※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 7 जुलाई 2012

भक्त हनुमान्



प्रवचन -दिनांक १२-७-१९४२, गोरखपुर

हनुमानजी महाराज भगवान् के परम भक्त थे ! उनमें तीन बातें विशेष थी -----
१ - भगवान् के चरणों में रहते थे ! भगवान् को छोड़कर एक क्षण भी अलग नहीं होना चाहते थे ! जब भगवान् की आज्ञा होती थी,तभी भगवान् की आज्ञापालन के लिये चरणों से अलग होते थे !
२ -जब भगवान् की आज्ञा हो गयी तो साथ में रहने से भी आज्ञापालन को विशेष महत्व देते थे !
३ -नाम में रूचि थी ! ह्रदय को चीरकर नाम का प्रताप रोम-रोम में दिखाया,भगवान् की आज्ञापालन में विघ्न पडने से मरने के लिये भी तैयार हो गये !
आज्ञापालनकी तत्परता देखकर वाल्मीकि रामायण में भगवान् राम ने कहा-हे हनुमान् ! मैं तुम्हारा ऋणी हूँ ! तुमको दु:ख होगा ही नहीं ताकि मैं दु:ख दूर करके उऋण हो सकूँ !
हनुमान् जी महान् बलवान् थे,महान् स्वामिभक्त थे,भगवान् को प्रेम से अपने अधीन कर लिये !


सुमिरि पवनसुत पावन नामू ! अपने बस करि राखे रामू !!
हनुमान् जी ने भगवान् के पवित्र नामका जप करके रामको अपने वश में कर लिया ! यह वशित्व सिद्धि है, जब भगवान् वशमें हो गये तो सब वशमें हो जाते हैं! भगवान् भागवत में कहते हैं-

अहं भक्तपराधीनो ह्य्स्वतंत्र इव द्विज !
साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रिय:!!
( ९ ! ४ ! ६३ )
दुर्वासाजी ! मैं सर्वथा भक्तोंके अधीन हूँ ! मुझमें तनिक भी स्वतंत्रता नहीं है ! मेरे सीधे-सादे सरल भक्तों ने मेरे हृदय को अपने हाथ में कर रखा है ! भक्तजन मुझसे प्रेम करते हैं और मैं उनसे प्रेम करता हूँ !

हनुमान् जी जातिसे पशु-योनिमें बन्दर रूपमे थे ! नाम ने उनको पावन बना दिया ! उनका नाम तो पावन है ही,भगवान् के जितने नाम है सब श्रेष्ठ हैं, परन्तु तुलसीदासजी के लिये रामनाम सबसें श्रेष्ठ है ! वे पावन नाम राम नाम को मानते थे, इसलिये उन्होंने कहा पावन नामू ! निरन्तर नामजप के प्रताप से भगवान् रामको अपने वश में कर लिये !
लोक में देखा जाता है कि जो स्वामी का आज्ञापालन ठीक प्रकार से करता है, स्वामी उसीसे अधिक प्रसन्न रहते हैं ! जिसके प्रति भगवान् कि आज्ञा होती है, उसे कितना आनंन्द होता है वही जनता है !
राम कि आज्ञा का हनुमान् कितनी प्रसन्नता से पालन करते हैं ! इसको हम देख सकें तो हम आनन्द से मुग्ध हो जायें,ऐसा दृश्य हमारे सामने आये तो हमारा उद्धार हो जाय !

भगवान् रामने हनुमानजी के द्वारा भरतजी के पास सन्देश भेजा ! हनुमानजी ने आकार कहा - तुम जिनका नाम ले रहे हो,जिनके विरह में तड़प रहे हो , वह राम आ रहे हैं ! यह सुनकर भरतजी ऐसे प्रसन्न हुए ,जैसे प्यासा आदमी अमृत प् गया हो !

भरतजी कहते हैं-
को तुम्ह तात कहाँ ते आए ! मोहि परम प्रिय वचन सुनाए !!
हनुमान् जी ने कहा मैं भगवान् का छोटा सा दास हूँ ! पवनपुत्र हनुमान् मेरा नाम है ! भरतजी यह सुनकर उन्हें ह्रदय से लगा लिये और मुग्ध हो गये ! बोले -----
एहि संदेस सरिस जग माहीं ! करि बिचार देखेउँ कछु नाहीं !!
भगवान् के दर्शन से जो आनन्द होता,उससें भी ज्यादा भगवान् के सन्देश से हुआ ! यदि सूचना नहीं मिलाती तो मैं मर जाता,तब दर्शन होकर क्या होता ! संसार में कोई ऐसा पदार्थ नहीं है.जिसे देकर में उऋण हो सकूँ, इसलिये मैं ऋण चुकाने में असमर्थ हूँ ! अब प्रभु के चरित्र सुनाओ ! हनुमान देखकर मुग्ध हो गये ! हर्ष में भरकर भगवान् के पास आकार कहा जल्दी चलें ! भगवान् अयोध्या आदि स्थानों को दिखाते हुए आ रहे थे ! भगवान् कहते हैं यहाँ के वासी मुझे वैकुंठवासीयों से भी अधिक प्रिय हैं ! भगवान् पहुंचकर भरत से मिलते हैं !

अमित रूप प्रगटे तेहि काला ! जथा जोग मिले सबही कृपाला !!
भगवान् सबसे मिले,जिसका जैसा भाव प्रेम था. जैसे छोटे बड़े थे सबसे यथायोग्य मिले ! जिससे भगवान् मिले ,वह यही समझता है कि भगवान् मेरे से ही मिल रहे हैं ! क्षण में सब मिल लिये ! भरत का कितना प्रेम था,कितनी व्याकुलता थी थी, एक मिनट का वियोग असह्य हो गया,वैसी व्याकुलता प्रेम हमारे में हो जाय तो हमें भी भगवान् मिल सकते हैं !

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण........
[ पुस्तक भगवत्प्राप्ति कैसे हो ? श्रीजयदयालजी गोयन्दका,कोड १७४७,गीता प्रेस गोरखपुर ]