※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

भगवत्प्राप्ति कठिन नहीं


भगवत्प्राप्ति कठिन नहीं


भगवत्प्राप्ति कठिन नहीं  Shri Jaydayal Ji goyandka कलयुग में बहुत-से भक्त हुए हैं। नरसी, सूरदास तुलसीदास जी, गौरांग महाप्रभु आदि जीवनी से प्रतीत होता है कि उनको भगवान् की प्राप्ति हुई थी।  ईश्वर प्रेम से मिलते हैं, इसमें कोई देश, काल बाधक नहीं है। भगवान् सभी जगह हैं, वे सभी जगह मिल सकते हैं। यदि ऐसा होता कि भगवान् हरिद्वार में होते तो हरिद्वार में ही मिलते, लाहौर, अमृतसर में नहीं, परन्तु वे सब जगह हैं। उनके लिये कोई काल बाधक नहीं है। सतयुग में भगवान् का भजन, ध्यान करनेवाले अधिक थे, तब कानून कड़ा था। अब जब भजन करने वाले कम हुए तो कानून भी हलका हो गया।  सबसे बढ़कर भगवान् का भजन, ध्यान, नाम का जप और सत्-पुरुषों का संग है। पानी का जल, वाटर, नीर कुछ भी कहो एक ही बात है, इसी प्रकार हरि, राम, अल्लाह, गॉड एक ही बात है। भाषा अलग है, चीज वही है। हम को जो नाम अधिक रुचिकर हो वही हमारे लिये हितकर है। सभी भगवान् के नाम हैं।  जो निराकार के उपासक हों उनके लिये ॐ नाम बताया गया है। जो राम के उपासक हैं उनके लिए राम, कृष्ण के उपासक हो उनके लिये कृष्ण नाम है। वस्तु से दो चीज नहीं है, किन्तु एक ही सच्चिदानन्दघन परमात्मा कभी विष्णु रूप से, कभी राम रूप से, कभी कृष्ण रूप से प्रकट होते हैं, वस्तु एक ही है। विष्णुसहस्रनाम में भगवान् विष्णु के एक हजार नाम लिखे हैं। चाहे जिस नाम से उन्हें पुकारो। जिसको जिस नाम से प्राप्ति होती है, वह उसी नाम को श्रेष्ठ बताते हैं। नाम सब भगवान् के ही हैं।  मिश्री किसी प्रकार भी खाओ, मुँह मीठा ही होगा। यह बात अवश्य है कि माला पर जप करनेसे से संख्या की गिनती रखने से नाम-जप अधिक हो सकता है, किन्तु हर काम करते समय नाम-जप करते ही रहें।  गोपियाँ हर-एक पदार्थ में भगवान् का दर्शन किया करती थीं। काम करते समय भी और काम नहीं करते समय भी। हरि ब्यापक सर्बत्र समाना। भगवान् के प्रेमी निर्बल नहीं होते। वे सब कुछ कर सकते हैं। भगवान् उनके अधीन हो जाते है। दुर्वासा ऋषि भगवान् के पास गये। अपना अपराध क्षमा करनेके लिये प्रार्थना की। भगवान् ने कहा-यह मेरे हाथ की बात नहीं है। मैं तो भक्त के अधीन हूँ। आप अम्बरीष के पास ही जायँ ।  