※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 26 सितंबर 2012

महत्वपूर्ण बातें


अब आगे........

 दूसरे के दान को ग्रहण के दान के समान समझना चाहिये

 जिसे पराया धन प्यारा लगता है, उसका पतन हो जाता है जैसे परायी स्त्री पर ख़राब नियत होने से पतन हो जाता है

 जिसकी वृत्ति भी दूसरी स्त्री पर ख़राब हो जाती है, उसका पतन हो जाता है

 जिनकी दूसरे के धन-स्त्री पर खराब नियत है, उनको भगवान् की प्राप्ति कैसे होगी

 यह बात सोचकर दूसरे के हक़ पर बहुत ज्यादा ग्लानी रखनी चाहिये  दूसरे का हक़ मारा, केवल उतना ही धन ख़राब नहीं होगा वह हमारे धन को भी ख़राब बना देगा यदि दूसरे का हक़ भूलसे आ जाय तो उसे फिर उसी जगह पहुँचा देना चाहिये

 हम लोगोंका न तो धर्म पर विश्वास है और न ईश्वर पर विश्वास है

 पैसे के लोभके विषय में जरा-सी भी रियायत करनी ही नहीं चाहिये, यह रियायत डूबने वाली है बहुत कडाई रखेंगे तो एक रूपये में चार आनाभर दोष आयेगा ही

 कपट से बचोगे तो पापसे बचोगे

 झूठ से बचोगे तो नरक से बचोगे जितना सत्य बोलोगे उतना मुक्ति के निकट पहुँचोगे

 निष्काम के तत्व को नहीं समझने तक ही कठिनाई है, तत्व समझने के बाद कुछ भी कठिनाई नहीं है


शेष अगले ब्लॉग में......


नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]