※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

भगवान् के प्रेम और रहस्य की बातें


भगवान् के प्रेम और रहस्य की बातें

भगवान् के प्रेम और रहस्य की बातें Jaydayal Ji Goyandka- Sethji आज भगवान् के प्रेम, प्रभाव और रहस्य की बातें कहने का विचार किया गया है। एक सज्जन ने कहा कि धर्म की लुटिया डूब रही है। इस विषय में निवेदन है कि आपको यह विश्वास रखना चाहिये कि जिसका नाम सनातन है, उसका कभी विनाश नहीं हो सकता। हाँ, किसी समय दब जाता है, किसी समय जोर पकड़ लेता है। लोग इस समय इसके नाश के लिये कटिबद्ध हो रहे हैं, पर हम लोगों को उस अनन्त शक्तिमान की शक्ति सहारा लेकर इसके प्रचार के लिये निमित्त मात्र बन जाना चाहिये। यश ले लो, निमित्त मात्र बन जाओ। जो कोई अपनी सामर्थ्य मानता है, उसे भगवान् मुँह-तोड़ उत्तर देते हैं। शक्ति भगवान् की है और अपनी माने, भगवान् इसको नहीं सहते। केनोपनिषद्की कथा है-एक बार देवता ओं को अपने बल का अभिमान हो गया। यक्ष रूपमें  भगवान् प्रकट हुए। अग्नि, वायु, इन्द्र क्रमश: उनके पास गये। पूरे ब्रह्मांड को जलाने, उड़ाने की बात करनेवाले एक तिनके को भी जलाने, उड़ाने में असमर्थ हो गये। उमा के रूप में साक्षात् परमात्मा ने प्रकट होकर इन्द्र को बताया कि सारी शक्ति, तेज-प्रभाव सब कुछ भगवान् का ही है।  यही बात हम लोगों को समझनी चाहिये। जो कोई भी अभिमान से बात करता है, उसे भगवान् नहीं सह सकते। हाँ, स्वामी के बल पर हम लोगों को किसी से डरने की क्या आवश्यकता है। पुलिस के दस रुपये महीने के सिपाही के मन में एक बड़े करोड़पति सेठ को, जिसके दरवाजे पर बन्दूकों के पहरे लगते हैं, हथकड़ी डालकर ले जाने में क्या भय होता है? उसके पीछे सरकार का बल है। इसी प्रकार जो कोई भी अच्छे काम में निमित्त बनना चाहता है, उसे भगवान् बना देते हैं। पुलिस का सिपाही होकर भी जो कहे कि मैं सेठ को कैसे पकड़ सकता हूँ-वह पुलिस की नौकरी के लायक नहीं है। भगवान् के दास होकर अपनी कमजोरी का विचार क्यों करें। भगवान् का बल है। जो धर्म से डरता है, उसके सारे कार्य अन्त में सिद्ध होते हैं।  हरिश्चन्द्र देखिये-कितने संकट आये। राज्य चला गया, पुत्र मर गया, स्त्री शव लेकर जलाने आती है, हरिश्चन्द्र स्वामी का कर माँगते हैं। स्त्री कहती है-महाराज यह आपका पुत्र है, इसके लिये कफन ही नहीं है, कर कहाँ से दूँ। राजा कहते हैं तू अपना आधा वस्त्र कर के रूपमें दे दे, उसे बेचकर कर जमा करा दूंगा। रानी कहती है, काट लें। हरिश्चन्द्र तलवार