प्रवचन-तिथि-ज्येष्ठ शुक्ल ११, संवत २००२, सांयकाल, वटवृक्ष, स्वर्गाश्रम ! पिछला शेष..........
वही शूरवीर है जो अपनी बुराईयोंको तो निकाल-निकाल करके फेंके ! अच्छे गुणों को गर्भ की तरह छिपाये ! अच्छेपन को निकाल कर नहीं फेंकना चाहीये !
शास्त्रों में प्रायश्चित बताया है कि यदि किसी आदमी से पाप बन गया हो तो प्रकाशित कर देने सें वह कम हो जाता है ! कपूर कि डली है उसका मुंह खोल दो तो उड़ जायेगी ! बुराई उडानी हो तो मुँह खोल दो अपने दोषों को प्रकट कर दो !किसी में बीमारी होती है तो साफ-साफ वैध को बता देता है ! उसे बताकर भी शायद आराम हो न हो, इसमे तो लाभ ही लाभ है, किन्तु आप स्वयं तो अपनी बुराई बतावे ही क्या, दूसरे यदि बतावे तो स्वीकार नहीं करते ! तभी तो दोष छिपे हुये हैं ! गुणों को कोसना चाहीये न कि दोषों को ! कोई भी आदमी अपना दोष बतावे तो गुरु कि तरह उसका आदर करना चाहीये ! कबीर दासजी तो कहते हैं- अपनी निंदा करने वालों को कुटिया बनाकर बसाना चाहीये ! दूसरों का सूक्ष्म दोष भी ध्यान में आ जाता है, स्वयं बड़े बड़े दोष लियेफिरते हैं !
दूसरों के बड़े-बड़े गुण भी ध्यान में नहीं आते ! कपड़ा सफ़ेद है सफेदी कि तरफ ध्यान नहीं जाता, कोई दाग लगा होता है उस पर ध्यान चला जाता है ! स्वयं मैला कपड़ा पहने फिरते हैं ! अपने में अवगुण है उन्हें कुष्ठ के समान समझे ! अपमान और निंदा के लायक काम न करें, किन्तु अपमान और निंदा हो तो प्रसन्न होवे !
अपने बातें होती है उन्हें ध्यान में लाओ और काम में लाओ, समझो यह कठिन नहीं है ! निराशा पैदा होने ही नहीं देनी चाहीये ! खूब वीरता रखनी चाहीये ! जब तक मन में आशा है, प्रतीक्षा है, वही जीवन है, निराशा ही मृत्यु है !
हनुमानजी को जामवंत ने जोश दिलाया ! जीव परमात्मा का अंश है ! छोटी सी अग्नि कि चिनगारी को यदि हवा मिल जाये तो सब जला सकती है ! सत्संग ही यहाँ हवा है ! जो छोटी सी चिनगारी बड़ा रूप धारण करके ब्रह्माण्ड को जला सकती है ! ऐसे ही चेतन आत्मा सत्संग का जोश पावे तो सारा ब्रह्माण्ड स्वाहा हो सकता है ! अडंग बडंग स्वाहा ! सब कुछ छोड़कर इसी के पीछे पड़ जायें ! स्त्री, पुत्र, धन नाशवान पदार्थ है, इनकी आशा छोडो, इनके दासत्व में समय बिता दिया, अब छोड़ो !
संसारके काम में तो समय लगाने की, मन लगाने की कोई आवश्यकता ही नहीं है, चेष्टा करनी चाहीये जप, ध्यान और सत्संग की, इसमे एकांत,वैराग्य, उपरति सहायक है ! यह नहीं हो सके तो स्वयं सेवा, स्वाध्याय करें ! आजकल कंट्रोल का जमाना है ! सरकार जिसप्रकार जनता पर कंट्रोल कराती है, उसी तरह अपनी प्रजा इन्द्रिय और मन पर कंट्रोल करना चाहीये ! सत्संग स्वयं साधन भी है तथा साधन में सहायक भी है !
यों तो सत्संग सें मुख्यता से आवरण का नाश होता है, गौणी वृति से मल विक्षेप का भी नाश होता है ! आवरण के नाश के लिये तो सत्संग से बढ़कर कोई चीज है ही नहीं !
हिम्मत रखें, हिम्मत हारा सो गया !
भगवान् की और सें खूब सहायता है ! भगवान् की सहायता के ऊपर निर्भर होकर संसार में विचरे !
यह निश्चय कर लें कि ईश्वर है, उनकी मेरे ऊपर दया है, मदद है, सहारा है ! फिर देखो वीरता, धीरता, उत्साह सब आकार प्राप्त हो जायेंगे !
महात्मा सहारा दे तो उसके कोई कमी आती है क्या ? नहीं, कमी नहीं आती, कोई आदमी विद्या पढाये तो उसके कमी क्या आये ! फिर वह सहायता क्यों नहीं देते ? इसका उत्तर है कि हम सहारा नहीं लेते !
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण........
[ पुस्तक भगवत्प्राप्ति कैसे हो ? श्रीजयदयालजी गोयन्दका,कोड १७४७,गीता प्रेस गोरखपुर ]शेष अगले ब्लॉग में ....