।।
श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण, त्रयोदशी, रविवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-सिद्धान्त-१३-
गत ब्लॉग से आगे…..... एक दिन जलपान देते समय एक रसगुल्ला उनकी कटोरी के लग
कर पाटे पर गिर गया । परोसने वाले ने कहा की यह बच्चे को दे देवे तो सेठजी ने बहुत
जोर से गर्म होकर सामने खड़े अपने अनुज मोहनलाल जी गोयन्दका से कहा-देख मोहन ! यह
मेरे साथ दुर्व्यवहार कर रहा है, मुझे तो ऐसे ही लोग बदनाम करते है फिर मैं बोलने
लायक नहीं रहूँगा । कोई है जहाँ जो इसे जमीन में गड्ढा खोदकर नष्ट कर दे ।
* * * *
किसी धनी व्यक्ति ने कहा की हमारे यहाँ महात्मा बहुत आते
हैं । सेठजी बोले की पैसा देखकर जो आते है वे महात्मा नहीं होते ।
* * * *
यों तो सेठजी को सारी गीता याद थी और उनके एक-एक श्लोक
प्रिय थे; परन्तु फिर भी कुछ श्लोक विशेष प्रिय प्रतीत होते थे-जिनमे स्वयं सेठजी
का जीवन झांकता था –
कर्मण्यकर्म य: पश्येदकर्मणि च कर्म
य: ।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्त:
कृत्स्नकर्मकृत् ॥
४ /१८ ॥
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि
पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न
प्रणश्यति ॥
गीता ६ / ३० ॥
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना:
पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं
वहाम्यहम् ॥
९ / २२ ॥
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्त:
परस्परम्।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च
रमन्ति च ॥
१० /९ ॥
भक्त्या मामभिजानाति
यावान्यश्चास्मि तत्त्वत: ।
ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते
तदनन्तरम् ॥
१८ / ५५ ॥
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां
नमस्कुरु ।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने
प्रियोऽसि मे ॥
१८ / ६५ ॥
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं
व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो
मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥ १८ / ६६ ॥
* * * *
प्रिय भजन:- यों तो सेठजी कई भजन गाया करते थे; किन्तु निम्न
भजन उन्हें विशेष प्रिय था-
उड़ जायेगा रे हँस अकेला, दिन दोय का दर्शन मेला ।। टेर।।
राजा भी जाएगा, जोगी भी जायेगा, गुरु भी जायेगा चेला ।। १ ।।
माता-पिता भाई-बन्धु भी जायेंगे, और रुपयों का थैला ।। २ ।।
तन भी जायेगा, मन भी जायेगा, तू क्यों भया है गैला ।। ३ ।।
तू भ जायेगा, तेरा भी जायेगा, यह सब माया का खेला ।। ४ ।।
कोडी रे कोडी माया जोड़ी, सँग चलेगा न अधेला ।। ५ ।।
साथी रे साथी तेरे पार उतर गए, तू क्यों रहा अकेला ।। ६ ।।
राम-नाम निष्काम रटो नर, बीती जात है बेला ।। ७ ।।
कीर्तन में उन्हें श्रीमन्ननारायण नारायण नारायण का गान
विशेष प्रिय था । ...... शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!