से ब्राह्मण
सब वर्णों का प्रभु है ।’ (मनु० १० । ३) ।.....शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्व चिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!