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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, एकादशी, बुधवार, वि० स० २०७०
अनावश्यक भोजन का त्याग आवश्यक
कुछ स्त्रियाँ अज्ञानवश ऐसा मानती है की अधिक भोजन करने से
मनुष्य हष्ट-पुष्ट, बलिष्ठ और वीर्यवान होता है । इस दृष्टि से वे आग्रह करके अपने पुरुषों को अधिक
भोजन करवा दिया करती है । किन्तु यह उनकी भूल धारणा है । अत: स्त्रियों से निवेदन है की वे न तो स्वयं ही स्वाद या हित की भावना से
अधिक भोजन करे और न पुरुषों को ही आग्रहपूर्वक अधिक भोजन करावे ।
आसानी से जितना पच सके, उतना ही खाना खिलाना चाहिये,
बल्कि भूख से कुछ कम आहार करना ही लाभदायक होता है । उससे अन्न का भली-भांति परिपाक होता है और बल,
बुद्धि, तेज, तुष्टि-पुष्टि आदि की वृद्धि होती है ।
स्त्रियों का कर्तव्य है के पति की इच्छानुसार उत्तम
भोजन बनावे तथा उसकी इच्छाके अनुसार ही परोसे । आग्रहपूर्वक अधिक परोसने से या तो जूठ छोड़ेंगे या
अधिक खा लेंगे तो उसका विष के तुल्य परिणाम होगा और नाना प्रकार के रोग उत्पन्न
होंगे ।
मनु स्मृति में बतलाया गया है-
‘अधिक भोजन करना आरोग्य, आयु, स्वर्ग और पुण्य का नाशक और
लोकनिन्दित है, इसलिये उसे त्याग दे ।’ (मनु० स्मृति २/५७)
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!