अब आगे........
२० बहुत आदमी कहते हैं कि हम मान बड़ाई चाहते तो नहीं है, पर आकर प्राप्त हो जाय तब क्या करें ?मैं तो यह बात नहीं मानता । दूसरे व्यक्ति हमारे किये हुए अच्छे काम की बड़ाई करके हमारी प्रतिष्ठा बढाते हैं । बड़ाई-प्रतिष्ठा को स्वीकार नहीं करना चाहिये । जो काम हो गया उसको प्रकाशित करने से क्या लाभ है, प्रकाशित करनेका उद्देश्य कह कर अपनी बड़ाई करनी है ।
२० बहुत आदमी कहते हैं कि हम मान बड़ाई चाहते तो नहीं है, पर आकर प्राप्त हो जाय तब क्या करें ?मैं तो यह बात नहीं मानता । दूसरे व्यक्ति हमारे किये हुए अच्छे काम की बड़ाई करके हमारी प्रतिष्ठा बढाते हैं । बड़ाई-प्रतिष्ठा को स्वीकार नहीं करना चाहिये । जो काम हो गया उसको प्रकाशित करने से क्या लाभ है, प्रकाशित करनेका उद्देश्य कह कर अपनी बड़ाई करनी है ।
२१ आप सूक्ष्मता से सोचेंगे तो अपने उत्तम कृत्य को प्रकट किये बिना आप रह नहीं सकते । अपने बुरे कृत्यों को छिपाने की आप बहुत चेष्टा करते हैं ।
२२ उद्देश्य तो आपका बहुत ही खोटा है । परमात्मा की दया की बात अलग है । यदि उद्देश्य अच्छा होता तो उद्धार में विलम्ब का क्या काम है ?
खोटा उद्देश्य-
१-दम्भ पाखण्ड- भजन-ध्यान कर रहा है, कभी आलस्य आ रहा है, कभी माला हाथ से गिर रही है । पर लोग आ जाते हैं तो सावधान होकर बैठ जाता है । यह छिपाव रखने का क्या मतलब है ? पापों को छिपाना ।
२- बड़ाई का दोष साधन की अंतिम स्थिति तक रहता है । यदि परमात्मा की प्राप्ति की इच्छा हो तो दम्भ-पाखण्ड, मान-बड़ाई कि इच्छा को तुरंत छोड़ दो ।
कीर्ति को कलंक की तरह समझना चाहीये । उसे बिलकुल ना सहे, कोई बड़ाई कर दे तो भीतर-भीतर दिल से रोवे ।
२३ प्रश्न- साधन नहीं होता ।
उत्तर- भगवान् के उपदेश का रहस्य समझना चाहिये । साधन नहीं होने में श्रद्धा की कमी है । संसार समुद्र की तरह है । समुद्र में कोई गिर जाय और उसके कोई भी चीज हाथ आ जाय, वह उसको नहीं छोड़ता । जैसे पानी में डूबता हुआ आदमी व्याकुल हो जाता है, वैसी व्याकुलता होने से कल्याण होता है । डूबते समय रस्सा हाथ लग जाय उसे वह कैसे छोड़े । यदि कोई आदमी छोड़े तो उसे डूबने का दुःख मालूम नहीं है । उपाय समझने के बाद तो छोड़ ही नहीं सकता ।
२४ भगवान् खेवनहार है, अथाह संसार समुद्र में डूबते हुए के हाथ रस्सा लग जाय तो वह रस्से को कैसे छोड़ सकता है ।
२५ साधन तेज या तो प्रेम या भय से होता है ।
२६ तुम साधन नहीं कर रहे हो, तुम्हारी क्या दशा होगी ?
२७ जब-जब वृथा चिन्तन हो तब सोचना चाहिये कि तू साँप-बिच्छु को पकड़कर क्यों मर रहा है ? तेरी क्या दशा होगी ? लाखों जीवों कि क्या दशा हो रही है ?
