अब आगे........
→ दूसरे के दान को ग्रहण के
दान के समान समझना चाहिये ।
→ जिसे पराया धन प्यारा लगता है,
उसका पतन हो जाता है । जैसे परायी स्त्री पर ख़राब नियत होने से पतन हो
जाता है ।
→ जिसकी वृत्ति भी दूसरी स्त्री
पर ख़राब हो जाती है, उसका पतन हो जाता है ।
→ जिनकी दूसरे के धन-स्त्री पर
खराब नियत है, उनको भगवान् की प्राप्ति कैसे होगी ।
→ यह बात सोचकर दूसरे के हक़ पर
बहुत ज्यादा ग्लानी रखनी चाहिये । दूसरे का हक़ मारा, केवल उतना ही धन ख़राब नहीं होगा
। वह हमारे धन को भी ख़राब बना देगा । यदि दूसरे का हक़ भूलसे आ
जाय तो उसे फिर उसी जगह पहुँचा देना चाहिये ।
→ हम लोगोंका न तो धर्म पर
विश्वास है और न ईश्वर पर विश्वास है ।
→ पैसे के लोभके विषय में जरा-सी
भी रियायत करनी ही नहीं चाहिये, यह रियायत डूबने वाली है । बहुत कडाई रखेंगे तो एक रूपये में चार आनाभर दोष आयेगा ही ।
→ कपट से बचोगे तो पापसे बचोगे ।
→ झूठ से बचोगे तो नरक से बचोगे । जितना सत्य बोलोगे उतना मुक्ति के निकट पहुँचोगे ।
→ निष्काम के तत्व को नहीं समझने
तक ही कठिनाई है, तत्व समझने के बाद कुछ भी कठिनाई नहीं है ।
शेष अगले ब्लॉग में......
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण
!
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]