आत्म बल की आवस्यकता
महात्मा मिलने चाहिये, वे भले ही अपने को गुरु न बनाये | द्रोणाचार्य को एकलव्य भील ने गुरु बना ही लिया | अच्छे पुरुष कम होते है |
भगवान् श्री कृष्ण कहते है :- 'हजारो आदमियो में कोई एक ही मुक्ति के लिए प्रयत्न करता है | और उन प्रयत्न करने वालो में कोई एक परमात्मा को प्राप्त करता है '| (गीता ७/३)
बात यह है की जो परमात्मा को प्राप्त है, वह दुसरो को शिष्य नहीं बनाता और जो शिष्य बनाते है,उनमे योग्यता कम रहती है | एकलव्य भील ने द्रोणाचार्य को अपना गुरु बना लिया,वैसे ही हम भी बना सकते है | मन से गुरु बना लिया,उसी से सब विद्या सीख ली | महाभारत आदि पर्व के कथा है | वह इतना कुशल हो गया की अर्जुन से भी बढ़कर हो गया | हमारे में श्रद्धा होगी तो हमारा जो काम होगा,वह हो ही जायेगा | द्रोणाचार्य को पता नहीं के एकलव्य ने उन्हें अपना गुरु बनाया है | वास्तव में श्रद्धा ही प्रधान है | गुरु चाहे स्वीकार करे,चाहे न करे | अच्छे पुरुष गुरु बना नहीं चाहते | यही तो उनका अच्छापन है | उनके लिए यह बात नहीं की वे गुरु बन जाये तो उनका पतन हो जायेगा | पर स्वाभाविक बात है की वह गुरु क्यों बने ? यदि कोई योग्य हो और वह शिष्य बना ले तो दोष की बात नहीं |
बहुत अच्छे पुरुष होते है, वे एकलव्य की भाति मिसाल भी नहीं देते | जो पुरुष गुरु बनना नहीं चाहते , वे ऐसे मिसाल नहीं देते | जो शिष्य बनाना चाहता है वह तो ऐसा कह सकता है | बहुत सी ऐसे बाते है जो शास्त्र के अनुकूल होते हुए भी आजकल प्रचार करने की नहीं है | समय के अनुसार देखा जाता है | नहीं तो उस बात को लेकर दंभ फैल जाता है | भाव से शिक्षा लेनी चाहिए | जैसे दत्रातेय जी ने चौबीस गुरु बनाकर उनसे शिक्षा ली | वैसे ही मनुष्य सारी दुनिया से अपने भाव के अनुसार शिक्षा ले सकता है | शास्त्र भी कहता है की जिससे हमे थोड़ी भी शिक्षा मिले वह गुरु है | शास्त्र विधि के अनुसार गृहस्थ को यज्ञोपवीत दे , वह गुरु है| विद्या गुरु ,दीक्षा गुरु होते है | गुरु शिष्य के प्रणाली शास्त्र की है ही |
स्त्रियों के लिए पति गुरु है | और किसी को गुरु बनाने के जरुरत नहीं है | महापुरुषों की कसोटी बड़ी कड़ी है | उसके अनुसार इश्वर की कृपा से मनुष्य उच्चा उठ सकता है | इस ज़माने में कठीनायी है |
'जो मान और अपमान में सम है, मित्र और वैरी के पक्ष में सम है' | (गीता १४/२४) यह साधारण बात नहीं है | जैसा मान वैसा अपमान | जैसे निंदा वैसे स्तुति | मानापमान में समानता होने से अहंकार का नाश होता है | अहंकार के नाश के लिए यह संखिया है | मान को सब चाहते है ,आपमान को कोई नहीं ,यह तो सारी दुनिया की रीत है | अपमान को चाहे किन्तु मान को नहीं यह साधन अवस्था है | इस साधन का नतीजा होता है की वे दोनों समान हो जाते है | यह बात युक्ति से ठीक जच जाएगी | पर जब आकर प्राप्त हो तोह मान को स्वीकार करेगा अपमान को नहीं | युक्तियो से शास्त्रों से ठीक प्रतीत होता है, पर आकर प्राप्त हो जाये तो विसमता आ जाती है ,वैसे ही परस्त्री की बात है | स्त्री में सुखबुधि होने से आसक्ति है | सुख बुधि अज्ञान से है | अज्ञान का नाश अंत:करण की शुद्धि से होता है, अन्त:करण सत्संग, भजन, नामजप से शुद्ध होता है |