※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 13 मार्च 2014

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन शुक्ल, द्वादशी, गुरूवार, वि० स० २०७०

ब्राह्मणत्व की रक्षा परम आवश्यक है  -१-
 

हिंदू जाति की आज जो दुर्दशा है,वह पराधीन है, दीन है, दुखी है और सभी प्रकार से अवनत है; इसके कारण पर विचार करते समय आजकल कुछ भाई ऐसा मत प्रकट किया करते है की वर्णाश्रम-धर्म के कारण ही हिन्दू जाति की ऐसी दुर्दशा हुई है ।

वर्णाश्रम-धर्म न होता तो हमारी ऐसी स्थिति न होती । परन्तु विचार करने पर मालूम होता है की इस मत को प्रकट करने वाले भाईओ ने वर्णाश्रम-धर्म के तत्व को वस्तुत: समझा ही नहीं है ।
 
सच्ची बात तो यह है की जब तक इस देश में वर्ण आश्रम-धर्म का सुचारू रूप से पालन होता था । तब तक देश स्वाधीन था तथा यहाँ पर प्राय: सभी  प्रकार की सुख-समृधि थी । जबसे वर्णाश्रम-धर्म के पालन में अवेहलना होने लगी, तभी से हमारी दशा बिगड़ने लगी । इतने पर भी वर्णाश्रम-धर्म की द्रढ़ता ने ही हिन्दू जाति को बचाए रखा है ।
 
वर्णाश्रम  न होता और उसपर हिन्दू जाति की आस्था न होती तो शताब्दियों में होने वाले आक्रमणों से और विजेताओ के प्रभाव से हिन्दू जाति से अब तक नष्ट हो गयी होती ।...शेष अगले ब्लॉग में

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्व चिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!