भगवान् विश्वास के योग्य हैं। उनमें विश्वास करनेसे काम हो जाता है। हजारों मनुष्यों में कोई एक पुरुष ही भगवान् की प्राप्ति के लिये प्रयत्न करता है। उन भक्तों में भी किसी एक भक्त के ही भगवान् अधीन होते हैं। भगवान् की प्राप्ति बहुत कठिन नहीं है, किन्तु दूसरों को भगवान् की प्राप्ति करा देना यह कठिन बात है।  एक पुरुष भगवान् को स्वयं प्राप्त कर लेता है और एक दूसरों को भी प्राप्त करा सकता है। ऐसे पुरुष मिलने बहुत कठिन हैं। गौरांग महाप्रभु में यह माना जा सकता है कि वे दूसरोंको भी प्राप्ति करा सकते थे।  प्रश्न-आप आशीर्वाद दे दीजिये।  उत्तर-आशीर्वाद वे ही दे सकते हैं, जिनको भगवान् ने अधिकार दे रखा है। मैं साधारण मनुष्य हूँ आशीर्वाद और वरदान वे ही पुरुष दे सकते हैं, जिनके पास अधिकार होता है। मुझे भी भगवान् अधिकार दे देते तो मैं भी आशीर्वाद दे देता। मैं यदि आशीर्वाद दूँ तो बिना अधिकार रजिस्ट्री करने वाले की जैसी फजीहत होती है वैसी ही मेरी भी होगी।  प्रश्न-माला कौन-सी फेरनी चाहिये? उत्तर-जो शंकर की उपासना करता है उसके लिये रुद्राक्ष की और कृष्ण, राम, विष्णु की उपासना करने वाले के लिये तुलसी या चन्दन की उत्तम मानी गई है।  एकांत में बैठकर भगवान् के आगे रोये, हे नाथ! आप क्यों नहीं आये? आप तो दास के अपराधों की ओर देखते ही नहीं। भगवान् के लिये विलाप करे और कभी-कभी यह समझकर कि भगवान् हमारे पास ही बैठे हैं, उनसे बात करे। स्वयं ही प्रश्न करे और स्वयं ही उत्तर भी दे। मान-बड़ाई, प्रतिष्ठा से खूब डरना चाहिये।  जन-समूह का संग कम करना चाहिये। मनुष्य जैसा संग करता है वैसा ही प्रभाव उसपर होता है।  जो मनुष्य आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन कर सके, उसके लिये शास्त्र यही आज्ञा देगा कि ब्रह्मचर्य का पालन करो और भगवान् की भक्ति करो।  बसहिं भगति मनि जेहि उर माहीं । खल कामादि निकट नहिं जाहीं॥ भगवान् के ऊपर निर्भर रहना चाहिये, वे ही सब प्रकार निभाते हैं, उनका काम यही है। खूब विश्वास रखना चाहिये। निश्चिन्त रहना चाहिये। बिलकुल चिन्ताकी गुंजाइश ही नहीं दे। हमें किस चीजका भय है?  स्त्रियों में स्त्रियों द्वारा ही प्रचार करना ठीक है । बहुत-सी स्त्रियाँ इकट्ठी होकर सत्संग करें तो अच्छी बात है। कुछ भी चाहना नहीं करें। प्रेम करनेके योग्य परमात्मा ही हैं। - श्री जयदयाल जी गोयन्दका -सेठजी  पुस्तक- भगवत्प्राप्ति की अमूल्य बातें , कोड-2027, गीताप्रेस गोरखपुर


