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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र कृष्ण, तृतीया, बुधवार, वि० स० २०७०
ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है -६-
किन्नरों और असुरो
की अपेक्षा इन्द्र आदि देवता श्रेस्ठ है । इन्द्रादि देवताओ से दक्ष आदि ब्रह्मा
के पुत्र श्रेस्ठ है । दक्ष आदि की अपेक्षा शंकर श्रेस्ठ है और शंकर ब्रह्मा के
अंश है इसलिए शंकर से ब्रह्मा श्रेस्ठ है । ब्रह्मा मुझे अपना परम आराध्य परमेश्वर
मानते है ।
इसलिए ब्रह्मा से में श्रेस्ठ हु और मैं दिज देव ब्राह्मण को अपना
देवता या पूजनीय समजह्ता हु । इसलिए ब्राह्मण मुझसे भी श्रेस्ठ है । इस कारण
ब्राह्मण सर्व पूजनीय है, हे ब्राह्मणों ! में इस जगत में दुसरे किसी की
ब्राह्मणों के साथ तुलना भी नहीं करता फिर उससे बढ़ कर तो किसी को मान ही कैसे सकता
हु ।
ब्राह्मण क्यों श्रेस्ठ है ?
इसका उत्तर तो यही है की मेरे ब्राह्मण रूप मुख
में जो श्रधापूर्वक अर्पण किया जाता है (ब्राह्मण भोजन कराया जाता है) उससे मुझे
परम तृप्ति होती है; यहाँ तक की मेरे अग्निरूप मुख में हवन रूप करने से भी मुझे
वैसी तृप्ति नहीं होती ।’ (श्री मदभागवत ५ । ५ । २१-२३) ।.....शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्व चिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!