※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -१-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
21 April 2015, Tuesday


आजकल इस देश में गोधन का प्रतिदिन हास् होता जा रहा है, जिससे गोदुग्ध एवं कई लाभों के अभाव में हाहाकार मचा हुआ है शास्त्रत: और लोकत: विचार करके देखे तो मालूम होगा की धनों में गोधन एक प्रथम सरक्षणीय है अत: हम सब को अपनी शक्ति के अनुसार अपने गोधन की सेवा करनि चाहिए हम सब यदि गौओं की सेवा न करे तो यह हम सब कृतघ्नता ही कही जायेगी
वास्तव में गौ की सेवा-के विषय में कहने का मैं अधिकारी भी नही नही हूँ ; क्योकि जैसे आप लोग दूध पीते है ऐसे ही मैं भी दूध पीता हूँ गौ सेवा आप भी नही करते और मुझसे भी नही बनती इस कारण भी मैं अधिकारी नही हूँ अच्छे पुरुष, जिन्होंने गौओं की सेवा की है, उनके द्वारा तथा शास्त्र के द्वारा अपने को जो शिक्षा मिल रही है, उसको आधार बना कर हम लोगों को गौ सेवा करनी चाहिए
पूर्व के ज़माने में नन्द के यहाँ लाखों गाये थी विराट के पास करीब एक लाख गाये थी दुःख की बात है इस इस समय गौएँ काफी मात्रा में मारी जा रही है यह क़ानून है की १४ वर्ष से कम आयु की गौएँ न मारी जाय, किन्तु यह कानून केवल सरकारी कागजों में ही है यह कानून काम में लाने के लिए नही बनाया गया है, केवल लोगों को दीखाने के वास्ते बनाया गया है, ताकि लोगों में उतेजना न हो छोटे-छोटे बछड़े-बछिया भी मारे जाते है; क्योकि उनका चमडा मुलायम होता है, बढ़िया होता है अपने आप मर जाने वाली गौ का चमडा कठोर होता है, उनके जुते ख़राब और सस्ते होते है और जीवित गौ का या बछड़े-बछिया का चमडा उतारा जाय तो वह ज्यादा मुलायम होता है मुलायम चमड़े से बनी हुई टोपी, घडी, बैग और जूता आदि महंगे बिकते है ......शेष अगले ब्लॉग में       
     
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!