|| श्री हरी ||
परमार्थसूत्र-संग्रह
- चेतावनी
v प्रथम तो मनुष्य का शरीर मिलना कठिन है और यदि मिल जाये तो
भी भारतभूमि में जन्म होना, कलियुग में होना तथा वैदिक सनातन धर्म प्राप्त होबा
दुर्लभ है | इससे भी दुर्लभतर शास्त्रों के तत्व और रहस्य बतलाने वाले पुरुषो का
संग है | इसलिये जिन पुरुषो को उपयुक्त
संयोग प्राप्त हो गए है, वे यदि परमशांति और परमआनंदायक परमात्मा की प्राप्ति से वंचित रहे
तो इससे बढकर उनकी मूढ़ता क्या होगी |
v चीटी से लेकर देवराज इंद्र की योनी तक को हम लोग भोग चुके
है, किन्तु साधन न होने के कारण हमलोग भटक रहे है और जब तक तत्पर होकर साधन नहीं
करेंगे तबतक भटकते ही रहेंगे |
v मनुष्य-जन्म सबसे उतम एवं अत्यंत दुर्लभ और भगवान् की विशेष
कृपा का फल है | ऐसे अमूल्य जीवन को पाकर जो मनुष्य आलस्य, भोग,प्रमाद और दुराचार
में समय बिता देता है वह महान मूढ़ है | उसको घोर पश्चाताप करना पड़ेगा |
v समय बड़ा मूल्यवान है | मनुष्य का शरीर मिल गया, यह भगवान की
बड़ी दया है | अब भी यदि भगवद प्राप्ति से वंचित रह गए तो हमारे सामान मुर्ख कौन
होगा | हमे अपने अमूल्य समय को अमूल्य कार्य में ही लगाना चाहिये | भगवान की
स्मृति अमूल्य है | इस प्रकार नित्य विचार करना चाहिये |
v यह मनुष्य शरीर हमे बार-बार नहीं मिलने का | ऐसे दुर्लभ
अवसर को यदि हमने हाथ से ख दिया तो फिर सिवा पछताने के और कुछ हाथ नहीं लगेगा |
v भगवान ने हमे मुक्ति का पासपोर्ट दे दिया है | अब जो कुछ
कमी है वह केवल हमारी और से है |
v यह जीवन हमे सांसारिक भोग भोगने के लिए नहीं मिला है |
v बारम्बार विचार करना चाहिये की आप किस लिए आये थे, यहाँ
क्या करना चाहिये और आप क्या कर रहे है |
v जब आपका शरीर छूट जाएगा तब शरीर और रूपये किस का आवेंगे? सब
कुछ मिटटी में मिल जायेगा |
नारायण
नारायण नारायण
परमार्थसूत्र-संग्रह , जयदयाल गोयन्दका, पुस्तक कोड-५४३,
गीताप्रेस, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश