※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -२-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
22 April 2015, Wednesday


कुछ सज्जन कलकत्ते के कसाईखाने में गए थे गौओं की हत्या किस प्रकार होती है, इसके विषय में उन्होंने बताया की गौओं के ऊपर गरम  खूब खौलता हुआ पानी छिड़का जाता है, जिससे उनका चमडा मुलायम हो जाता है खौलते पानी की छिड़क कर लाठियों से उसको मारा जाता है , जिससे चमडा फूल जाय और खूब मुलायम हो जाय इसके बाद उसके जीते ही उसका उसका चमड़ा उतारा जाता है, चमड़ा उतारते हुए वह कांपती, डकराती-छ्टपटाती, तड़प-तड़पकर मर जाती है किसी-किसी कसाईखाने में तो गाय को मार-मारकर उसका चमडा उतारा जाता है, ऐसी भी बात सुनी है और किसी में ऐसा सुना है की पहले चमडा उतार लिया जाता है फिर वह मर जाती है या उसका कत्ल कर दिया जाता है उनका कहना है की चमडा पहले इसलिए उतार लिया जाता है की जिससे जायदा मुलायम रहे यह भी बताते है की के जो जुटे बनते है, वे एक नम्बर के होते है
इस पाप के भागी छ: होते है (१) गाय को कसाई के हाथ बिक्री करने वाले, (२) गाय के वध के लिए सलाह-आज्ञा देने वाले, (३) गाय को मारने वाले, (४) मॉस खरीदने या पकाने वाले, (५) गौ मासं भक्षण करने वाले और (६) चमडा या अन्य अवयव से बनी वस्तुओं का उपभोग करने वाले ये सभी सामान रूप से पाप के भागी होते है ......शेष अगले ब्लॉग में       
     
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!