॥ श्रीहरिः ॥
*भगवन्नाम का रहस्य*.
इसमेँ तनिक भी संदेह नहीँ कि भगवानके नाममेँ पापोँको नाश करनेकी बड़ी भारी शक्ति है ।
'नाम अखिल अघपुंज नसावन'-यह उक्ति सर्वथा सत्य है; परंतु लोग इसका रहस्य नहीँ जानने के कारण इसका दुरुपयोग कर बैठते हैँ । वे सोचते हैँ कि नाममेँ पाप-नाशकी महान शक्ति है ही; अभी पाप कर लेँ फिर नाम लेकर उसे धो डालेँगे । यह सोचकर वे अधिकाधिक पाप-पङ्कमेँ फँसते ही चले जाते हैँ । वे यह नहीँ विचारते कि यदि वास्तवमेँ उनकी यह मान्यता ठीक हो, तब तो नामका जप पापोँका विनाशक नहीँ, प्रत्युत वृद्धि करनेवाला ही सिद्ध हुआ; क्योँकि फिर तो सभी लोग नामका आश्रय लेकर मनचाहा पाप करने लगेँगे और इससे वर्तमान कालकी अपेक्षा भविष्यमेँ पापोँकी संख्या बहुत अधिक बढ़ जायगी । जिस प्रकार पुलिस की पोशाक पहनकर चोरी करनेवाला अन्य चोरकी अपेक्षा अधिक दण्डनीय होता है, उसी प्रकार भगवन्नामकी ओट लेकर पाप करनेवाला व्यक्ति अधिक दण्डका पात्र हो जाता है; क्योँकि उसके पाप वज्रलेप हो जाते हैँ; बिना भोगे उसका विनाश नहीँ होता । नामकी आड़ लेकर पाप करना तो नामके दस अपराधोँमेँ से एक नापापराध है ।
नामके दस अपराध ये हैँ-
सन्निन्दासति नामवैभवकथा श्रीशेशयोर्भेदधीरश्रद्धा श्रुतिशास्त्रदैशिकगिरां नाम्न्यर्थवादभ्रमः।
नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ हि धर्मान्तरैः साम्यं नामजपे शिवस्य च हरेर्नामापराधा दश॥
१-सत्पुरुष-ईश्वरका भजन-ध्यान करनेवालोँकी निँदा,
२-अश्रद्धालुओँमेँ नामकी महिमा कहना,
३-विष्णु और शिवके नामरुपमेँ भेद-बुद्धि,
४-५-६-वेद-शास्त्र और गुरुके द्वारा कहे हुए नाम-माहात्म्यमेँ अविश्वास,
७-हरिनाममेँ अर्थवादका भ्रम अर्थात् नाम-महिमा केवल स्तुतिमात्र है, ऐसी मान्यता,
८-९- नामके बलपर विहितका त्याग और निषिद्धका आचरण
१०- अन्य धर्मोँसे नामकी तुलना यानी शास्त्रविहित कर्मोँसे नामकी तुलना-
ये सब भगवान शिव और विष्णुके नाम-जपमेँ नामके दस अपराध हैँ ।
इन दस अपराधोँसे अपनेको न बचाते हुए जो नामका जप करते हैँ, वे नाम के रहस्यको नहीँ समझते ।
वाणी के द्वारा नाम जपनेकी अपेक्षा मनसे-जपना सौगुना अधिक लाभदायक है और वह मानसिक जप भी श्रद्धा-प्रेमसे किया जाय तो शीघ्र परमात्माकी प्राप्ति करानेवाला है । अतः इस रहस्यको भलीभाँति समझकर भगवान्नामका आश्रय लेना चाहिए ।
*भगवन्नाम का रहस्य*.
इसमेँ तनिक भी संदेह नहीँ कि भगवानके नाममेँ पापोँको नाश करनेकी बड़ी भारी शक्ति है ।
'नाम अखिल अघपुंज नसावन'-यह उक्ति सर्वथा सत्य है; परंतु लोग इसका रहस्य नहीँ जानने के कारण इसका दुरुपयोग कर बैठते हैँ । वे सोचते हैँ कि नाममेँ पाप-नाशकी महान शक्ति है ही; अभी पाप कर लेँ फिर नाम लेकर उसे धो डालेँगे । यह सोचकर वे अधिकाधिक पाप-पङ्कमेँ फँसते ही चले जाते हैँ । वे यह नहीँ विचारते कि यदि वास्तवमेँ उनकी यह मान्यता ठीक हो, तब तो नामका जप पापोँका विनाशक नहीँ, प्रत्युत वृद्धि करनेवाला ही सिद्ध हुआ; क्योँकि फिर तो सभी लोग नामका आश्रय लेकर मनचाहा पाप करने लगेँगे और इससे वर्तमान कालकी अपेक्षा भविष्यमेँ पापोँकी संख्या बहुत अधिक बढ़ जायगी । जिस प्रकार पुलिस की पोशाक पहनकर चोरी करनेवाला अन्य चोरकी अपेक्षा अधिक दण्डनीय होता है, उसी प्रकार भगवन्नामकी ओट लेकर पाप करनेवाला व्यक्ति अधिक दण्डका पात्र हो जाता है; क्योँकि उसके पाप वज्रलेप हो जाते हैँ; बिना भोगे उसका विनाश नहीँ होता । नामकी आड़ लेकर पाप करना तो नामके दस अपराधोँमेँ से एक नापापराध है ।
नामके दस अपराध ये हैँ-
सन्निन्दासति नामवैभवकथा श्रीशेशयोर्भेदधीरश्रद्धा श्रुतिशास्त्रदैशिकगिरां नाम्न्यर्थवादभ्रमः।
नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ हि धर्मान्तरैः साम्यं नामजपे शिवस्य च हरेर्नामापराधा दश॥
१-सत्पुरुष-ईश्वरका भजन-ध्यान करनेवालोँकी निँदा,
२-अश्रद्धालुओँमेँ नामकी महिमा कहना,
३-विष्णु और शिवके नामरुपमेँ भेद-बुद्धि,
४-५-६-वेद-शास्त्र और गुरुके द्वारा कहे हुए नाम-माहात्म्यमेँ अविश्वास,
७-हरिनाममेँ अर्थवादका भ्रम अर्थात् नाम-महिमा केवल स्तुतिमात्र है, ऐसी मान्यता,
८-९- नामके बलपर विहितका त्याग और निषिद्धका आचरण
१०- अन्य धर्मोँसे नामकी तुलना यानी शास्त्रविहित कर्मोँसे नामकी तुलना-
ये सब भगवान शिव और विष्णुके नाम-जपमेँ नामके दस अपराध हैँ ।
इन दस अपराधोँसे अपनेको न बचाते हुए जो नामका जप करते हैँ, वे नाम के रहस्यको नहीँ समझते ।
वाणी के द्वारा नाम जपनेकी अपेक्षा मनसे-जपना सौगुना अधिक लाभदायक है और वह मानसिक जप भी श्रद्धा-प्रेमसे किया जाय तो शीघ्र परमात्माकी प्राप्ति करानेवाला है । अतः इस रहस्यको भलीभाँति समझकर भगवान्नामका आश्रय लेना चाहिए ।