प्रवचन नंबर १६.
आज आपको जो बात बताई जाती है वह बहुत फायदे की है | यदि समझ में आ जावे तो बात ही क्या है | जो परमात्माकी प्राप्ति के मार्ग में चलता है, जो साधना अवस्था में है उससे भूल होना स्वाभाविक ही है | मनुष्य अज्ञ है, अज्ञानता में दोष आ ही जाता है| जितने भी सिद्धांत हैं, मान्यताएं हैं, मत-मतान्तर है सबही भ्रम में भी डालनेवाले हैं और मुक्ति देनेवाले भी है | एक-से-एक तो अलग है, इस तरह से तो ये भ्रम में डालनेवाले हैं और किसी एक को मानकर उसके अनुसार आचरण करें तो मुक्ति भीं हो जाए | ख्याल करना चाहिए आप लोगोंको बड़ी महत्त्व की बात बताई जाती है, समझने की जरूरत है |
हमारी जो भावना है यानी नियत है रुपियों की प्राप्तिकी, वह नहीं होनी चाहिए बल्कि भगवान की प्राप्ति की होनी चाहिए | नियत असली होनी चाहिए फिर साधन में कोई भूल हो भी जाती है तो भगवान स्वयं माफ कर देते हैं | उसे भगवान अपनेआप संभाल लेते हैं| हमें चिंता करनेकी जरूरत नहीं | बस हमारी नियत में दोष नहीं होना चाहिए | परमात्मा को प्राप्त करना सच्ची नियत है | फिर बीचमें मान-बडाई और शरीर के आराम को आदर देता है तो वह नियत का दोष है | जहां मान-बडाई प्राप्त हुई तो फिर चाहे भगवान ही क्यों ना नाराज हो, पर उसको आदर न दें | यदि वह आदर देता है तो साधन परमात्माकी प्राप्ति के लिए नहीं बल्कि मान-प्रतिष्ठा के लिए है | क्योंकि जब मान-प्रतिष्ठा मिलती है तो फूल जाते हैं और भगवान को भूल जाते हैं | यह भगवानकी प्राप्ति में विघ्न है ऐसा मानकर इसका तिरस्कार कर देना चाहिए | जो परमात्माकी प्राप्ति में बाधक है उसे लात मारकर निकाल देना चाहिए |
यदि परमात्मा की प्राप्ति के लिए साधन होगा तो कंचन-कामिनी में और मान-बडाई में अटकेंगे नहीं| यदि हम साधन का आदर नहीं करेंगे तो इसका मतलब नियत उच्चकोटि की नहीं है | दम्भी पाखंडी जो होते हैं वो भजन-ध्यान का ढोंग करके दूसरों को मोहित कर लेते हैं और अपनी सेवा-पूजा करवाने लग जाते हैं | जब पूजा स्वीकार करने लग जाता है तो वह व्यक्ति पूजा का दास हुआ, ना की भगवान का दास | जो स्त्री के वश में हो जाता है तो वह स्त्री का दास है, परमात्मा का दास नहीं, इश्वर का दास नहीं| यदि इश्वर का दास होता तो इन सबको ठुकरा देता |
कई साधक खुली जगह में बैठकर खूब जोरोंसे ध्यान करते हैं, लोगोंको दिखाने के लिए और जब वो एकांत में होते हैं तो उनसे कभी माला हाथमेंसे गिरती है तो कभी नींद आती है क्योंकि वहाँ कोई देखता तो है नहीं, बाहर तो वह दूसरों को दिखाने के लिए ही करता था | वहाँ भगवान नहीं आते क्योंकि वहाँ तो वह ठगता है | ऐसी जगह से भगवान बहुत दूर रहते हैं | भीतर से भगवानको चाहें और भगवानके आने में देर होगी तो भित्र में दुःख होगा की अभी तक भगवान नहीं आये, क्या बात है ? हे भागवन ! यदि आप नहीं आयेंगे तो हमारी क्या गति होगी, हम तो मारे जायेंगे | आपके बिना हमारा कोई भी सहायक नहीं है | यह भाव होना चाहिए |