लेकर ज्यों-ही काटना चाहते हैं, बस भगवान् प्रकट हो जाते हैं, भगवान् और नहीं सह सकते। हरिश्चन्द्र के धर्म पालन के परिणाम स्वरूप सारे नगर का उद्धार हो गया। धर्म पालन में यदि कष्ट नहीं होता तो सभी धर्मपरायण हो जाते। इस कष्ट सहन का परिणाम देखो। इस प्रकार के परोपकारी जीवों की चरण धूलि के लिये भगवान् उनके पीछे-पीछे फिरते हैं। ब्रह्मा कहते हैं-हमारे मस्तक पर चरण धरकर हमें पवित्र करके आप लोग आगे जाइये। कितनी बड़ी बात कहते हैं।  शक्ति भगवान् की, भगवान् करवाते हैं, सब कुछ भगवान् का ही है। पर भगवान् शक्ति किसे देते हैं, जो लेना चाहता है। हम लोग मूर्खता वश अभिमान कर बैठते हैं कि मेरी शक्ति है। बस 'मैं (अहंकार)' आते ही भगवान् का थप्पड़ लगता है, चेत हो जाता है। यह भगवान् की कृपा है। गुरु जैसे थप्पड़ लगाकर चेत करा देते हैं। भगवान् अपने भक्त का अभिमान नहीं सह सकते।  माँ बच्चे के रोने की परवाह न करके फोड़ा चिरवा ही देती है। अतः लक्ष्मण की तरह बोलो 'तव प्रताप बल नाथ।' यह मत भूलो। भगवान् के बल का आश्रय रखो। उसके बल पर सब हो सकता है। चूरू में मोचियों के पास एक राज कर्मचारी कर लेने के लिये गया। उनके अभी कर देने में असमर्थता जताने पर राजकर्मचारी उन्हें गालियाँ देने लगा। उसके हाथ में राजकीय छड़ी थी। मोचियों ने कहा-हम महाराज साहब की छड़ी का सम्मान करते हुए आपकी गालियाँ सहन कर रहे हैं। उसने छड़ी फेंक दी। मोचियों ने उसकी खूब पिटाई की। राजा के पास शिकायत जाने पर मोचियों ने कहा-अन्नदाता ! इसने आपकी छड़ी फेंक दी। हमें यह कैसे सहन होती। इसी प्रकार हम अपना प्रभाव मानें, तब जूते पड़ेगे। जैसे उस कर्मचारी को मोचियों के जूते पड़े और हमारे यमराज के पड़ेगे।  भगवान् शक्ति को समझने पर कुछ भी दुर्लभ नहीं है। आप को भय करने की आवश्यकता नहीं, कितना ही बड़ा काम हो-भगवान् की कृपा से सब कुछ हो सकता है। एक मामूली व्यक्ति सारे संसार में भगवान् के भावों का प्रचार कर सकता है।  भगवान् कहते हैं—  न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः।  भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि।।  (गीता १८। ६९)  उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करनेवाला मनुष्यों में कोई भी नहीं है; तथा पृथ्वी भार में उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्य में होगा भी नहीं।      - श्री जयदयाल जी गोयन्दका -सेठजी    पुस्तक- भगवत्प्राप्ति की अमूल्य बातें , कोड-2027, गीताप्रेस गोरखपुर