कलयुग में बहुत-से भक्त हुए हैं। नरसी, सूरदास तुलसीदास जी, गौरांग महाप्रभु आदि जीवनी से प्रतीत होता है कि उनको भगवान् की प्राप्ति हुई थी।
ईश्वर प्रेम से मिलते हैं, इसमें कोई देश, काल बाधक नहीं है। भगवान् सभी जगह हैं, वे सभी जगह मिल सकते हैं। यदि ऐसा होता कि भगवान् हरिद्वार में होते तो हरिद्वार में ही मिलते, लाहौर, अमृतसर में नहीं, परन्तु वे सब जगह हैं। उनके लिये कोई काल बाधक नहीं है। सतयुग में भगवान् का भजन, ध्यान करनेवाले अधिक थे, तब कानून कड़ा था। अब जब भजन करने वाले कम हुए तो कानून भी हलका हो गया।
सबसे बढ़कर भगवान् का भजन, ध्यान, नाम का जप और सत्-पुरुषों का संग है। पानी का जल, वाटर, नीर कुछ भी कहो एक ही बात है, इसी प्रकार हरि, राम, अल्लाह, गॉड एक ही बात है। भाषा अलग है, चीज वही है। हम को जो नाम अधिक रुचिकर हो वही हमारे लिये हितकर है। सभी भगवान् के नाम हैं।
जो निराकार के उपासक हों उनके लिये ॐ नाम बताया गया है। जो राम के उपासक हैं उनके लिए राम, कृष्ण के उपासक हो उनके लिये कृष्ण नाम है। वस्तु से दो चीज नहीं है, किन्तु एक ही सच्चिदानन्दघन परमात्मा कभी विष्णु रूप से, कभी राम रूप से, कभी कृष्ण रूप से प्रकट होते हैं, वस्तु एक ही है। विष्णुसहस्रनाम में भगवान् विष्णु के एक हजार नाम लिखे हैं। चाहे जिस नाम से उन्हें पुकारो। जिसको जिस नाम से प्राप्ति होती है, वह उसी नाम को श्रेष्ठ बताते हैं। नाम सब भगवान् के ही हैं।
 मिश्री किसी प्रकार भी खाओ, मुँह मीठा ही होगा। यह बात अवश्य है कि माला पर जप करनेसे से संख्या की गिनती रखने से नाम-जप अधिक हो सकता है, किन्तु हर काम करते समय नाम-जप करते ही रहें।
गोपियाँ हर-एक पदार्थ में भगवान् का दर्शन किया करती थीं। काम करते समय भी और काम नहीं करते समय भी।
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना।
भगवान् के प्रेमी निर्बल नहीं होते। वे सब कुछ कर सकते हैं। भगवान् उनके अधीन हो जाते है। दुर्वासा ऋषि भगवान् के पास गये। अपना अपराध क्षमा करनेके लिये प्रार्थना की। भगवान् ने कहा-यह मेरे हाथ की बात नहीं है। मैं तो भक्त के अधीन हूँ। आप अम्बरीष के पास ही जायँ ।
 भगवान् विश्वास के योग्य हैं। उनमें विश्वास करनेसे काम हो जाता है। हजारों मनुष्यों में कोई एक पुरुष ही भगवान् की प्राप्ति के लिये प्रयत्न करता है। उन भक्तों में भी किसी एक भक्त के ही भगवान् अधीन होते हैं। भगवान् की प्राप्ति बहुत कठिन नहीं है, किन्तु दूसरों को भगवान् की प्राप्ति करा देना यह कठिन बात है।
एक पुरुष भगवान् को स्वयं प्राप्त कर लेता है और एक दूसरों को भी प्राप्त करा सकता है। ऐसे पुरुष मिलने बहुत कठिन हैं। गौरांग महाप्रभु में यह माना जा सकता है कि वे दूसरोंको भी प्राप्ति करा सकते थे।
प्रश्न-आप आशीर्वाद दे दीजिये।
उत्तर-आशीर्वाद वे ही दे सकते हैं, जिनको भगवान् ने अधिकार दे रखा है। मैं साधारण मनुष्य हूँ आशीर्वाद और वरदान वे ही पुरुष दे सकते हैं, जिनके पास अधिकार होता है। मुझे भी भगवान् अधिकार दे देते तो मैं भी आशीर्वाद दे देता। मैं यदि आशीर्वाद दूँ तो बिना अधिकार रजिस्ट्री करने वाले की जैसी फजीहत होती है वैसी ही मेरी भी होगी।
प्रश्न-माला कौन-सी फेरनी चाहिये?
उत्तर-जो शंकर की उपासना करता है उसके लिये रुद्राक्ष की और कृष्ण, राम, विष्णु की उपासना करने वाले के लिये तुलसी या चन्दन की उत्तम मानी गई है।
एकांत में बैठकर भगवान् के आगे रोये, हे नाथ! आप क्यों नहीं आये? आप तो दास के अपराधों की ओर देखते ही नहीं। भगवान् के लिये विलाप करे और कभी-कभी यह समझकर कि भगवान् हमारे पास ही बैठे हैं, उनसे बात करे। स्वयं ही प्रश्न करे और स्वयं ही उत्तर भी दे।
मान-बड़ाई, प्रतिष्ठा से खूब डरना चाहिये।
जन-समूह का संग कम करना चाहिये। मनुष्य जैसा संग करता है वैसा ही प्रभाव उसपर होता है।
जो मनुष्य आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन कर सके, उसके लिये शास्त्र यही आज्ञा देगा कि ब्रह्मचर्य का पालन करो और भगवान् की भक्ति करो।
बसहिं भगति मनि जेहि उर माहीं । खल कामादि निकट नहिं जाहीं॥
भगवान् के ऊपर निर्भर रहना चाहिये, वे ही सब प्रकार निभाते हैं, उनका काम यही है। खूब विश्वास रखना चाहिये। निश्चिन्त रहना चाहिये। बिलकुल चिन्ताकी गुंजाइश ही नहीं दे। हमें किस चीजका भय है?

स्त्रियों में स्त्रियों द्वारा ही प्रचार करना ठीक है । बहुत-सी स्त्रियाँ इकट्ठी होकर सत्संग करें तो अच्छी बात है। कुछ भी चाहना नहीं करें। प्रेम करनेके योग्य परमात्मा ही हैं।

- श्री जयदयाल जी गोयन्दका -सेठजी 

पुस्तक- भगवत्प्राप्ति की अमूल्य बातें , कोड-2027, गीताप्रेस गोरखपुर