※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

महत्वपूर्ण बातें


अब आगे......

 लिप्सा और दीनता को छोड़कर की हुई वीरता ही वीरता है

 उद्दण्डता को छोड़कर की हुई वीरता ही वीरता है

 कायरता को छोड़कर की हुई दया ही असली दया है

 दयाका नाम करुणा भी है यह गुण है

 कायरता की वाचक दया अवगुण है

 एक तरफ लाख रुपया चला जाय तब भी रत्तिमात्र भी प्रेममें कलंक लगे, ऐसा काम नहीं करना चाहिये

 सबसे आवश्यक बात----

* थोड़े से धर्म के लिये भी प्राण कोई चीज नहीं समझना चाहिये

* थोडेसे भी भजन के लिये प्राणों कि परवाह नहीं करनी चाहिये

* प्राणोंके लिये ईश्वर के प्रेम में थोड़ा भी कलंक नहीं लगाना चाहिये

* जिस कामसे भगवान् नाराज होते हों या भगवान् के प्रेममें थोड़ी भी बाधा आती हो, उस जगह प्राणों की परवाह नहीं करनी चाहिये

* धर्म एक बड़ी चीज है, इसके सामने रुपया कुछ चीज नहीं है

इससे हलकी बातें यह है----

* यदि आप धनको कुछ चीज समझते है और धर्म की आवश्यकता भी समझते हैं तो प्रारब्ध पर विश्वास रखकर धर्म को न छोड़ें, आपके प्रारब्ध मे जितना रुपया होगा उतना रुपया मिल जायगा

* ईश्वर के क्षणभर के प्रेम से, करोड़ रुपयोंकी भी तुलना नहीं है अपने प्रारब्ध में लिखा होगा उतना रुपया तो आएगा ही

* आपका यदि प्रारब्ध पर भी विश्वास नहीं है तो भी आप रुपयों के लिये धर्मको मत छोड़ें

* थोड़ी देर के लिये सोच लिया जाय कि चोर-डाकुओं के धन आता दिखता है, उस तरह हमारे भी धन आयेगा इस प्रकार मानना भी हानि है चोरी झूठ को आप कैसा समझाते हैं ? मैं तो बहुत बुरा समझता हूँ आपको यह छोड़ने चाहिये

* विचार करें हम किसके दास हुए हमने छदाम के बराबर भी ईश्वर को नहीं समझा

* आप रेल में यात्रा करें; किन्तु भाड़ा नहीं दें तो चोरी ही हुई, इसमें कोई शंका नहीं है

* दूसरे के हक़ को मारना पाप है

 प्रत्यक्ष में भी आपको पाप से जय नहीं होगी लोक में भी सच्चाई से व्यवहार करनेवाला जैसा चलेगा, ऐसा दूसरा नहीं चलेगा जैसे अंग्रेजों ने स्वार्थ से सच्चाई किया तो उनको लाभ मिला उनकी उस ईमानदारी व्यापारी की इज्जत थी उनकी धर्मबुद्धि नहीं थी

  वजनके लेन-देन में सबसें बढ़िया बात यह है कि लेनेमें एक पैसा भर कम लेना और देने के समय एक पैसा भर अधिक देना दूसरा नम्बर यह है कि पूरा लेवे और पूरा देवे

 देते समय कम देना लेते समय अधिक लेनेवाले की नियत में धोखा है

शेष अगले ब्लॉग में......



नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]