※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

जीव ईश्वरका अंश है।

जीव ईश्वरका अंश है।जैसे लड़का पिताका अंश होता है,ईश्वर हमारा पिता है और प्रकृति ईश्वरकी शक्ति है। ईश्वरकी शक्ति होनेसे वह हमारी माता है।ईश्वर पिता है और प्रकृति शक्ति मेरी माता है-

          माता च कमला देवी पिता देवो जनार्दनः।
          बान्धवा विष्णुभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्॥
    
 कमलादेवी माता है।इन्हेँ चाहे ईश्वरकी शक्ति कहो या लक्ष्मी और जनार्दन पिता हैँ।जनार्दनको भगवान कहो या विष्णु।भगवान ईश्वर हैँ तो वह ईश्वरी।भगवान हुए हमारे पिता और वे हुई हमारी माता।गीता मेँ भी ऐसी बात है भगवानने गीताके चौदहवेँ अध्यायमेँ कहा है कि यह जो महत ब्रह्म है उसका नाम प्रकृति है।प्रकृति गर्भको धारण करनेवाली माता है और मैँ बीजको देनेवाला पिता हूँ।प्रकृति सबकी योनि है और मैँ बीजको देनेवाला पिता हूँ।इससे सारे संसारकी उत्त्पत्ति होती है।इससे यह बात सिद्ध हुई कि सारा संसार प्रजा है,भगवानकी संतान हैँ।हम सभी जितने चराचर प्राणी है,प्राणधारी है,देहधारी हैँ-ये सभी भगवानकी संतान हुए और भगवान हुए हमारे पिता तथा उसकी जो प्रकृति शक्ति है वह हुई हमारी माँ।हमलोग परस्परमेँ हुए भाई।इसलिए सबको भाई समझना चाहिए।सब कुछ- तीनोँ लोक परमात्माका है।सभी परमात्माके रचे हुए हैँ।परमात्मा ही मालिक है।इस वास्ते तीनो लोक परमात्माका होनेसे और परमात्मा हमारे पिता हैँ,इस वास्ते तीनो लोक ही हमारा स्वदेश होगया। यह नहीँ कि भारतवर्ष ही हमारा स्वदेश है बल्कि तीनो लोक ही हमारा स्वदेश है।शंका होती है,मानलो यदि एक आदमी भारतवर्षकी उन्नति करता है और यूरोप,अमेरिका,अफ्रीका आदि की अवनति हो उसकी अपनेको कोई चिँता नहीँ? क्योँकि भारतवर्ष ही हमारा स्वदेश है ठीक है यह भी बुद्धि है,किँतु यह एकदेशीय बुद्धि है।जिनका यह भाव है कि अफ्रिका,अमेरिका,यूरोप-ये सब हमारे ही देश हैँ,क्योँकि हम सबलोग एक भगवानकी संतान हैँ और हम सभीके पिता एक ही हैँ।उसे चाहे मुसलमान भाई अल्लाह,खुदा कहेँ;अंग्रेज GOD कहेँ,आर्यसमाजी भाई ॐ कहेँ और सनातनधर्मी श्रीराम,श्रीकृष्ण कहेँ।उस परमात्माके बहुत से नाम हैँ,किँतु परमात्मा तो एक ही है,अनेक नहीँ है।इस वास्ते सारे दुनियामेँ मनुष्य के ही नहीँ बल्कि जितने प्राणी है उन सभी जीवमात्र के माता-पिता, प्रकृति-पुरुष ही हैँ।प्रकृति पुरुषसे सारे जीवोँकी उत्त्पत्ति हुई।

-श्रद्धेय जयदयालजी गोयन्दका 'सेठजी''
'इसी जन्म मेँ परमात्मा प्राप्ति' नामक पुस्तक से,पृष्ट सं॰138