※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 12 अगस्त 2012

सत्संगकी मार्मिक बातें



              एक दिन की बात है, धृतराष्ट्रको भीमसेन ने ताना मर दिया, तब उन्होंने तीर्थों में जाकर तप करने का विचार किया और विदुर से कहा तो उन्होंने कहा ठीक है ! युधिष्ठर आये, उनके सामने वन में जाने की बात कही ! उन्होंने मना किया और सेवा में त्रुटि समझकर पश्चाताप किया ! अन्ततः विदुरजी ने समझाया की उन्हें जाने दो, क्योंकि वन जाकर प्राण त्याग करना उत्तम है ! युधिष्ठर ने बात मान ली, धृतराष्ट के मन में आया की जाते समय दिल खोलकर खूब दान करूँ ! युधिष्ठर, अर्जुन ने खूब उदारता का व्यवहार किया ! कहा मेरी सब वस्तुएँ तन,मन, धनपर, उनका पूरा अधिकार है ! जाते समय उन्होंने खूब दान पुण्य किया, लोगों को खूब धन दिया ! जाते समय प्रजा से क्षमा माँगी ! गान्धारी की सेवा के लिये कुन्ती साथ में गयी ! संजय धृतराष्ट्र की सेवा में लग गया ! वन में वेदव्यासजी ने गान्धारी से पूछा कि तुम्हारा दू:ख किस प्रकार दूर हो ! उन्होंने कहा कि मेरे पुत्रों से मिला दो ! वेदव्यासजी ने अठारह अक्षौहिणी सेनाको बुला दिया, गंगाजी में प्रवेश करके आवाहन किया !जल में बड़ा शब्द हुआ, फिर हठी,घोड़े सब वहीँ निकले और अठारह अक्षौहिणी सेना ने पड़ाव डालदिया ! सबसे कह दिया गया कि यह सेना रात भर रहेगी, जिनको मिलना हो मिल लो ! घोषणा कर दी कि अब आगे कोई नहीं रोना ! कोई साथ जाना चाहे तो गंगा में गोता लगा ले, वह उसके साथ वहीँ चला जायगा ! रात भर सब मिले ! जिसने गोता लगाया वह उनके साथ विमान में बैठकर चला गया, गान्धारी आदि नहीं गये !

 जनमेजय को विश्वास नहीं हुआ ! कहा कि मेरे पिताको बुला दें, वही यज्ञ पूरा करें तो वेदव्यासजी ने वैसा ही करके दिखला दिया ! यह महाभारत आश्रमवासीपर्व कि बात है !

 कुन्ती कि तरफ देखो ! जब पाण्डव वन में गये, तब बेचारी कुन्ती रोटी रही !धृतराष्ट्र आदि किसी ने रोने पर ध्यान नहीं दिया ! वही कुन्ती जब राजमाता हो गयी, तब वन में सेवा करने के लिये साथ में गयी ! हरेक माता-बहिनों से यही प्रार्थना है कि जो तुम्हारे साथ बुरा करे,उसके साथ ऐसा उत्तम बर्ताव करके दिखला दे !
एक बार कुन्ती ने भगवान् के कहने पर यह वर माँगा कि हमें सदैव दू:ख मिलता रहे जिससे हमारी स्मृति न छूटे---------------
 विपद: सन्तु न: शश्वतत्त्त्र तत्र जगद्गुरो ! भवतो  दर्शनं  यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम !!

       कुन्ती सत्यवादी थी, दूसरों कि संकट में रक्षा करनेवाली थी ! पांडवलोग एकचक्रा नगरी में छिपकर रहते थे ! उस नगर के बहार बकासुर नामक एक राक्षस रहता था ! उसके लिये एक आदमी और एक गाड़ी बाकला दिया जाता था ! जिस घर में यह रहते थे, एक दिन उसीकी पारी आ गयी ! राजा के सिपाही ने आकार बता दिया ! ब्राह्मण ने कहा मैं जाऊँगा, ब्राहमणी ने कहा मैं जाऊँगी ! उनके एक लड़का और एक लडकी थी उन्होंने कहा कि हमें भेजो दो ! कुन्ती उनके पास जाकर सारी बात पूछी और कहा मेरे पांच लडके है, एक को भेज दूंगी !भीष्म को कहा, वह बड़ा प्रसन्न हुआ ! युधिष्ठर आदि ने भी कहा पर माँ ने भीमसेन को वहाँ भेजा ! वहाँ राक्षस से खूब लड़ाई हुई ! आखिर भीमसेन ने राक्षस को पछाड कर मार डाला ! यहाँ यह देखना चाहीये कि कुन्ती ने मृत्यु के मुख में अपने बेटे को भेज दिया ! हमारी माताएं तो किसी बीमार कि सेवा में भी नहीं जाने देती !

            सुमित्रा ने लक्ष्मण को राम कि सेवा में भेज दिया तो हमें भी सबको राम समझकर अपने को सेवा में देना चाहीये ! हमारा जीवन एक दिन नष्ट होगा ही, मरने के बाद न तो इसकी हड्डी काम में आएगी, न चमड़ा काम में आयेगा, अत: दूसरे कि सेवा में सब कुछ लगा दें !

            धर्म और ईश्वर के लिये मरने को तैयार रहना चाहीये ! `जो सिर साते हरि मिले तो लीजे पुनि दौर !`
 यही मुख्य काम है नहीं तो एक दिन शरीर तो भस्मीभूत होना ही है !

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण........
[ पुस्तक सत्संगकी मार्मिक बातें ! श्रीजयदयालजी गोयन्दका,कोड १२८३ A ,गीता प्रेस गोरखपुर ]