※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

वैराग्य की आवस्यकता


वैराग्य की आवस्यकता
वैराग्य व्यापक चीज है | वैराग्य होने से भक्ति योग, कर्मयोग तथा ज्ञानयोग की सिद्धि होती है | विषयों में  स्वाभाविक आसक्ति है , इसलिए परमात्मा की प्रप्तिरूप योग कठिन है | बिना अभ्यास और वैराग्य के मन, इन्द्रिया वश में नहीं होती | मन इन्द्रियों के विषय में नहीं होने से योगभ्रष्ट होता है | विवेक से , सत्संग से , किसी भी प्रकार से आसक्ति का नाश करना चहिये | बिना मन वश में किये योग सिद्ध नहीं होता | जहा पतन दिखलाया है, वह 'अयति' शब्द दिया है | श्रद्धा होने से वैराग्य बहुत जल्दी होता है | विषयाशक्ति के मूल में श्रद्धा की कमी है | भोगो में यह विश्वास हो जाये कि ये नाशवान और क्षणिक  है तो वैराग्य हो जाता है | अतएव विषयों को विष के सामान त्याग देना चाहिए | विष में विश्वास है कि खाया और मरा, किन्तु विषयों में विश्वास नहीं है कि इनके सेवन से मर जाता है |
प्रवचन दिनांक १८|४|१९४७, सांयकाल ६ || बजे, वट वृक्ष ,स्वर्गाश्रम, ऋषिकेश, उत्तराखंड