प्रवचन नंबर २.१
सारी बातें मनुष्य के मानने की है | वही बुद्धिमान मनुष्य है जो विष को भी अमृत बना लेता है, अमृत तो अमृत है ही | मुर्ख वह है जो अमृत को भी विष बना लेता है, विष तो विष है ही | एक आदमी परमात्मा की प्राप्ति का साधन करता है, उसमें रोग रुपी विघ्न आ जाता है | विघ्न है वह विष है | महर्षि पतंजलि ने बतलाया है – व्याधिस्त्यान आदि विघ्न हैं | सबको रोग होते हैं | विघ्न विष हैं, किन्तु मानने से वह भी अमृत हो जाता है | यह माननेकी बात है | सब चीज़ोंमें यही बात है| व्याधि का अमृत होना यह है की यह मानले की भगवानने सावधान होने के लिए व्याधि भेजी है| घोडा कमकस हो जाता है तो सारथि कोड़ा मारता है | शरीर रुपी घोड़े को भगवान कोड़ा मारते हैं| बीमारी आये तो बहुत प्रसन्न होना चाहिए | भगवान ने बीमारी भेजकर भजन का मौका दीया, अन्यथा इधर-उधर भटकता फिरता | भगवानने एक जगह रखकर भजन का मौका दिया | भीष्मजी ने मरते समय भगवान से यह प्रार्थना की थी की मेरे पाप हो तो आप बीमारी दे दें और दंड भुगताकर पापसे मुक्त कर दें| यह बीमारी अमृत है | मैंने देखा है कि जिसके बीमारी हुयी, उसके साधन तेज हुआ | ऐसी बीमारी बढियां है |
सुखके माथ सिल परो जो नाम हृदय से जाय |
बलिहारी वा दुःखकी जो पल पल नाम रटाय ||
बीमारी विघ्न है, वह भी साधन बन जाती है | जो साधन हमारे पास है वह साधन तो है ही, पर जो विघ्न हैं उसको भी साधन बना लें, यह बुद्धिमानी है | हमारे पास रूपया है, वह रूपया विघ्न है और साधन भी है, रूपयों को परमात्मा की प्राप्ति में लगाएं, तो वे मुक्ति के साधन बन जाते हैं और भोग, प्रमाद, ऐश, आराम में लगा दिया तो विघ्नरूप बन जाते हैं | इसी प्रकार अपनेमें जो बुद्धि है उसको सांसारिक उन्नति में लगा दिया, बहुत ऐश्वर्य बढ़ा लिया तो खतरनाक हो जाता है | वही बुद्धि परमात्मा की खोज में लगा दें तो वह कल्याण करनेवाली है | कोई भी खराब-से-खराब चीज़ है, उसको भी काम में लाओ तो कल्याण करनेवाली है | जो आपके अधिकार की चीज़ है, वह कल्याण करनेवाली है और खड्डे में भी गिरानेवाली है | ऐसी कोई चीज़ दुनिया में नहीं जो अपनी आत्मा के कल्याण में मदद देनेवाली ना हो सके | उत्तम पुरुष वही है जो प्राप्त साधनको आत्मा के कल्याण के काम में लगा दे | अपनी चीज़ को कल्याण के काम में लगाएं तो अपनी आत्मा का कल्याण हो जाए और चीज़ भी कल्याणरूप हो जाए |
कोई कहे की मैं गया-बीता हूँ तो वक्ता का कर्त्तव्य है की उसे ठीक-ठिकाने लगा दे, बलपूर्वक लगा दे| यदि वक्ता में सामर्थ्य हो तो श्रोता की कमजोरी दूर कर दे | श्रोता को नहीं लगा सके तो वक्ता में कमी है | यह बात मैं बहुत प्रसन्नता से मानता हूँ | अपनी कमजोरी मानने में कोई गडबडी नहीं आती और आपको जिस तरह लाभ हो उस तरह लाभ उठा लें | अपनी कमजोरी मानने में आपत्ति नहीं | श्रोता तो आकार बैठ गया, उसका कसूर कायम नहीं करते | मेरी सामर्थ्य नहीं की तुम्हारी कमजोरी दूर कर सकूं, यह डंके की चोट कह सकता हूँ | तुम्हारे लाभ हो तो मेरी कमजोरी मानने में कोई आपत्ति नहीं | तुम कहो कि मेरे लाभ नहीं तो अपने लाभ की बात करो | तुम अपनी कमजोरी को सोचो और मैं अपनी सोचूँ| मेरी कमजोरी को आप सोचें तो आपकी दया है | मैं तो स्वीकार करता हूँ कि मेरी कमजोरी है | तुम समझो की आपकी कमजोरी स्वीकार करनेसे हमको क्या लाभ | तो मैं कहता हूँ की जिस प्रकार आपको लाभ हो, वह करो | तुम अपने हित की बात सुनो, मैं भी ऐसा करता हूँ | मेरी जो बात आपको लाभ की मालूम पड़े उसको ले लो, अन्यथा छोड़ दो | शास्त्रकारोंने और अच्छे पुरुषों ने येही बात कही है की लाभ की बात तो वह ले ले और जो लाभ की बात ना हो वह छोड़ दे | एक आदमी तुम्हें गाली देता है, उसको ना लो तो वह गाली देनेवाले के पास ही रही | कोई भी आदमी देता है, यदि लेनेवाला नहीं ले तो वह किसके पास रहेगी, भेजने वाले के पास ही आएगी |