साधन-भजन हो गया सो हो गया, ऐसा कहनेसे भगवान नहीं मिलते| हमारा समय यदि ठीक नहीं बीत रहा है तो इसे ठीक बिताने की चेष्ठा करनी चाहिए | जब दांत टूट जायेंगे, मुंह पर झुर्रियाँ पड़ जायेंगी, चलना-उठना-बैठना हमारा मुश्किल हो जाएगा तब हमारा क्या सुधार होगा ? क्या अभी आपके हाथमें समय है ? भरोसा नहीं कब मृत्यु हो जाए | कब इस संसार-सागर से पार हो जाए | मृत्यु आजायेगी तो क्या आप उससे कहेंगे की आज नहीं कल आना | कहनेसे भी कौन सुनेगा ? फिर तो शरीर के साथ में सब संपत्ति यहीं छूट जायेगी | किसीके साथमें कुछ भी सम्बन्ध नहीं रहेगा| कुटुंब के साथमें पाई भर भी सम्बन्ध नहीं रहेगा | शरीर भी साथ में नहीं जाएगा | केवल प्राण, इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि येही सब साथमें जायेंगे | स्थूल शरीरको छोडकर सूक्ष्म शरीरसे चले जाओगे | तुमको अपनी सारी उम्रमें वही धन प्राप्त करना चाहिए जिससे फिर भगवान ख़रीदे जांए |
यदि इस जीवन में भगवान नहीं मीलेंगे तो पूँजी तो रहेगी ही (यानी जो भजन-ध्यान, नाम-जप किया है वह पूँजी तो रहेगी ही |) तो अगले जन्ममें योग-भ्रष्ट के रूपमें जन्म हो जाएगा, तब मुक्ति हो जायेगी | और किसी योनिमें तो भगवानकी प्राप्ति होना ही मुश्किल है | मनुष्य योनी तभी मिलेगी जब योग-भ्रष्ट हो जावोगे |
“भगवानसे अर्जुन पूछ रहे हैं की जो संयमी नहीं है किन्तु योग में कहीं श्रद्धा हो ऐसे योगसे चालित हुए मनवाला साधक संसिद्धि को ना पाकर कौन-सी गति को जाता है ?” (गीताजी ६/३७)
“इसप्रकार अर्जुनके पूछनेपर श्रीकृष्ण भगवान बोले, हे पार्थ ! उस पुरुष का ना तो इस लोकमें और न परलोकमें ही नाश होता है, क्योंकि हे प्यारे ! कोई भी शुभ-कर्म करनेवाला अर्थात भगवत-अर्थ कर्म करनेवाला दुर्गतिको प्राप्त नहीं होता है |” (गीताजी ६/४०)
अच्छे कर्मोंको करनेवाले की कभी दुर्गति नहीं होती | वह यहांसे मरकर स्वर्गमें न जाकर योगियोंके घर में जन्म लेता है | यह भी कोई आसान चीज़ नहीं है, लाखोंमें कोई एक-दो ही ऐसे होते हैं | महात्मा पुरुषों को योगी कहते हैं, उनके यहाँ जन्म लेकर वह भी उनके जैसा ही आचरण करने लग जाता है, फिर उसे भगवानकी प्राप्ति हो जाती है | असली धन वही है जिसके बल से योगियों के कुल में जन्म होता है, वह अच्छी नियत से किया हुआ साधन है | इस जन्ममें मन-बुद्धि को शुद्ध बनाकर जायेंगे तो दुसरे जन्ममें भगवानकी प्राप्ति हो जायेगी | इसी जन्ममें १५ आना फायदा हो जाएगा तो फिर आगे जन्म नहीं लेना पड़ेगा |
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण......
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