※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 26 नवंबर 2011


                        अथ श्री प्रेमभक्तिप्रकाश 






परमात्माकी शरणमें प्राप्त हुए पुरुषका मन परमात्मासे प्राथना करता है :--


हे प्रभो ! हे विश्वम्भर ! हे दीनदयालो ! हे कृपासिन्धो ! हे अन्तर्यामिन् ! हे पतितपावन ! हे सर्वशक्तिमान् ! हे दीनबन्धो ! हे नारायण ! हे हरे ! दया करिये, दया करिये ! हे अन्तर्यामिन् ! आपका नाम संसारमें दयासिन्धु और सर्वशक्तिमान् विख्यात है, इसलिये दया करना आपका काम है! 


हे प्रभो! यदि आपका नाम पतितपावन है तो एक बार आकर दर्शन दीजिये! मैं आपको बारंबार प्रणाम करके विनय करता हूँ; हे प्रभो ! दर्शन देकर कृतार्थ करिए ! 


हे प्रभो! आपके बिना इस संसारमें मेरा और कोई भी नहीं है, एक बार दर्शन दीजिये, दर्शन दीजिये; विशेष न तरसाइये ! आपका नाम विश्वम्भर है, फिर मेरी आशाको क्यों  नहीं पूर्ण करते है! हे करुणामय ! हे दयासागर ! दया करिए ! आप दयाके समुद्र हैं, इसलिए किञ्चित् दया करनेसे आप दयासागरमें कुछ दयाकी त्रुटी नहीं हो जाएगी! आपकी किञ्चित दयासे सम्पूर्ण संसारका उद्धार हो सकता है, फिर एक तुच्छ जीवका उद्धार करना आपके लिए कौन बड़ी बात है?


 हे प्रभो ! यदि आप मेरे कर्तव्यको देखें तब इस संसारसे मेरा निस्तार होनेका कोई उपाय ही नहीं है! इसलिए आप अपने पतितपावन नामकी और देखकर इस तुच्छ जीवको दर्शन दीजिये! मैं न तो कुछ भक्ति जनता हूँ, न योग जनता हूँ, तथा न कोई क्रिया ही जनता हूँ जो की मेरे कर्तव्यसे आपका दर्शन हो सके! आप  अन्तर्यामी होकर यदि दयासिन्धु नहीं होते तो आपको संसारमें कोई दयासिन्धु नहीं कहता, यदि आप दयासागर होकर भी अन्तरकी  पीड़ाको न पहचानते तो आपको कोई भी अन्तर्यामी नहीं कहता! दोनों गुणोंसे युक्त होकर भी यदि आप सामर्थ्यवान् न होते तो आपको कोई सर्वशक्तिमान् और सामर्थ्यवान नहीं कहता! यदि आप केवल भक्तवत्सल ही होते तो आपको कोई पतितपावन नहीं कहता!


 हे प्रभो! हे दयासिन्धो !! एक बार दया करके दर्शन दीजिये !!