※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 19 मार्च 2014

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है -७-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

चैत्र कृष्ण, तृतीया,  बुधवार, वि० स० २०७०

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है  -६-

 गत ब्लॉग से आगे...‘समस्त भूतो में स्थावर (वृक्ष) श्रेस्ठ है । उनसे सर्प आदि कीड़े श्रेस्ठ है । उनसे बोध्युक्त प्राणी श्रेस्ठ है । उनसे मनुष्य और मनुष्यों में प्रथमगण श्रेस्ठ है । प्रथमगण से गन्धर्व और गन्धर्वो से सिद्धगण,सिद्धगण से देवताओ के भर्त्य किन्नर आदि श्रेस्ठ है ।
 
किन्नरों और असुरो की अपेक्षा इन्द्र आदि देवता श्रेस्ठ है । इन्द्रादि देवताओ से दक्ष आदि ब्रह्मा के पुत्र श्रेस्ठ है । दक्ष आदि की अपेक्षा शंकर श्रेस्ठ है और शंकर ब्रह्मा के अंश है इसलिए शंकर से ब्रह्मा श्रेस्ठ है । ब्रह्मा मुझे अपना परम आराध्य परमेश्वर मानते है ।
 
इसलिए ब्रह्मा से में श्रेस्ठ हु और मैं दिज देव ब्राह्मण को अपना देवता या पूजनीय समजह्ता हु । इसलिए ब्राह्मण मुझसे भी श्रेस्ठ है । इस कारण ब्राह्मण सर्व पूजनीय है, हे ब्राह्मणों ! में इस जगत में दुसरे किसी की ब्राह्मणों के साथ तुलना भी नहीं करता फिर उससे बढ़ कर तो किसी को मान ही कैसे सकता हु ।
 
ब्राह्मण क्यों श्रेस्ठ है ?
 
इसका उत्तर तो यही है की मेरे ब्राह्मण रूप मुख में जो श्रधापूर्वक अर्पण किया जाता है (ब्राह्मण भोजन कराया जाता है) उससे मुझे परम तृप्ति होती है; यहाँ तक की मेरे अग्निरूप मुख में हवन रूप करने से भी मुझे वैसी तृप्ति नहीं होती ।’ (श्री मदभागवत ५ । ५ । २१-२३) ।.....शेष अगले ब्लॉग में

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्व चिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!