आज भगवान् के प्रेम, प्रभाव और रहस्य की बातें कहने का विचार किया गया है। एक सज्जन ने कहा कि धर्म की लुटिया डूब रही है। इस विषय में निवेदन है कि आपको यह विश्वास रखना चाहिये कि जिसका नाम सनातन है, उसका कभी विनाश नहीं हो सकता। हाँ, किसी समय दब जाता है, किसी समय जोर पकड़ लेता है। लोग इस समय इसके नाश के लिये कटिबद्ध हो रहे हैं, पर हम लोगों को उस अनन्त शक्तिमान की शक्ति सहारा लेकर इसके प्रचार के लिये निमित्त मात्र बन जाना चाहिये। यश ले लो, निमित्त मात्र बन जाओ। जो कोई अपनी सामर्थ्य मानता है, उसे भगवान् मुँह-तोड़ उत्तर देते हैं। शक्ति भगवान् की है और अपनी माने, भगवान् इसको नहीं सहते। केनोपनिषद्की कथा है-एक बार देवता ओं को अपने बल का अभिमान हो गया। यक्ष रूपमें  भगवान् प्रकट हुए। अग्नि, वायु, इन्द्र क्रमश: उनके पास गये। पूरे ब्रह्मांड को जलाने, उड़ाने की बात करनेवाले एक तिनके को भी जलाने, उड़ाने में असमर्थ हो गये। उमा के रूप में साक्षात् परमात्मा ने प्रकट होकर इन्द्र को बताया कि सारी शक्ति, तेज-प्रभाव सब कुछ भगवान् का ही है।
यही बात हम लोगों को समझनी चाहिये। जो कोई भी अभिमान से बात करता है, उसे भगवान् नहीं सह सकते। हाँ, स्वामी के बल पर हम लोगों को किसी से डरने की क्या आवश्यकता है। पुलिस के दस रुपये महीने के सिपाही के मन में एक बड़े करोड़पति सेठ को, जिसके दरवाजे पर बन्दूकों के पहरे लगते हैं, हथकड़ी डालकर ले जाने में क्या भय होता है? उसके पीछे सरकार का बल है। इसी प्रकार जो कोई भी अच्छे काम में निमित्त बनना चाहता है, उसे भगवान् बना देते हैं। पुलिस का सिपाही होकर भी जो कहे कि मैं सेठ को कैसे पकड़ सकता हूँ-वह पुलिस की नौकरी के लायक नहीं है। भगवान् के दास होकर अपनी कमजोरी का विचार क्यों करें। भगवान् का बल है। जो धर्म से डरता है, उसके सारे कार्य अन्त में सिद्ध होते हैं।
हरिश्चन्द्र देखिये-कितने संकट आये। राज्य चला गया, पुत्र मर गया, स्त्री शव लेकर जलाने आती है, हरिश्चन्द्र स्वामी का कर माँगते हैं। स्त्री कहती है-महाराज यह आपका पुत्र है, इसके लिये कफन ही नहीं है, कर कहाँ से दूँ। राजा कहते हैं तू अपना आधा वस्त्र कर के रूपमें दे दे, उसे बेचकर कर जमा करा दूंगा। रानी कहती है, काट लें। हरिश्चन्द्र तलवार लेकर ज्यों-ही काटना चाहते हैं, बस भगवान् प्रकट हो जाते हैं, भगवान् और नहीं सह सकते। हरिश्चन्द्र के धर्म पालन के परिणाम स्वरूप सारे नगर का उद्धार हो गया। धर्म पालन में यदि कष्ट नहीं होता तो सभी धर्मपरायण हो जाते। इस कष्ट सहन का परिणाम देखो। इस प्रकार के परोपकारी जीवों की चरण धूलि के लिये भगवान् उनके पीछे-पीछे फिरते हैं। ब्रह्मा कहते हैं-हमारे मस्तक पर चरण धरकर हमें पवित्र करके आप लोग आगे जाइये। कितनी बड़ी बात कहते हैं।
शक्ति भगवान् की, भगवान् करवाते हैं, सब कुछ भगवान् का ही है। पर भगवान् शक्ति किसे देते हैं, जो लेना चाहता है। हम लोग मूर्खता वश अभिमान कर बैठते हैं कि मेरी शक्ति है। बस 'मैं (अहंकार)' आते ही भगवान् का थप्पड़ लगता है, चेत हो जाता है। यह भगवान् की कृपा है। गुरु जैसे थप्पड़ लगाकर चेत करा देते हैं। भगवान् अपने भक्त का अभिमान नहीं सह सकते।
माँ बच्चे के रोने की परवाह न करके फोड़ा चिरवा ही देती है। अतः लक्ष्मण की तरह बोलो 'तव प्रताप बल नाथ।' यह मत भूलो। भगवान् के बल का आश्रय रखो। उसके बल पर सब हो सकता है। चूरू में मोचियों के पास एक राज कर्मचारी कर लेने के लिये गया। उनके अभी कर देने में असमर्थता जताने पर राजकर्मचारी उन्हें गालियाँ देने लगा। उसके हाथ में राजकीय छड़ी थी। मोचियों ने कहा-हम महाराज साहब की छड़ी का सम्मान करते हुए आपकी गालियाँ सहन कर रहे हैं। उसने छड़ी फेंक दी। मोचियों ने उसकी खूब पिटाई की। राजा के पास शिकायत जाने पर मोचियों ने कहा-अन्नदाता ! इसने आपकी छड़ी फेंक दी। हमें यह कैसे सहन होती। इसी प्रकार हम अपना प्रभाव मानें, तब जूते पड़ेगे। जैसे उस कर्मचारी को मोचियों के जूते पड़े और हमारे यमराज के पड़ेगे।
भगवान् शक्ति को समझने पर कुछ भी दुर्लभ नहीं है। आप को भय करने की आवश्यकता नहीं, कितना ही बड़ा काम हो-भगवान् की कृपा से सब कुछ हो सकता है। एक मामूली व्यक्ति सारे संसार में भगवान् के भावों का प्रचार कर सकता है।
भगवान् कहते हैं—
न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः।
भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि।।
(गीता १८। ६९)
उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करनेवाला मनुष्यों में कोई भी नहीं है; तथा पृथ्वी भार में उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्य में होगा भी नहीं।


- श्री जयदयाल जी गोयन्दका -सेठजी 

पुस्तक- भगवत्प्राप्ति की अमूल्य बातें , कोड-2027, गीताप्रेस गोरखपुर