श्रीभगवानकी प्राप्तिकी इच्छावाले पुरुषोँको संसारसे वैराग्य और भगवानमेँ प्रेम हो-इसके लिए विशेष चेष्टा करनी चाहिए।साधन मेँ विक्षेप,आलस्य,भोग,प्रमाद आदि अनेक विघ्न हैँ, उनमेँ मनकी चंचलता अर्थात विक्षेपऔर आलस्य-ये दो प्रधान है; किँतु संसारसे वैराग्य और भगवानमेँ प्रेम होनेपर इन सबका अपने-आप ही विनाश हो सकता है।अतः संसारसे वैराग्य और भगवानमेँ प्रेम होनेके लिए ही विशेष प्रयत्न करनेकी आवश्यकता है।
संसारसे वैराग्य होनेका उपाय है-संसारको नाशवान्,क्षण-भङ्गुर,दुःखरुप,घृणित,हानि कर और भयदायक समझना,वैराग्यवान पुरुषोँका संग करना,वैराग्यविषयक पुस्तकेँ पढ़ना और चित्तमेँ वैराग्यकी भावना करना।इनसे संसारमेँ वैराग्य हो जाता है।
भगवानमेँ प्रेम होनेका उपाय है-
भगवानके नाम,रुप,लीला,धामके गुण,प्रभाव,तत्त्व रहस्यकी बातोँको सुनना,पढ़ना और मनन करना, भगवानमेँ जिनका प्रेम है,उन पुरुषोँका संग करना; भगवानसे सच्चे हृदयसे करुणाभावपूर्वक गद्गदकण्ठ हो स्तुति-प्रार्थना करना; 'भगवान मेरे है और मैँ भगवानका हूँ'-इस प्रकार भगवानके साथ अपना नित्य-संबंध समझना; मनसे भगवानका दर्शन,भाषण,स्पर्श,वार्तालाप और चिंतन करना तथा हर समयनिष्कामभावसे भगवानके नाम-रुपको स्मरण रखना।ऊपर बतलायी हुई इन सभी बातोँपर श्रद्धा-विश्वास करके उनको काममेँ लानेसे बहुत शीघ्र भगवानमेँ प्रेम हो सकता है।
जब साधकका संसारसे वैराग्य और भगवानमेँ अनन्य प्रेम हो जाता है,तब फिर दुर्गुण,दुराचार,दुर्व्यसन,सां
-श्रद्धेय जयदयालजी गोयंदका 'सेठजी'