※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 18 मार्च 2014

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है -६-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

चैत्र कृष्ण, द्वितीया, मंगलवार, वि० स० २०७०

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है  -६-

 गत ब्लॉग से आगे...यह स्मरण रखना चाहिये की ब्राह्मणत्व की रक्षा ब्राह्मण के द्वारा ही होगी । क्षत्रिय, वैश्य और सूद्र अपने सदाचार,सद्गुण तथा ज्ञान आदि के प्रभाव से भगवन को प्राप्त को कर सकते है; परन्तु वे ब्राह्मण नहीं बन सकते । ब्राह्मण तो वही है जो जन्म से ही ब्राह्मण है और उसी को वेदादि  पढ़ाने का अधिकार है ।

मनु महाराज ने कहा है -
अधियिरनस्त्र्यो वर्णाः स्वकर्मस्था दिविजातय: ।
प्रब्रुयाद ब्राह्मणस्त्वेसाम् नेतराविति निश्चयः ।। (मनु १० । १)
 

“अपने-अपने कर्मो में लगे हुए (ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य-तीनो) द्विजाति वेद पढ़े परन्तु इनमे से वेद पढावे ब्राह्मण ही, क्षत्रिय वैश्य नहीं यह निश्चय है ।”

 
इससे यह सिद्ध होता है की ब्राह्मण के बिना वेद की शिक्षा और कोई नहीं दे सकता और वेद के बिना वैदिक वर्णाश्रम-धर्म नहीं रह सकता, इसलिए ब्राह्मण की रक्षा अत्यंत आवश्यक है ।

शास्त्रो में ब्राह्मण को सबसे श्रेस्ठ बतलाया है । ब्राह्मण की बतलाई हुई विधि से ही धर्म, अर्थ, कम, मोक्ष चारों की सिद्धी मानी गयी है । ब्राह्मण का महत्व बतलाते हुए शास्त्र कहते है –

 
ब्राह्मणोस्य मुखमासीद बाहु राजन्य: क्रतः ।
ऊरु तदस्य यद्वैश्य पदाभ्यां शूद्रो अजायत ।। (यजुर्वेद ३१ । ११)

श्री भगवान के मुख से ब्राह्मण की, बाहू से क्षत्रिय की, उरु से वैश्य की और चरणों से शुद्र की उत्पति हुई है ।’
 

 ‘उत्तम अंग से (अर्थात भगवान के श्री मुख से) उत्पन्न होने तथा सबसे पहले उत्पन्न होने से और वेद के धारण करने से ब्राह्मण इस जगत का धर्म स्वामी होता है । ब्रह्मा ने तप करके हव्य-कव्य पहुचाने के लिए और सम्पूर्ण जगत की रक्षा के लिए अपने मुख से सबसे पहले ब्राह्मण को उत्पन्न किया ।’ (मनु १ । ९३-९४)

 
‘जाति की श्रेष्ठता से, उत्पत्ति स्थान की श्रेष्ठता से, वेद के पढ़ने-पढ़ाने आदि नियमो को धारण करने से तथा संस्कार की विशेषता से ब्राह्मण सब वर्णों का प्रभु है ।’ (मनु० १० । ३) ।.....शेष अगले ब्लॉग में
 

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्व चिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!