अब आगे.......
→ जिसके दर्शन में कितना आनन्द आये जिसको देखकर पशु भी मोहित हो जाय, करोड़ों ब्रह्मांडो की सुन्दरता को इकठ्ठा किया जाय, वह सुन्दरता उनके एक बाल के समान भी नहीं है । उनके प्रेम के सामने वह अपने प्राणों को एक तिनके के बराबर नहीं समझता । उनके दर्शन में ऐसा अमृत है जिसकी महिमा गणेश, महेश भी नहीं गा सकते । उन प्रभु के प्रभाव को कौन कह सकता है ?
ऐसे प्रभावशाली मिलने के लिये तैयार है ।
ये यथा मां प्रपध्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
मम वतर्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ।। (गीता ४।११)
हे अर्जुन ! जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ , क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं । इसमें विश्वास करने वाला पुरुष प्रभु को छोड़कर कैसे दुसरे को भज सकता है ।
यो मामेवमसंमूढो जानाति पुरषोत्तमम् ।
स सर्वविद्भजति मा सर्वभावेन भारत ।।
हे भारत ! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्व से पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है ।भगवान् कहते हैं जो मुझे सबसें उत्तम समझ जाता है वह मेरे तत्व को जानने वाला पुरुष है । ऐसे मुझको जो जान गया वह सबको जान गया, वह क्या मुझको छोड़कर दूसरे को भज सकता है । जो मुझको जान जाता है वह सर्वोभाव से मेरे को ही भजता है । वह मेरे सिवाय और दूसरे किसी को भज नहीं सकता ।
→ माला फेर रहे हैं, ध्यान जूते की तरफ है, अभी तक तो आप नाम को एक जूते जितना आदर नहीं देते । नाम के महत्त्व की बात तो कान में ही रही । भगवान् के घर गलती नहीं है ।
→ आपका हजार रुपया जा रहा है और थोडा सा झूठ बोलने से वह बच सकता है, उस समय आप हजार रुपयों को लात मार दें तब भगवान् की आँख खुलेगी ।
→ धर्म में मामूली हानि आ जाय, आप उस काम के निकट जा रहे हो तो वह भगवान् की भक्ति कैसी ।
→ कोई आदमी मेरे विरुद्ध काम कर रहा है, क्या वह मेरा सेवक या भक्त है । चाहे थोडा ही विरुद्ध है ।
→ इस बात के लिये तैयार रहो कि चाहे जो हो जाय भगवान् के विरुद्ध नहीं चलूँगा ।
→ काम, क्रोध, लोभ नरक के यह तीन द्वार बतलाये गये हैं । पहले नरक के इन तीन द्वारों को बंद करो और बातें बाद में करेंगे ।
→ किसी में थोड़ा किसी में अधिक सबमें दोष भरा पड़ा है । कोई ऐसा व्यक्ति नहीं दिखता जिसमें दोष नहीं हो ।
→ यह बात कहने की तो नहीं है पर कहता हूँ कि गीता के पाठ में जितना लाभ है, उतना कथा में नहीं है । गीताजी के मनन में जितना लाभ है उतना पाठ में नहीं है ।
→ ध्यान देकर सोचेंगे तो पल-पल में मालूम हो जाएगा कि हमारा कितना प्रेम है, कितनी श्रद्धा है ।
→ जिस बात को आप से मैं कहूँ, उसको आप करलें । यदि मेरी बात आपके नहीं जंचे फिर भी मेरे मन के अनुसार बहुत प्रसन्नता से कर लें तो यह श्रद्धा की बात है । बिना मन के जबरदस्ती काम करना श्रद्धा की बात थोड़े ही है ।
→ भगवान् शीघ्र कैसे मिले वह उपाय बतलाये ? कोई आपको गाली दे तो सुन लिया करो, बुरा मत माना करो । शुक्राचार्यजी भृगु जी के पास गये तो उन्होंने कहा तप करो । तप करने से उन्हें भगवान् मिल गये ।
शेष गले ब्लॉग में....
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ![ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