मनुष्य कोई चीज़ बेचता है, उसे जो लेता है, वह लाभ समझकर ही लेता है | सच्ची बात तो यह है की वक्ता में कमी है, यह वक्ता माने | वक्ता को यह जरूरी नहीं कि तुम अपना सुधार कर लो तो मेरी बात समझमें आजाएगी | श्रोता को यह विचार करनेकी आवश्यकता नहीं की वक्ता लायक हो | अपने जो लाभ की बात मालूम पड़े वह ले ले | वक्ता को भी यह मानने की जरूरत नहीं कि तुम लायक नहीं हो | श्रद्धा-प्रेम बढायें | श्रद्धा-प्रेम ऐसे थोड़े ही बढते हैं | अपनी सफाई देनेकी जरूरत नहीं है | हर एक मनुष्य का कर्त्तव्य है कि अवगुण और कमी अपनेमें देखना तथा दूसरेमें गुण देखना | यही नीति, धर्म और लाभ की चीज़ है | आप थोड़ी देर गंभीरता से सोचें तो यह बड़ी कीमती लाभ की बात है |
और रहस्य की बात बतलाई जाती है | जो अच्छे पुरुष होते हैं, वे अपना अच्छापन नहीं कहते | यह उनकी नीति है | एक खराब आदमी से भी हम बहुत ज्यादा लाभ उठा सकते हैं, फिर अच्छे आदमी से उठा लें उसमें तो कहना ही क्या है | हमारे लिए मन की मान्यता ही बाधक है | वास्तवमें और कोई बाधा नहीं | अच्छे आदमी, साधारण आदमी और गये-बीते आदमीसे भी अधिक लाभ उठा सकते हैं | अच्छा पुरुष मिले, उससे लाभ नहीं उठाएं तो अपनी कमजोरी है | भगवान मिले और उनसे लाभ नहीं उठाएं तो अपनी कमजोरी हैं | एक बुरा आदमी है, उससे अपने बात भी नहीं करना चाहते, नीच प्रकृतिका आदमी है – ऐसा सुना, उससे क्या लाभ उठाना चाहिए ? उसके दुर्गुण की बातें सुनी, उससे वैराग्य करना चाहिए, उपरति करनी चाहिए, संसर्ग कम करना चाहिए | आप कहें कि हम नहीं चाहें और वह हमारे घर आ जाए तो क्या करें ? वास्तव में दुर्गुण को नहीं चाहते, स्वत: तुम्हारे घर आता है तो मनमें वैराग्य, उपरति होती है | वह कोई भी बात कहें उसका आप पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किन्तु वह उपरामता वैराग्य भीतर होने चाहिए | व्यवहारमें नहीं लाना चाहिए |
प्रश्न उठता है की व्यवहारमें नहीं लायें तो समय खराब करेगा | अपना समय, धर्म बिगड़ेगा | मुक्ति में बाधा पड़ेगी | अपना धर्म, मुक्ति सब अपने ऊपर निर्भर करते हैं | साधक के हृदय में यह भाव रहेगा की विषयों का संग खराब है तो कोई बाधा नहीं कर सकेगा | भीतर से फेंकता रहे तो बाहर से कोई भी हो, बाधा नहीं कर सकेगा | उसको तो लाभ ही लाभ होगा | विरक्ति, उपरति बढ़ेगी | साधन तेज होगा |
यदि अपने मनकी कमजोरी हो तो आदमी फिसल जाता है | यह मामला कच्चा है | भगवान उसकी कमजोरी दूर करनेके लिए परीक्षा लिया करते हैं, उसमें हमें आगे बढ़ना चाहिए | एक आदमी कंचन, कामिनी का त्यागी है, यदि प्राप्त होनेपर डिग जाता है तो भविष्य में सुधार करनेका निश्चय करे | यदि वह देखे की मैं अपनी कमजोरी के कारण कंचन, कामिनी से ना छूट सकूं तो वह दूर रहना ठीक समझता है | यह बात अच्छी है | जब कंचन, कामिनी भी हमें नुक्सान नहीं पहुँचा सके तो दुसरे कोई भी हमें नुक्सान नहीं पहुँचा सकेंगे | एक खराब वस्तु से भी लाभ उठा सकते हैं, फिर अच्छी से क्यों नहीं | अच्छा पुरुष मिले और उससे लाभ नहीं उठा सके तो अपनी समझ की कमजोरी है |
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण.....
[पुस्तक 'साधनकी आवश्यकता' श्री जयदयाल जी गोयन्दका, कोड . ११५०, गीताप्रेस, गोरखपुर ] शेष अगले ब्लॉग में .......