प्रेमपूर्वक हरिस्मरण ! आपका पत्र मिला ! समाचार मालूम हुए ! आपने करीब डेढ़ सालसे भगवान् के दर्शन की इच्छा से साधन आरम्भ कर दिया, यह बड़े ही सौभाग्य की बात है ! आपने अपने साधन का प्रकार लिखा और उस पर मेरी सम्मति माँगी, उसका उत्तर क्रमशः
इस प्रकार है--------
भगवान् रामचन्द्रजी के चित्रपट को सामने रखकर उनके मुखारविन्द=पर दृष्टि जमानेकी बात मालूम हुई ! पर उसमें इतना सुधार आवश्यक है कि आपको सामने रखे हुए जड़ चित्रका ध्यान नहीं करना है ! वह चित्र जिनका है उनका ध्यान करना है ! चित्रपट तो केवल उनके स्वरुप और आकृति कि याद दिलानेका ही काम कर सकता है ! जैसे आपके एक प्रिय मित्र का चित्र देखने से आपको वह याद आने लग जाता है, और उसके वास्तविक स्वरुप और आकृति का ध्यान होने लगता है, वैसे ही होना चाहीये ! चित्रपट ही भगवान् नहीं है, पर
वह जिसका है वह भगवान् है !
आप ध्यान करते हुए मानसिक पूजन करते है, यह भी ठीक है तथा उसके बाद `हरे राम०` मंत्रका जप करते है, वह भी ठीक है ! जप करते समय बीचमें दूसरे संकल्प न उठे तो और भी अच्छा हो !
जप के समय जीभ और होंठ चलते रहें तो कोई हर्ज नहीं है !
`जय सियाराम` का कीर्तन करना भी अच्छा ही है ! भगवान् के चित्र के सामने धुप-दीप करना भी ठीक ही है !
श्रीरामचन्द्रजी का ध्यान करते समय और दृष्टि जमाते समय जोर-जोरसे `हरे राम०` मन्त्र का भजन करते रहने पर ध्यान के स्थिर होनेमें विघ्न तो नहीं पडता है न ? इस पर विचार करना चाहीये !
कोलाहल, बोलचाल कि आवाज जहाँ न आती हो वैसे एकांत स्थान में बैठकर ध्यान का साधन करना अच्छा रहता है ! कोलाहल से बचने का उपाय जोरसे भजन करना कैसे हो सकता है ? क्योंकि उसकी ओर मन जायगा तो ध्यानमें विघ्न पड़ेगा ही !
नेत्र बंद करके भगवान् के मस्तक पर मन्त्र लिखा हुआ मानकर मनसे जप करना ध्यानके प्रतिकूल नहीं पड़ेगा, ऐसी मेरी मान्यता है !
ध्यान का साधन समाप्त करने के बाद कीर्तन करना साधन के विपरीत नहीं है, पर कीर्तन के साथ-साथ जिसके नाम का कीर्तन किया जाता है, उस प्रभु कि स्मृति भी रहे तो ओर भी अच्छा है !
आँखे खोलकर दृष्टि जमानेका साधन करते समय ओर आँखे बंद करके ध्यान करते समय भी मनसे श्रद्धा-प्रेमपूर्वक भगवान् का स्मरण करते रहना चाहीये ! ऐसा होगा तो मन को विषयों की ओर जाने का समय ही नहीं मिलेगा !
कान बंद करके अंदर कि आवाज में भगवान् के नाम की ध्वनि सुनने का साधन भी बड़ा उत्तम है ! इसमें हानि की तो कोई बात ही नहीं है ! दूसरे साधनों के साथ इसें भी किया जा सकता है, यह साधन रात्रिमें और भी सुगमता सेन किया जा सकता है, क्योंकि उस समय हल्ला-गुल्ला कम होकर शान्त वातावरण हो जाता है !
दृष्टि जमानेका और आँख मूँदकर ध्यान करने का परिणाम तो मन कि स्थिरता और शुद्धि, बुरे संकल्पों का नाश और शान्ति इत्यादि हुआ करते हैं ! भगवान् में प्रेम होना उसका असली फल है !
भगवान् को ही गुरु मानकर चलना बहुत ही उत्तम है
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण........
[ पुस्तक शिक्षाप्रद पत्र ! श्रीजयदयालजी गोयन्दका,कोड २८१ ,गीता प्रेस गोरखपुर ]
[ पुस्तक शिक्षाप्रद पत्र ! श्रीजयदयालजी गोयन्दका,कोड २८१ ,गीता प्रेस गोरखपुर ]