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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
1 May 2015, Friday
कलकत्ते में जो भाई लोग रहते है, उनको कलकत्ते में
पिजरापोल गऊशाला की सेवा करनी चाहिए । सभी जगह पिजरापोल गऊशाला है ही, उसकी सेवा करना भी गऊ की सेवा है । हर एक प्रकार से दूध की वृद्धि करनी चाहिए । जो ठाली (ठाठ) गऊ है, वृद्ध गऊ है उसकी भी सेवा करनी
चाहिए । इस विषय में कितने भाई तो कहते है
की गऊशाला में जो ठाली गऊ है यानी बुड्ढी गऊ है, निकम्मी गौ है उसकी सेवा करनी
चाहिए, उनकी वृद्धि करनी चाहिए, दूध वाली गऊ बेच देनी चाहिए । कितने कहते है की अपने सभी लोगों को दोनों
प्रकार की गऊ की सेवा करनी चाहिए । कितने कहते है की नया डेयरी-फार्म खोलना चाहिए,
दूधवाली गऊ की सेवा करनी चाहिए, ठाली गऊ अगर मरे तो मर जाय । इस तरह की आवाज आती है ।
इन बातों से मुझे तो यही बात अच्छी मालूम देती है की
सभी गऊओं की सेवा करनी चाहिए, चाहे जवान हो, चाहे बूढी हो । जवान की सेवा दूध के लिए करनी चाहिए और बुड्ढी की
सेवा धर्म के लिए करनी चाहिए । अपने घर में जितने मनुष्य होते है, कोई बूढ़े तो कोई जवान होते है, सबकी सेवा
करना अपना कर्तव्य है । बूढों के सेवा इसलिए की उन्होंने हमारी सेवाकी है , वे हमारी सेवा करते करते
बूढ़े हो गए । आजकल लोग यह कहते है की “बूढ़े
जल्दी-से-जल्दी मर जाय” यह हमारी भावना,
हमारी बुरी नीयत है । हमको तो यह भव रखना चाहिए की
“हमारे बूढ़े माता-पिता सौ वर्षों तक जिए ।” हमारी भावना से वे सौ वर्षो तक जिए तो वे
जियेंगे नही । हम कह दे कल ही मर जायं, तो मरेगे नही । अपनी इच्छा से न तो कोई जीएगा न कोई मरेगा । उनके मरने की इच्छा करके हमने अपराध कर लिया । तो स्वयम अपराध क्यों करे, हमे तो बढ़िया-से-बढ़िया
इच्छा रखनी चाहिए । सब गउओं की सेवा होनी चाहिए,
जीव-मात्र की सेवा होनी चाहिए ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल
गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!