※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -३-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
23 April 2015, Thursday


मॉस के विषय में मनु जी ने बतलाया है की हिंसा करनेवाले, उसमे सम्मति देने वाले, बिक्री करने वाले, पकाने और खाने वाले-ये सभी सामान-भाव से पाप के भागी होते है इस बात को सुन कर आप सबको इसके विरोध में आज से ही प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिए की जिन होटलों में गौ मॉस पकाया जाता है, हम कभी उन होटलों में नही जायेंगे कुछ लोग कहते है की हम होटलों में तो जाते है पर मॉस नही खाते  मॉस भले ही न खाओ पर उसका रस दाल में, भात में, परसने वाली चम्मच आदि के द्वारा पड जाता होगा, सारे सामानों में चम्मच पड़ती ही होगी, हाथ वही, संसर्ग वही उसके परमाणू तो आ ही जाते है इसलिए होटलों में न जाने की शपथ लेनी चाहिए होटलों में न जाने से मर तो जायेंगे नही, होटलों में गए बिना भी बहुत लोग जी रहे है, कोई मर नही रहे है यह एक मामूली बात है इसलिए हमलोगों को यह प्रतिज्ञा कर ही लेनी है की किसी भी होटल में जाकर भोजन नही करेंगे यह भी मामूली बात है इसलिए हमलोगों को यह प्रतिज्ञा ही कर लेनी चाहिये की किसी भी होटल में जाकर हम भोजन नही करेंगे यह भी मामूली बात है, उत्तम बात यह है की बाजार की कोइ चीज न खाई जाय; चाहे खोमचे का हो या मिठाई हो अथवा पान हो या चाय;  क्योकि बाजार की सभी चीजे अपवित्र होती है उनमे घी अपवित्र, चीनी अपवित्र, जल अपवित्र-सभी अपवित्र इतना त्याग न कर सके तो कम से कम होटलों में खाने का त्याग तो कर ही देना चाहिए          ......शेष अगले ब्लॉग में    
        
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!