प्रेमपूर्वक हरिस्मरण ! आपका पोस्ट कार्ड मिला ! समाचार मालूम हुए ! आपके प्रश्र्नों का उत्तर क्रमश: इस प्रकार है-------
१---भगवान सब कुछ कर सकतें हैं ! यदि ऐसा न हो तो उनकी भगवत्ता ही कैसी ? भगवान की कृपा से जो काम होता है उसमें भी कारण तो भगवान ही है ! अत: उनकी कृपा से होना और उनके द्वारा किया जाना दो बात नहीं है ! पर भगवान् ऐसा कब और क्यों करते हैं, ऐसा कब और क्यों करते हैं, यह दूसरा कोई नहीं बता सकता ! अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार सब कहते हैं, पर असली कारण और रहस्य को भगवान् स्वयं ही जानते हैं !
२-- प्रारब्ध का भोग अमित अवश्य है, पर वहीँ तक अमिट है, जहाँ तक मनुष्यकी सामर्थ्य का विषय है ! भगवान् सर्वशक्तिमान हैं, उनके लिए कोई काम असंभव नहीं कहा जा सकता ! वे असम्भव को भी सम्भव कर सकते हैं ! भगवान् ने जो यह कहा है कि--------
कोटि बिप्र बध लागहि जाहू ! आएँ सरन तजऊं नहीं ताहू !!
( रामचरित० सुन्दर० ४३/ १ )
----यह उनके अनुरूप ही है, क्योंकि वे शरणागतवत्सल ठहरे ! अत: तुलसीदासजी का लिखना सर्वथा ठीक है !
३--प्रह्लादकि रक्षा में उसका प्रारब्ध कारण नहीं है. उसमे तो एकमात्र भगवानकी उस महती कृपाका ही महत्व है, जो कि अचल निष्ठां और विश्र्वास के कारण कहीं-कहीं आवश्यकतानुसार अपना प्रभाव प्रत्यक्ष प्रकट कराती है !
४-- भगवान् का भक्त भगवान् से किसी भी वस्तु के लिए याचना करे तो भी भगवान् नाराज नहीं होते ! यदि उचित समझते है तो उसकी कामना को पूरी भी कर देते है ! पर जो भगवान् के प्रेमी भक्त है, जिनका एकमात्र प्रभुमे ही प्रेम है, उनक मनमें कामना का संकल्प ही नहीं उठता ! उनके विचार में जगतकी कोई भी वस्तु आवश्यक ही नहीं रहती ! वे तो जो कुछ करते हैं भगवान् कि प्रसन्नता के लिये ही करते हैं और जो कुछ होता है उसे भगवान् कि कृपा मानते हैं, इसलिये उनके लिये कामना या याचना का कोई प्रश्न ही नहीं रहता !
दण्डकवन के ऋषि-मुनि और अन्य संत, जो दानवी और भौतिक शक्ति से मारे गये, उनकी रक्षा करने में भगवान् कि कृपा शक्ति असमर्थ थी, ऐसी बात नहीं है; उनके शरीरों का नाश उस प्रकार कराना ही भगवान् को अभीष्ट था, इसलिये रक्षा नहीं की ! जिनकी रक्षा करना आवश्यक था, उनकी रक्षा कर ली ! भगवान् की कृपा कौन-सा काम क्यों करती है और क्यों नहीं करती. इसका अनुमान मनुष्य कैसें करे ?
५--भौतिक और आसुरी शक्तियों को परास्त करनेका सर्वोत्तम उपाय भक्तियुक्त निष्काम सेवा है ! जिसको इस भौतिक जगत से कुछ लेना नहीं है, केवल भगवान् के नाते उनके आज्ञानुसार उन्हींकी कृपा से मिली हुई शक्ति से जगत की सेवा-ही-सेवा करना है, वह समस्त भौतिक और आसुरी शक्तियों को अनायास परास्त कर सकता है ! प्रह्लाद भी भगवान् का निष्कामी और परम विश्वासी एकनिष्ठ भक्त था ! ऐसे भक्त से भगवान् स्वयं मिलते हैं, छिप नहीं सकते !
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण........
[ पुस्तक शिक्षाप्रद पत्र ! श्रीजयदयालजी गोयन्दका,कोड २८१ ,गीता प्रेस गोरखपुर ]