※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 12 मार्च 2014

अनावश्यक भोजन का त्याग आवश्यक


।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, एकादशी, बुधवार, वि० स० २०७०
 
अनावश्यक भोजन का त्याग आवश्यक
 
कुछ स्त्रियाँ अज्ञानवश ऐसा मानती है की अधिक भोजन करने से मनुष्य हष्ट-पुष्ट, बलिष्ठ और वीर्यवान होता है इस दृष्टि से वे आग्रह करके अपने पुरुषों को अधिक भोजन करवा दिया करती है किन्तु यह उनकी भूल धारणा है अत: स्त्रियों से निवेदन है की वे न तो स्वयं ही स्वाद या हित की भावना से अधिक भोजन करे और न पुरुषों को ही आग्रहपूर्वक अधिक भोजन करावे
 
आसानी से जितना पच सके, उतना ही खाना खिलाना चाहिये, बल्कि भूख से कुछ कम आहार करना ही लाभदायक होता है उससे अन्न का भली-भांति परिपाक होता है और बल, बुद्धि, तेज, तुष्टि-पुष्टि आदि की वृद्धि होती है
 
स्त्रियों का कर्तव्य है के पति की इच्छानुसार उत्तम भोजन बनावे तथा उसकी इच्छाके अनुसार ही परोसे आग्रहपूर्वक अधिक परोसने से या तो जूठ छोड़ेंगे या अधिक खा लेंगे तो उसका विष के तुल्य परिणाम होगा और नाना प्रकार के रोग उत्पन्न होंगे
 
मनु स्मृति में बतलाया गया है-
‘अधिक भोजन करना आरोग्य, आयु, स्वर्ग और पुण्य का नाशक और लोकनिन्दित है, इसलिये उसे त्याग दे    (मनु० स्मृति २/५७)  
  
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!