※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 12 सितंबर 2012

महत्त्वपूर्ण बातें


१ भगवान् के विषय का यथार्थ ज्ञान ही तप है भगवान् कहते हैं इस प्रकार मुझे जानकर बहुत लोग भजन करके तर गये
२ भगवान् का यह कानून है कि जो मुझे भजता है उसे मैं भजता हूँ जिसे मैं भजूँ उसके उद्धार में क्या शंका है ? मेरी तो सामर्थ्य है  मैं जिसे चाहूँ वह मेरे पास आ सकता है, फिर उसके उद्धार होने में क्या शंका है ?
३ संसार में लोग जिसे मूल्यवान समझते हैं उसे ही याद करते हैं
  अंगदने हनुमानजी से कहा कि समय-समय पर भगवान् को मेरी याद दिलाते रहना जिसे भगवान् याद करते हैं उनका बड़ा भारी भाग्य है
५ भरद्वाज मुनि ने कहा कि हे भरत ! सारी दुनिया भगवान् को भजती है और तुम्हे भगवान् भजते हैं
६ कारक पुरुष का जन्म भी दिव्य है, किन्तु भगवान् से कुछ अन्तर है भगवान् की तरह पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं है, उनकी पूर्ण शक्ति नहीं है संसार में उनका जन्म प्रादुर्भाव की तरह भी हो सकता है, जन्म लेकर वे क्लेश नहीं पाते हैं जैसे भगवान् का आना संसार के हित के लिये होता है उसी प्रकार कारक पुरुषका भगवान् कीआज्ञा से ही आना होता है
७ मनुष्य की अपेक्षा ज्ञानीका कर्म दिव्य है, पर जन्म दिव्य नहीं है उनके कर्म में भी प्राय: सारी बात आ जाती है सिद्धि आदि ज्ञानी में नहीं होती, यह कोई नियम नहीं है
८ अन्तकाल के समय भगवान् के भजन का प्रभाव यह बतलाया गया है कि उससे कल्याण हो जाता है उसी प्रकार भगवान् के हाथ से मरने से मुक्ति हो जाती है
९ चाहे भगवान् का भजन करता हुआ जाय, चाहे नाम-जप करता हुआ जात, चाहे सत्संग करता हुआ जाय इनमें चाहे जैसे ही जाय, उसका कल्याण जो जायगा
१० एक महापुरुष का भी अन्तकाल में दर्शन हो जाय तो उन्हें थोडा बहुत जानने से मुक्ति हो सकती है
११ आप अपनी शक्ति के अनुसार भगवान् को कहाँ चाहते हैं ? अन्य सब काम छोड़कर भगवान् में मन लगा दें
१२ हम अपनी सारी शक्ति का प्रयोग कहाँ करते हैं, सारी शक्ति का प्रयोग करने के बाद फिर विलम्ब का क्या काम है ?
१३ भगवान् से यदि विशेष प्रेम है तो औरों से प्रेम क्यों ? " अव्यभिचारिणी " भक्ति करनी चाहिये
१४ आपने यह निश्चय कर लिया कि हमारी सांसारिक वस्तुओं की रक्षा भगवान् कर रहे हैं; किन्तु भगवान् का चिन्तन नहीं छोड़ना चाहिये, शरीर की क्रिया चाहे हो, चाहे मत हो
१५ भगवान् कहते हैं तू केवल एक मुझको ही भज
१६ मनुष्य भगवान् के मिलने में मनसे जितनी छूट चाहता है उतनी ही देर होती है धीरे-धीरे पहुँच तो जायगा पर देर लगेगी हिम्मतवाला तो बहुत ही जल्दी पहुँच जायगा, कम हिम्मतवाला रोता-रोता जायेगा ।
 १७ भक्तिसहित निष्काम कर्म के मार्गको जानना कोई कठिन बात नहीं है जो आदमी यह समझ जाय कि इसमें अपना बहुत ज्यादा लाभ है फिर उस आदमी को भारी थोड़े ही लगेगा अपना मित्र कहता है कि इसमें इतना लाभ है, मेरे पर विश्वास करके काम कर लो तो क्या विलम्ब है यदि लाभ नहीं भी दीखे, चाहे जीवन नष्ट हो जाय, उसकी कुछ भी परवाह नहीं करे केवल विश्वास करके अच्छे पुरुषों के बताये हुए मार्ग के अनुसार ही चलने कि चेष्टा करे, उसमें कुछ भी विचार नहीं करे
१८ परमात्मा कि प्राप्ति तो बहुत ही सहज है
१९ आपको परोपकार में जो कुछ खर्च करना हो खुले हाथ से खर्च करें, किन्तु आप लोगों से धन खर्च नहीं हो तो यह स्त्रियों की तरहकी मुर्खता है आपके पास एक चादर है, दूसरा कोई माँगे तो बहुत आदर और प्रसन्नता से दे दें उसकी चीज उसे प्रसन्नता से सम्हला दें तो अपनी जोखिम मिटी इसमें गरीब-अमीर की बात नहीं है आपके पास जो कुछ हो उसमें उदारता का भाव रखें ।राजा रन्तिदेव का उदाहरण देखें आपके पास कुछ भी नहीं हो तो आये हुए से मीठा बोलें, जल पिला दें इसमें रुपयों की प्रधानता नहीं है तन, मन की प्रधानता है कोई एक आदमी पाँच दिन शरीर से काम करे और एक आदमी पाँच सौ रुपया दे, पाँच दिन के समय के बराबर रुपया नहीं है
हमारा लक्ष्य तन, मनसे है, रुपयों से नहीं है, क्योंकि धनवान् तो बहुत थोड़े मिलते हैं
शेष अगले ब्लॉग में.........


नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]