२८ प्रथम तो मनुष्य जन्म मिलना कठिन है, यदि मिल जाय तो कौनसे देश में जन्म हो, फिर धार्मिक देश में जन्म होना कठिन है, फिर उत्तम कुल या उत्तम सत्संग मिलना बहुत ही कठिन है ।
२९ अपना यह काम ( भगवत्प्राप्ति ) बन गया तो अपना सारा काम हो गया, यदि यह काम नहीं हुआ तो और सारा काम मिटटी है । यदि परमात्मा के तत्व को जा लिया फिर पीछे कुछ भी हो कुछ चिन्ता नहीं है । आपने कलकत्ता में सौ मकान बनवा लिये, पर कल आप मर गये तो वे मकान आपके क्या काम आये ।
३० आपने जन्म भर धन इकठ्ठा किया और मर गये तो धन आपके क्या काम आया ? आपने तो कुली का काम किया ।
३१ अपने तो यह काम (भगवत्प्राप्ति) करना है और सारे काम चाहे मिटटी में मिल जायँ, पर अपने तो यह काम अवश्य ही करना है ।
३२ पहले लाखों बार अपना मनुष्य जन्म हुआ होगा, यदि पहले परमात्मा को जान लेते तो अपना जन्म क्यों होता ।
३३ करोड़ों मनुष्यों में किसी एक को परमात्मा की प्राप्ति होती है । जीव तो करोड़ों का भी करोड़ों गुना है, पर उनकी मुक्ति नहीं होती । हिसाब लगाय जाय तो युगोंसे ही कभी मनुष्य शरीर मिलता है । देखो क्या दशा हो रही है, सोचना चाहिये । यह सब बात समझकर साधन के लिये उत्तेजना होनी चाहिये ।
३४ अपना सर्वस्व भले ही चला जाय, जिस किसी प्रकार ईश्वर से प्रेम करना चाहिये । एकान्त में साधन के लिये खूब रोये । हे प्रभु ! मेरे पास कोई उपाय नहीं है, आप करेंगे तो ठीक होगा । हे नाथ ! मैं क्या करूँ, यह संसार मेरा पिण्ड नहीं छोड़ता ।
३५ सांसारिक उन्नति देखकर लोग प्रसन्न हो रहे हैं; किन्तु साधन न होने के कारण घर जल रहा है । इस बात को समझकर सच्चे हृदय से परमेश्वर से खूब प्रार्थना करें ।
३६ सारे उपाय कर लिये, किन्तु किसी प्रकार काम नहीं बना । भगवान् के आगे रोये कि मुझे तो कोई भी रास्ता नहीं दिखता । मेरा यह समय बीत जायेगा तो मेरी दुर्दशा होगी ।
गीता २ ।७ इसलिये कायरतारूप दोषसे उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहितचित हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिये कहिये; क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिये आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिये । यह श्लोक बराबर पढ़कर रोये, खुशामद करे तो उनकी करे । रोये तो उनके आगे रोये । जो उनकी शरण हो जाता है, प्रभु उसका त्याग नहीं करते । जाकर शरण पड़ जाय और कुछ नहीं माँगे तो उसकी सुनवायी होती है । इस प्रकार परमात्मा के पीछे पड़ जाय तो भगवान् को उसका सुधार करना ही पड़ेगा । उनका पिण्ड न छोड़े, उनके सिवाय दूसरी बात न माँगे । मर जायगा तो कहाँ-कहाँ भटकना पड़ेगा । साधन की चाह होनी चाहिये ।शेष अगले ब्लॉग में........
३६ सारे उपाय कर लिये, किन्तु किसी प्रकार काम नहीं बना । भगवान् के आगे रोये कि मुझे तो कोई भी रास्ता नहीं दिखता । मेरा यह समय बीत जायेगा तो मेरी दुर्दशा होगी ।
गीता २ ।७ इसलिये कायरतारूप दोषसे उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहितचित हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिये कहिये; क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिये आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिये । यह श्लोक बराबर पढ़कर रोये, खुशामद करे तो उनकी करे । रोये तो उनके आगे रोये । जो उनकी शरण हो जाता है, प्रभु उसका त्याग नहीं करते । जाकर शरण पड़ जाय और कुछ नहीं माँगे तो उसकी सुनवायी होती है । इस प्रकार परमात्मा के पीछे पड़ जाय तो भगवान् को उसका सुधार करना ही पड़ेगा । उनका पिण्ड न छोड़े, उनके सिवाय दूसरी बात न माँगे । मर जायगा तो कहाँ-कहाँ भटकना पड़ेगा । साधन की चाह होनी चाहिये ।शेष अगले ब्लॉग में........
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]