※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

*भगवन्नाम का रहस्य*

॥ श्रीहरिः ॥


*भगवन्नाम का रहस्य*.




इसमेँ तनिक भी संदेह नहीँ कि भगवानके नाममेँ पापोँको नाश करनेकी बड़ी भारी शक्ति है
 'नाम अखिल अघपुंज नसावन'-यह उक्ति सर्वथा सत्य है; परंतु लोग इसका रहस्य नहीँ जानने के कारण इसका दुरुपयोग कर बैठते हैँ । वे सोचते हैँ कि नाममेँ पाप-नाशकी महान शक्ति है ही; अभी पाप कर लेँ फिर नाम लेकर उसे धो डालेँगे । यह सोचकर वे अधिकाधिक पाप-पङ्कमेँ फँसते ही चले जाते हैँ । वे यह नहीँ विचारते कि यदि वास्तवमेँ उनकी यह मान्यता ठीक हो, तब तो नामका जप पापोँका विनाशक नहीँ, प्रत्युत वृद्धि करनेवाला ही सिद्ध हुआ; क्योँकि फिर तो सभी लोग नामका आश्रय लेकर मनचाहा पाप करने लगेँगे और इससे वर्तमान कालकी अपेक्षा भविष्यमेँ पापोँकी संख्या बहुत अधिक बढ़ जायगी । जिस प्रकार पुलिस की पोशाक पहनकर चोरी करनेवाला अन्य चोरकी अपेक्षा अधिक दण्डनीय होता है, उसी प्रकार भगवन्नामकी ओट लेकर पाप करनेवाला व्यक्ति अधिक दण्डका पात्र हो जाता है; क्योँकि उसके पाप वज्रलेप हो जाते हैँ; बिना भोगे उसका विनाश नहीँ होता । नामकी आड़ लेकर पाप करना तो नामके दस अपराधोँमेँ से एक नापापराध है । 


नामके दस अपराध ये हैँ-

सन्निन्दासति नामवैभवकथा श्रीशेशयोर्भेदधीरश्रद्धा श्रुतिशास्त्रदैशिकगिरां नाम्न्यर्थवादभ्रमः।
नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ हि धर्मान्तरैः साम्यं नामजपे शिवस्य च हरेर्नामापराधा दश॥


१-सत्पुरुष-ईश्वरका भजन-ध्यान करनेवालोँकी निँदा,

 २-अश्रद्धालुओँमेँ नामकी महिमा कहना, 
३-विष्णु और शिवके नामरुपमेँ भेद-बुद्धि,
 ४-५-६-वेद-शास्त्र और गुरुके द्वारा कहे हुए नाम-माहात्म्यमेँ अविश्वास,
 ७-हरिनाममेँ अर्थवादका भ्रम अर्थात् नाम-महिमा केवल स्तुतिमात्र है, ऐसी मान्यता,
 ८-९- नामके बलपर विहितका त्याग और निषिद्धका आचरण 
१०- अन्य धर्मोँसे नामकी तुलना यानी शास्त्रविहित कर्मोँसे नामकी तुलना-


ये सब भगवान शिव और विष्णुके नाम-जपमेँ नामके दस अपराध हैँ ।
इन दस अपराधोँसे अपनेको न बचाते हुए जो नामका जप करते हैँ, वे नाम के रहस्यको नहीँ समझते ।
वाणी के द्वारा नाम जपनेकी अपेक्षा मनसे-जपना सौगुना अधिक लाभदायक है और वह मानसिक जप भी श्रद्धा-प्रेमसे किया जाय तो शीघ्र परमात्माकी प्राप्ति करानेवाला है । अतः इस रहस्यको भलीभाँति समझकर भगवान्नामका आश्रय लेना चाहिए ।