※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 15 जुलाई 2012

गीताजीकी महिमा


 प्रवचन तिथि ज्येष्ठ शुक्ल १३, संवत २००२, प्रात: काल वट वृक्ष, स्वर्गाश्रम


          हमलोग यहाँ लगभग साढ़े तीन महीने रहे ! यों तो समय बहुत ही अच्छा बीता, किन्तु फिर भी जैसा हम विचारोंके द्वारा उत्तम चाहते हैं ऐसा नहीं बीता ! इसके लिये हमें यह ख्याल चाहीये कि आगे का समय और भी जोरदार बीते ! अगले वर्ष हम आवें तो इससे भी जोरदार समय बिताने कि चेष्टा करें !

        यहाँ जो बातें सुनी है घरपर जाकर उनको काममें लावें ! यहाँ तो सुना ही सुना है, हमारी श्रद्धा पूर्ण हो तो केवल सुननेसे ही काम हो सकता है ! भगवान् कहते है-----
   श्रद्धावाननसूयश्च        शृणुयादपि       यो       नर: !
   सोऽपि मुक्त: शुभाँल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम !!
      
                                                 ( गीता १८ / ७१ )
       जो पुरुष श्रद्धायुक्त और दोष दृष्टि से रहित हुवा इस गीता शास्त्र का श्रवणमात्र ही करेगा, वह भी पापों से मुक्त हुआ, उत्तम कर्म करने वालों के श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होगा !

      परमात्माकी, परमधाम कि प्राप्ति केवल श्रवणमात्र से हो जाती है ! भागवत जब सुनायी गयी तो धुंधुकारी कि मुक्ति हो गयी, परीक्षित कि हो गयी ! दूसरों कि नहीं हुयी, जिन्होंने श्रद्धा से सुना उनकी मुक्ति हुई ! यहाँ आपको गीता सुनायी गयी !

      गीता का  तो ऐसा प्रभाव है, भगवान् कहते हैं कि जो नित्य पाठ करे उसके द्वारा मैं ज्ञान यज्ञ के द्वारा पूजित होता हूँ ! गीता का पाठ ज्ञान यज्ञ है ! नित्यपाठ करने की बड़ी महिमा है, इसलिये हमें गीता का नित्यपाठ करना चाहीये ! अर्थ की और लक्ष्य रखकर पाठकरना उससें भी बढ़कर है !जीवन में एक श्लोक भी धारण कर लें तो बेड़ा पार है ! गीता में ऐसे कई श्लोक हैं ! जैसे --मन्मना भाव मद्भक्तो मध्याजी मां नमस्कुरु !यह आधा श्लोक भी धारण कर ले तो बेड़ा पार है ! आप प्रेम से गीता का अभ्यास करे तो आप के उद्धार में संदेह नहीं ! श्रद्धा -प्रेम कहीं से मोल नहीं लाना है ! यह तो आप की चीज है ! इसमें बाधक भी कोई नहीं है ! केवल अपने मन को समझाना है ! मनको समझाना चाहिए कि भगवान् से बढ़कर कोई नहीं है ! भगवान् स्पष्ट कहतें है-
       द्वाविमौ पुरुषौ  लोके क्षरश्चाक्षर एव च !
       क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते !!

        इस संसार में दो प्रकार के पुरुष है- क्षर और अक्षर ! उत्तम पुरुष परमात्मा है ! भगवान् कहते हैं- जो मुझको पुरषोत्तम समझता है वह मेरे को ही भजता है !
      यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् !
      स   सर्विद्भजति  मां    सर्वभावेन     भारत !!
                                              (गीता १५/ १९ )
           हे भारत ! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्वसे पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है ! समझने से ही कल्याण है, भगवान् सर्वज्ञ है, सर्वान्त यार्मी है, सुहद है, यह समझना है- मन और बुद्धि को समझावो ! समझ की कमी के कारण ही साधन की कमी है ! परमात्मा के रहस्य को, तत्व को समझ जावोगे तो परमात्मा में पूर्ण प्रेम. पूर्ण श्रद्धा हो जायेगी ! हमारा ध्येय यही होना चाहीये ! जब परमात्मा में प्रेम हो जाता है तो परमात्मा उसके अधीन हो जातें हैं ! 


नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण........
[ पुस्तक भगवत्प्राप्ति कैसे हो ? श्रीजयदयालजी गोयन्दका,कोड १७४७,गीता प्रेस गोरखपुर ]शेष अगले ब्लॉग में ...